सर्वेश तिवारी श्रीमुख : स्त्री दिवस ! विश्व अंधेरे में था तब हमारी संस्कृति की बेटियां वेद रच रही थीं..

सोच कर ही गर्व होता है कि आज से दस हजार वर्ष पूर्व जब अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप में सभ्यता बसी नहीं थी, जब समूचा विश्व अंधेरे में जी रहा था, तब हमारी संस्कृति की बेटियां वेद रच( दृष्टा ही समझ लीजिए) रही थीं। सूर्या, सावित्री, लोपामुद्रा, दाक्षायनी, अपाला… इन्होंने रची विश्व की प्रथम संस्कृति, इन्होंने रचा संसार का प्रथम ग्रंथ।

हमारी परम्परा के तीन प्रमुख आराध्य देवों को निहारिये! एक की पत्नी का अपहरण हुआ तो उन्होंने अकेले ही संसार की सर्वश्रेष्ठ सेना से युद्ध ठान कर उसे पराजित किया। दूसरे के युग में एक राजसभा में एक स्त्री का अपमान हुआ तो उन्होंने उस समूची सभा का संहार कराया। और तीसरे थे शिव! सृष्टि में सबसे शक्तिशाली होने के बावजूद अपनी पत्नी के बिछुड़ने पर पागलों की भांति भटकने लगे। हर संकट को पल में समाप्त कर सकने की शक्ति रखने वाले शिव अपनी तपस्विनी पत्नी को उतना शक्तिशाली बनाते हैं कि वे सृष्टि के दुर्दांत दैत्यों का वध करती हैं और सृष्टि में शक्ति की प्रतीक बन कर पूजी जाती हैं। यह हमारे आराध्य देवों का नारियों के प्रति समर्पण है…

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वैदिक काल हो, मध्यकाल हो या आधुनिक समय, हमारी बेटियां विदुषी भी रही हैं, योद्धा भी रही हैं, और जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर इतिहास के पन्नो में अपना नाम अंकित कराती रही हैं। आप किसी भी शताब्दी का इतिहास देख लें, स्त्रियों को सम्मान देने के मामले में भारत अपनी पड़ोसी संस्कृतियों से बहुत अच्छा रहा है।

दरअसल भारत की मूल परम्परा ने कभी पुरुषों को यह नहीं सिखाया कि वे स्त्रियों को अपने अधीन समझें। बीच से फूटी किसी धारा ने बाहरी प्रभाव में इस बर्बर विचार को मान भी लिया, तो सभ्यता ने इसे स्वीकार नहीं किया। हमारे लिए सदैव स्त्री पूज्य ही रही है।

कुछ लोग मिल जाएंगे यह कहने वाले कि यह किताबों की बाते हैं, धरातल पर स्त्रियों की दशा बहुत बुरी रही है। वे लोग वस्तुतः धूर्तता करते हैं। जिन अभाव के दिनों में स्त्रियों की दशा बुरी रही उन दिनों पुरुषों की दशा भी उतनी ही बुरी थी। बर्बरता से संघर्ष के दिनों में यदि स्त्रियां घर के अंदर रहने को विवश हुईं तो इसका कारण उनकी सुरक्षा थी। अरबी बर्बरों की क्रूरता से बचने के लिए जब पुरुष स्त्रियां आत्मदाह करती थीं, तो पुरुष भी लड़ते लड़ते स्वयं की बलि देते थे। कोई व्यक्ति यदि विपरीत दिनों में प्रताड़ित होने वाली दस स्त्रियों का उदाहरण लाये तो उसी समय प्रताड़ित होने वाले सौ पुरुषों के उदाहरण मिल जाएंगे। किसी भी सभ्यता की यात्रा में अच्छे और बुरे दोनों समय आते हैं, और उसका लाभ या हानि तब के स्त्री और पुरुष दोनों को भी भुगतना होता है।

समाज में नकारात्मक शक्तियां भी रहती हैं। देव होते हैं तो दानव भी होते हैं, देवियां होती हैं तो राक्षसियाँ भी होती हैं। नकारात्मक शक्तियां पुरुषों को भी चोट देती हैं, और स्त्रियों को भी… कुछ पीड़ा स्त्रियों को झेलनी पड़ती है, तो कुछ पुरुषों को भी उठानी पड़ती है। पर यह हमारे समाज का मूल भाव नहीं, हमारा समाज हर अत्याचार के विरुद्ध ही होता है।

वर्ष का हर दिन सभी स्त्रियों के लिए सुखद हो, इसी भाव के साथ…

साभार : सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

 

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