ओम लवानिया ‘प्रोफेसर’ : ‘इंस्पेक्टर इस आशिक को उतना ही मारना, जितना तुम सह सको’

2002 सलमान खान के ब्रदर सोहेल खान डेब्यू फिल्म ‘मैंने दिल तुझको दिया था’ आई थी। इसमें संवाद था, ‘इंस्पेक्टर इस आशिक को उतना ही मारना, जितना तुम सह सको’….

उसी तर्ज पर 2002 से 2013 के दरम्यान मोई टू विपक्ष से उतना ही छेड़ना, बाद में बर्दाश्त करने सहनशक्ति हो।
2014 के बाद से भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों की स्थिति बेहद खस्ता हो चली है।

Veerchhattisgarh

जिन मोहरों के साथ तत्कालीन सत्तारूढ़ विपक्ष खेल खेला करता था, अब मैदान में खड़े होकर खेल के नियम बदलने की मांग कर रहे है। मुख्य रेफरी से दलील की है कि “देश के अंदर ईडी का आतंक है। सुप्रीम कोर्ट को इस पर फैसला जल्द करना चाहिए। इनका सक्सेस रेट .5 पर्सेंट भी नहीं है। ये न तो सीआरपीसी का प्रोसेस अपनाते हैं। इनके इन्वेस्टिगेशन करने, अरेस्ट करने और बयान लेने का अलग ही तरीका है। इसको सीबीआई से भी ज्यादा पावर मिली हुई है।”

कांग्रेस ने सुबह 11.30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जल्द फैसला मांगा, मुख्य रेफरी महोदय ने भी तत्काल प्रभाव से 1.30 पर फैसला प्रेषित कर दिया और कहा कि सब नियम-कायदे परफेक्ट है। ईडी का सेक्शन 50 के तहत बयान लेने और आरोपी को बुलाने की शक्ति का अधिकार भी सही है। मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। सेक्शन 5, सेक्शन 18, सेक्शन 19, सेक्शन 24 और सेक्शन 44 में जोड़ी गई उपधारा भी सही है। इन 5 धाराओं को सही ठहराया है।

इससे मैदान में हारे खड़े खिलाड़ियों की उम्मीदें पूरी तरह बिखर गई। दरअसल, लोकतंत्र यानी जनपथ खतरे में है। माँ-बेटे की जोड़ी से बारी-बारी से पूछा गया है कि आखिर यंग इंडिया बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

-साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *