देवांशु झा : मोदी जी वैसी राजनीति नहीं करते, जैसा आप सोचते हैं श्रीमान…!
दो दिन पहले एक सज्जन ने रेलवे की खूब निंदा की। उन्होंने अपनी किसी ट्रेन के सात आठ घंटे विलम्ब से चलने का समाचार लिखकर तमाम अव्यवस्थाओं का रोना रोया। फिर रेलवे को बदइंतजामी और लूटपाट का केन्द्र बताकर इतिश्री कर ली। मैंने उनकी पोस्ट का विरोध करते हुए लिखा कि मैं पिछले पांच महीनों से नियमित अंतराल पर रेलयात्राएं कर रहा हूं। अलग-अलग स्टेशनों से पंद्रह बीस पड़ावों पर चढ़ते उतरते हुए, सुबह-दोपहर शाम, मध्य रात्रि से लेकर ब्रह्ममुहूर्त तक में मैंने रेल पकड़ी है। एकाधिक बार ही रेल दस पंद्रह मिनट के लिए विलंबित हुई।

हजारों किलोमीटर की यात्रा पर मैंने रेलवे में अभूतपूर्व परिवर्तन देखे। सैकड़ों मील पर नयी पटरियां बिछ गईं हैं। पटरियां बिछाने का काम युद्धस्तर पर जारी है। उनका विद्युतीकरण हो रहा। प्लैटफॉर्म पर बहुत साफ सफाई है। छोटे-छोटे स्टेशनों के नए भवन बन रहे। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया निर्बाध आगे बढ़ रही है। टिकटिंग बिचौलियों से मुक्त है। रेल कोचों का कायाकल्प हो रहा। पिछले सात वर्षों में कोई बड़ा रेल हादसा नहीं हुआ। इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। सूची लंबी है। लेकिन कुछ लोग जीवन भर अतृप्त रहते हैं। वे मानते हैं कि उनका देखा भोगा अंतिम सत्य है। और कहा ब्रह्मवाक्य!
मैं उन्हें सज्जन मानता था। संस्कृत के विद्वान भी हैं। लेकिन इतना दुराग्रही! परमाश्चर्य तो यह, जो मुझे बाद में पता चला–उस पोस्ट को लिखने से ठीक वर्ष भर पहले उसी स्टेशन से उनकी वही ट्रेन उतने ही विलम्ब से छूटी थी। और वैसे ही संकट आए थे। यानी फेसबुक ने उन्हें साल भर पुराने माल की याद दिलाई। उनकी आंखें चमक उठीं। उन्होंने उसे झाड़ फूंक कर फिर से परोस दिया। दुख और आश्चर्य यह भी उन सज्जन की पोस्ट पर कई गीदड़ एक साथ हुआं हुआं करने लगे। किसी ने केजरीवाल से भी मोदी की तुलना कर डाली थी।
कांग्रेस की राजनीति ने पिछले सत्तर वर्षों में भारत के लोगों को एक अपाटनीय अविश्वास से भर दिया है। भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, लालफीताशाही, घूसखोरी, यथास्थितिवाद देख देख कर उसका भरोसा ही जाता रहा। वह मानता है कि जैसे कांग्रेस और उसके सहोदर दल लूटपाट की राजनीति कर चुनाव जीतते रहे वैसे ही मोदी जी फिलहाल चुनाव जीत रहे। चूंकि वह भी राजनीति करते हैं इसलिए अनिवार्य रूप से खराब मनुष्य ही होंगे। दोनों की मंशा एक है। अच्छे तो केवल हम हैं!
नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति से जोड़ने वाला व्यक्ति एक बेजोड़ मूर्ख हो सकता है। राजनीति तो वह कर ही रहे। किन्तु वह खाने खिलाने और सत्ता वाली राजनीति नहीं करते। वह सत्ता में बने रहने के लिए हाड़तोड़ श्रम और देशोत्थान की राजनीति करते हैं। हां, जहां उन्हें भयावह रूप से विनाशकारी राजनीतिक शत्रुओं, एजेंडाधारियों और भितरघातियों से निपटना होना है, वहां वह चालाकी करना नहीं भूलते। क्योंकि अंततः देशोद्धार तभी संभव है, जब भाजपा सरकार में रहेगी। सत्ता से उसके हटते ही देश किसी टूटे हुए लिफ्ट की गति से (फ्री फॉल) नीचे गिरेगा। (महान लेखकगण अब तक मुझे भाजपा का एजेंट घोषित कर चुके होंगे)
भारतीय रेलवे लगभग सात दशकों तक जड़ अवस्था में रही। नवनिर्माण और विकास तो ठहर ही गए थे। रेल बस चल रही थी। मोदी सरकार ने एक विकराल नेटवर्क की सड़ी गली व्यवस्था को ठीक करने की दिशा में कदम बढ़ाए। वह पिछले सात आठ वर्षों में बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर चुकी है। मैं मानता हूं कि अगले पांच वर्षों में भारतीय रेलवे का कायाकल्प हो जाएगा। लेकिन इतने भीमकाय आधारभूत परिवर्तन, आधुनिकीकरण, सुरक्षा, गति, सुविधा के बाद भी कोई पांच वर्ष पुरानी दर पर ही पर यात्रा करने का इच्छुक हो तो ब्रह्मा के अतिरिक्त कौन उसकी इच्छापूर्ति कर सकता है!
कुछ इसी तरह का दुराग्रह करने वाली एक महिला को दो तीन माह पहले मैंने ब्लॉक किया था। जो संभवतः अपने घूसखोर सरकारी अधिकारी पति की छटपटाहट और मलाईदार पोस्टिंग न पाने की पीड़ा से तंग आकर महंगाई महंगाई का रुदन करते हुए रेलवे को कोस रही थी। नरेन्द्र मोदी इस देश के लिए जो कर रहे, वह कोई असाधारण तपस्वी ही कर सकता है। घर परिवार की छोटी मोटी परेशानियों से ऊब जाने वाला मन भला नरेन्द्र मोदी की तितिक्षा की थाह कैसे लेगा?
शुभकामनाएं महानायक!
