छत्तीसगढ़ के शिक्षण संस्थानों में संस्कृत को समाप्त करने का प्रयास
रायपुर। राजधानी के एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाए जाने के निर्णय पर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने और निःशुल्क संस्कृत प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने वाली संस्था संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ ने इसे गलत निर्णय बताया है।
कोई भाषा बुरी नहीं होती लेकिन जिस तरह से दूसरे नहीं बल्कि तीसरे दर्जे का व्यवहार छत्तीसगढ़ में सभी भाषाओं की जननी संस्कृत के साथ किया जा रहा है उसे सही नहीं कहा जा सकता। कुछ समय पूर्व राज्यसभा सांसद श्रीमती छाया वर्मा ने भी संस्कृत के उत्थान को लेकर सदन में अपना मत रखा था। पूर्व में प्रकाशित समाचारों के अनुसार राज्य में वर्षों बाद उर्दू विषय के जानकार शिक्षकों की जल्द ही भर्ती होने वाली है। प्रदेश के नगरीय निकायों के स्कूलों में 440 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गई है। नगरी प्रशासन विभाग ने प्रदेश के सभी संयुक्त संचालकों को पत्र लिखकर उर्दू शिक्षकों की भर्ती के संबंध में जानकारी मांगी है। अफसरों ने बताया कि राजनांदगांव में सबसे ज्यादा 44 उर्दू के शिक्षक भर्ती होनी है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में शिक्षक वर्ग एक, शिक्षक वर्ग दो और शिक्षक वर्ग तीन के पदों पर भर्ती की जानी है। अंग्रेजी और उर्दू का उत्थान हो लेकिन संस्कृत भाषा के साथ इस प्रकार का मजाक नहीं होना चाहिए।
पूर्व में प्रकाशित समाचारों के अनुसार शासन के नये सेटअप जारी होने से संस्कृत शिक्षकों में हडकंप मच गई है। सेटअप के अनुसार हाईस्कूल मे संस्कृत पद शुन्य कर दिया है ,220 छात्र से अधिक होने पर 1 व्याख्याता का मापदण्ड तय किया है,जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नही है। 6 विषय के 6 व्याख्याता न्युनतम हाई स्कूल मे सेटअप अनिवार्यतः हो। वहीं हायर सेकण्डरी स्कूल मे 9-से 12 तक के लिए 61 से 359 छात्रो के मापदण्ड पर 1 व्याख्याता तय कर सीधा संस्कृत को शुन्य करने की तैयारी मे है।जबकि हायर सेकण्डरी मे संस्कृत के 2 व्याख्याता होना चाहिए।अन्य भाषा हिन्दी अंग्रेजी के जो मापदण्ड हो वही संस्कृत भाषा के हो ,क्यों संस्कृत के लिए उपेक्षित रवैया शासन की ओर से अपनाई जा रही है,इस पर समस्त संस्कृत व्याख्याता समूह की ओर से कड़ी आपत्ति दर्ज की गई है।
इसके विरोध में संस्कृत भारती के सदस्य अब राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिलने की तैयारी कर रहे हैं। इन्होंने कहा है कि विकसित देश अमेरिका, रूस, जापान, इंग्लैंड जैसे देश संस्कृत में शिक्षा दे रहे हैं। वहीं अपने यहां इसे मिटाने की तैयारी की जा रही है।संस्कृत भारती के महामंत्री डा.दादूभाई त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत पंडा, प्रवक्ता चंद्रभूषण शुक्ला का कहना है कि पहले ही संस्कृत कालेज परिसर के मैदान पर नालंदा लाइब्रेरी का निर्माण कर परिसर को सीमित कर दिया गया है। अब पूरी तरह से संस्कृत की पढ़ाई को खत्म करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में संस्कृत भाषा की अलख जगाने में महंत वैष्णवदास, संत गहिरा गुरु, स्वामी आत्मानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।छत्तीसगढ़ में हल्बी, गौंडी, मुरिया, सदरी जैसी भाषाओं में 75 प्रतिशत शब्द संस्कृत के हैं। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग ने भी इसे स्वीकार किया है कि छत्तीसगढ़ी भाषा में 60 प्रतिशत शब्द संस्कृत के हैं।
एक अन्य समाचार के अनुसार रायगढ़ में संस्कृत के व्याख्याताओं ने कहा था कि ”हम छत्तीसगढ़ शासन की इस मंशा को हरगिज पूरा नहीं होने देंगे, संस्कृत के बिना हमारी संस्कृति ही अधूरी है। 2 जून को छत्तीसगढ़ शासन ने नवीन आदेश निकाला था, जिसमें हाई स्कूल में 221 छात्रों की दर्ज संख्या एक संस्कृत व्याख्याता की पदस्थापना(Government new order for Sanskrit teachers ) करने की बात कही गई है। वहीं हायर सेकेंडरी स्कूल में 359 छात्रों की दर्ज संख्या पर 1 पद स्वीकृत होगा. जबकि नवीन आदेश पर अन्य विषयों पर छात्रों की दर्ज संख्या को महत्व नहीं दिया है, अन्य विषयों पर कम छात्र होने पर भी व्याख्याताओं की पदस्थापना होगी।”
रायगढ़ में भी संस्कृत महाविद्यालय के आस्तित्व को समाप्त करने की अपेक्षा विश्वविद्यालयों में संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। इससे विद्यार्थियों को दंडकारण्य की प्राचीन संस्कृति, इतिहास, पांडुलिपियों की जानकारी मिल सकेगी। यूएसए, यूएई के शिक्षाविदों ने भी माना है कि संस्कृत अन्य भाषाओं की तुलना में 100 प्रतिशत बौद्धिक विकास में सहायक है।
संस्कृत भारती के सदस्यों का कहना है कि अमेरिका, जापान, रूस ,इंग्लैंड जैसे उन्न्त देश अपने यहां संस्कृत की शिक्षा दे रहे हैं और यहां छत्तीसगढ़ में एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय को अंग्रेजी महाविद्यालय बनाया जा है। अंग्रेजी कालेज कहीं और खोला जाए, लेकिन संस्कृत महाविद्यालय को यथावत रखा जाए।