जबलपुर के आध्यात्मिक जगत में पूज्य थे इंदौर सेव भंडार के संचालक महिपाल साहू

कोरबा। कोरबा में इंदौर सेव भंडार के संचालक रामकुमार भईया से एक दिन चर्चा के दौरान उनके पिताजी की के संबंध में बात बातें करते हुए वे अतीत में खो गये और उन्होंने बहुत प्रेरक प्रसंग पिता के संबंध में बताए। मैंने महसूस किया कि पिता के संस्कारों का ही प्रभाव था जब उन्होंने भारी भरकम लागत से शहर के मध्य स्थित ‘ City center ” के शुभारंभ के लिए  संतो को बुलाकर उनके आशीर्वाद के साथ शुभारंभ किया। प्रस्तुत है पिता के आध्यात्मिक पहलू, उनके जीवन शैली संबंध में उनसे हुई चर्चा।
भगवान् की चर्चा कथा जैसे शुभ होती है, वैसे ही उनके भक्त तुलसी, कबीर, मीरा, सूर, ,कर्मा बाई, नामदेव, तुकाराम आदि की चर्चा भी शुभ मानी गयी है। जबलपुर के धर्म क्षेत्र में ऐसा कोई सन्त-महात्मा नहीं होगा जो दानशील, कर्मयोगी महीपाल साहू को न जानता हो क्योंकि महीपाल जी सदा ही सन्त कृपा के लिए लालायित रहते थे। ईश्वर के प्रति समर्पित एक सद्गृहस्थ संत का जीवन वे व्यतीत करते थे।
भजन-पूजा-पाठ-यज्ञ-अनुष्ठान-सत्संग उनकी जीवन शैली में सम्मिलित था। उनका जन्म नर्मदा तट के परम सिद्ध संत परमहंस दादा धूनीवाले केशवानन्द जी महाराज की लीलाभूमि नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा ग्राम में एक साधारण वैश्य साहू परिवार में हुआ। श्रीमती गंगा देवी से उनका विवाह हुआ, वे पचमढ़ी-भोपाल में   व्यापारिक दृष्टि से रहे, परन्तु जब 1962 में जबलपुर में न्यू इंदौर सेव भंडार प्रतिष्ठान प्रारंभ किया, तो मानो उन पर कुबेर प्रसन्न हो गये हों, खूब आर्थिक विकास हुआ, परन्तु वे इसे सन्तकृपा दादा धूनीवालों का आशीर्वाद मानते थे। उन्होंने अपने धार्मिक कार्यों में पहला धार्मिक कार्य भी साईंखेड़ा में दादा धूनीवालों का मंदिर बनाकर शिवस्वरूप दादा धूनीवालों की मूर्ति स्थापित करके किया।दादा धुनि वाले का स्थान कई प्रदेशों में है।
जबलपुर में उन्होंने पूज्यपाद सन्त शिरोमणि नृसिंहपीठाधीश्वर स्वामी रामचन्द्र दास से दीक्षा ग्रहण की। जब हम जिलहरी घाट में एक वर्षीय एक बारश्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ के अवसर पर पूज्य चरण पं. द्वारिका प्रसाद जी शास्त्री जमुनिया वालों के सानिध्य में उनसे श्रीमद् भागवत का अध्ययन कर रहे थे, तब सन् 1987 में एक विशाल धार्मिक अनुष्ठान की योजना बनी। जिसमें श्री महारुद्र यज्ञ, 108 श्रीमद्भागवत पुराण पाठ, सन्त सम्मेलन आदि कार्यक्रम हुए। विराट सन्त सम्मेलन में अनन्तश्री विभूषित जगद्गुरु वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी शान्तानन्द सरस्वती जी महाराज, पूज्य विरक्त शिरोमणि स्वामी वामदेव जी, महाराज, पूज्य स्वामी श्यामशरण जी महाराज, पूज्यपाद श्री नृसिंहपीठाधीश्वर,स्वामी रामचन्द्र दास, पूज्य डॉ. श्यामदास जो महाराज, आदरणीय दादा पगलानन्द जी आदि महापुरुष पधारे हुए थे। वर्तमान नृसिंहधीश्वर स्वामी जगतगुरु डॉ. श्यामदास महाराज जी हैं।
एक दिन की बात है आयोजन प्रारंभ होने के पूर्व श्री महीपाल साहू अपनी पत्नी श्रीमती गंगा देवी के साथ नर्मदा स्नान करने के लिए जिलहरी घाट में आये। मैंने देखा श्री साहू स्नान करने जा रहे हैं। उपर से मैंने आवाज दी- “साहू जी, यहाँ आइये।” साहू जी ने कहा- “स्नान करके, दर्शन करके आऊंगा।” मैंने कहा-” स्नान बाद में करना।” वे मेरे पास आये, प्रणाम करके बोले- “क्या आज्ञा है।” मैंने कहा-” महारुद्र यज्ञ हो रहा है, शिव जी की स्थापना होनी है, मैं चाहता हूँ कि आप इसका आर्थिक भार वहन करें।” उन्होंने कहा- “जैसी प्रभु की इच्छा, आप की आज्ञा शिरोधार्य है।” 
समय कम था । उसी दिन पं. रामसेवक दुबे को बुलाया।भूमि पूजन श्री महीपाल जी के हाथों सम्पन्न हुआ। पन्द्रह दिन में ग्यारह फुट ऊँचे शिवलिंग का निर्माण हो गया। पूज्यपाद वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी शान्तानन्द सरस्वती जी के करकमलों से शिवजी की स्थापना हुई और श्री शान्तेश्वर के नाम से आज भी जिलहरी घाट में महादेव विराजमान हैं। फिर श्री साहू जी नें मंदिर का भव्य निर्माण कराया, कमरे बनवाये, कुछ वर्षों तक जिलहरी घाट में भजन पूजन करते रहे। परिक्रमा वासियों, सन्तों एवं दीन दुखियों की सेवा करते रहे । फिर कुछ उपद्रवी तत्व उनकी शांति में बाधा डालने लगे, तो फिर वह वहाँ से साडिया घाट चले गये। साडिया घाट में भव्य मंदिर, धर्मशाला का निर्माण किया, जय श्री राम आश्रम का निर्माण किया, जहाँ उनके अपने ही निजी व्यय से साधु सेवा, परिक्रमा वासियों की सेवा अनवरत् चलती रही है। खड़िया घाट बरेली-भोपाल रोड पर नर्मदा तट के पहले मांगरोल घाट पर जय सियाराम आश्रम है।
साडिया घाट में उन्होंने श्री राम दरबार, श्री हनुमान जी, शिव जी, नन्दीश्वर, माँ कर्मा, गणेश जी, माँनर्मदा जी की उन्होंने स्थापना की है।
1 सितम्बर सन 1938 को माता श्रीमती गंगादेवी के गर्भ से श्री महीपाल का जी का जन्म साईंखेड़ा में हुआ।इनके पिता श्री दयाचन्द्र जी साहू धर्मात्मा थे।उनके और उनके तीनो भाइयों घासीराम साहू,सत्यनारायण साहू और टीकाराम साहू में आपस में सद्भाव आजीवन बना रहा।
इनके सुपुत्र श्री रामकुमार साहू, कोरबा, श्री कैलाश साहू, श्री दीपक साहू, एवं पुत्री श्रीमती गीता साहू, दामाद श्री बलराम साहू धर्म बुद्धि से जीवन समाज सेवा में निरत रहते हैं।
साहूजी निरंतर भजन करते रहते थे। जिलहरी घाट के धार्मिक विकास में उनका अविस्मरणीय एवं प्रशंसनीय योगदान है। साहू समाज में आज भी उनका नाम बड़े आदर भाव के साथ जाता है।
मां कर्मा जयंती मनाने की प्रेरणा मनाने की प्रेरणा उन्होंने समाज को दी। वैदिक यज्ञ के प्रति समर्पित श्री साहू को अहम भाव से कोसों दूर रहते थे। लोगों को आध्यात्मिकता की करता उनका व्यक्तित्व स्मित मुस्कान के साथ आजीवन परिक्रमा वासियों, सन्तों एवं दीन दुखियों की सेवा करते रहे। आगत के प्रति उनका एक ही भाव होता था-“प्रभु इच्छा।”