योगेश किसले : चीन ने राम के अस्तित्व को स्वीकारा.. भारत में कागज मांगे गए…
जिस राम , रामायण और रामराज्य को हम मिथक समझ कर उपेक्षा कर दिया करते हैं दरअसल वह हमारे राजनैतिक , सांस्कृतिक , सामाजिक और धार्मिक स्थापना का एक माध्यम है । अखण्ड भारत का पूरा हिस्सा ही नही एशिया के दर्जनों देश राम और रामराज के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते बल्कि उसे आदर्श मानते थे।
रामायण और राम की चर्चा अब के भारत में लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाओं में तो मिलते ही हैं लेकिन चीन , कंबोडिया , साइबेरिया सहित दर्जनों देशों में भी रामायण को आदर्श माना गया है।
सन 472 में चीन में चि – चिया – य नामक लेखक ने एक ग्रंथ ” त्सा पाओ त्सांग चिंग ” लिखा था ।जिसमे रामराज्य का विस्तार से वर्णन है । चि – चिया – य दरअसल केकय का ही लिप्यंतर है। राम और भरत संवाद के बारे कुछ इस तरह लिखा है —
” शिउँग ति तुन मु । फंग शिंग ता शिंग । ताऊ चि सो पेई ।युआन मंग ला ई। …… यि छिये जन मिन। चि छंग फंग मन।
मतलब , दोनों भाइयों का एक दूसरे के प्रति प्रेम और आदर था । सदाचार चारो ओर व्याप्त था । प्रजा भी उनका अनुसरण करती थी। …. जम्बूद्वीप के सभी लोग सम्पन्न हो गए।
चीन में राम के अस्तित्व को माना गया । लेकिन भारत मे राम के लिए कागजात मांगे गए ।
देश में जय श्री राम कहना साम्प्रदायिकता मान लिया गया है । इसे उत्तेजना फैलाने वाला कहा गया। लेकिन क्या आपको पता है कि साइबेरिया के ब्रूयात इलाके में भी राम और रामचरित का बोलबाला था ।मंगोलिया , रूस के बोल्गा नदी के किनारे के क्षेत्र में रहने वाले कालपूक समुदाय में राम नाम के गीत गाये जाते थे।
सम्राट कुबलई खां के गुरु साचा पंडित आनंदध्वज ने 1200 ईसवी के आसपास ” एरदेनेईं साँग सुवाशिदि ” किताब लिखी थी। एरदेनेईं का मतलब रत्न और सुवाशिदि का मतलब सुभाषित होता है । ये मंगोल शब्द हैं। जिसमे कहा गया है कि लंकापति रावण जनहित के कामो से दूर हो गए जिसकी वजह से उनका नाश हो गया। मंगोल भाषा में इसका कुछ इस तरह से वर्णन हैं —- ओलांदुर आंख बोलुग्सन यखे खुमुन देमी आलिया नगदुम्बा। ओखथु आमुर सगुर ब्रूवा ईद गेन ओमद गान दुर नेंग उलु शिंगतहुगाई ।
मतलब यह कि राजा राम के गुण और कहानी मंगोल के लिए एक आदर्श हैं और हमारे नैतिक शिक्षण का साधन है ।
कंबोडिया में तो राम की कहानी अभी भी मौजूद हैं । यहां पर शिलालेखों में संस्कृत के नौ हजार श्लोक मौजूद है । 12वीं सदी के सम्राट सूर्यवर्मन ने अपने राजभवन में रामायण और महाभारत के दृश्य अंकित कराए थे। कंबोडिया में ” रामकीर्ति ” नाम से किताब भी उपलब्ध है।
इंडोनेशिया के बारे में तो बताना बेकार है क्योंकि हर कोई जानता है कि वहां रामायण अभी भी भारत से अधिक लोकप्रिय है । इस मुस्लिम देश मे भी जय श्री राम कहना गर्व की बात है लेकिन भारत के विधर्मी राम नाम को सांप्रदायिक मानते हैं।
नेपाल तो सीता का मायका रहा है । यह इकलौता हिन्दू राष्ट्र रहा लेकिन वामपंथियों के जहरीले वर्ताव के कारण इसे भी अपनी जड़ों से दूर होना पड़ा । यहां हिन्दू और राम को लेकर क्या सोच है यह बताने की जरूरत नही इसलिए उसकी चर्चा फिर कभी।
देश के अलग अलग क्षेत्रो में अलग अलग भाषा , अलग अलग समुदाय में राम किस तरह बसते हैं यह तमिल , तेलुगु , मराठी , कन्नड़ ,असमिया , बंगला , गुजराती , पंजाबी भाषा मे लिखे रामायण को पढ़कर जान सकते हैं ।
भारत को राम का देश , कृष्ण की भूमि , हिन्दुओ का अंतिम डेस्टिनेशन कहा जा सकता है ।अबतो बस लाऊड स्पीकर पर आज गूंज रहे उस गीत को ही साकार होने की कामना है । — भारत का बच्चा बच्चा जय श्री राम बोलेगा …..
रामनवमी की ढेरों शुभकामनाएं । जै जै श्री राम।
-साभार