संस्कृत भाषा को ख़तम करने का आयोजनात्मक षड्यंत्र.. वर्ष 2013 का एक ज्वलंत लेख…
जिसको केंद्र लेवल की शिक्षण संस्था सी.बी.एस.सी. और एन.आई.ओ.एस. ने बदल कर संस्कृत को भाषाओ से ही निकल दिया।
कक्षा , ६,७,८,९, इत्यादि में दिल्ली में भी संस्कृत के विकल्प के तौर पर, उर्दू, जर्मन, फ्रेंच इत्यादि भाषाओ को ला दिया गया।
मित्रो, भारत की संस्कृति का मूल स्तंभ रही देव वाणी संस्कृत भाषा को ख़तम करने का षड्यंत्र यु.पी.ए./कांग्रेस ,समाजवादी पार्टी एवं लेफ़्ट द्वारा आयोजनात्मक षड्यंत्र हो रहा है। उन्होंने ५०% तक तो संस्कृत ख़तम कर ही दी है और बाकी के रही सही ५०% संस्कृत ख़तम करने के कड़े कदम उठाये जा रहे हैं और इसके लिए वह मुखोटा बना रहे हे सेकुलरवाद का।
उल्लेखनीय है कि अब तक भारत की पहचान रही संस्कृत भाषा के लिए एक भी संसदीय अधिनियम से केन्द्रीय विश्वविद्यालय भाषा संस्कृत के लिए नहीं बनाया गया।
वर्त्तमान में केंद्र सरकार द्वारा १९८६ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति संसद में लायी गयी, जिसके त्रिभाषा फ़ॉर्मूला द्वारा सेकेंडरी लेवल में त्रिभाषा और हायर सेकेंडरी लेवल में द्विभाषीय सूत्र लागू होना था। जिसके अनुसार इन भाषाओ में संस्कृत एक कम्पलसरी भाषा होनी थी।
जिसको केंद्र लेवल की शिक्षण संस्था सी.बी.एस.सी. और एन.आई.ओ.एस. ने बदल कर संस्कृत को भाषाओ से ही निकल दिया।
कक्षा , ६,७,८,९, इत्यादि में दिल्ली में भी संस्कृत के विकल्प के तौर पर, उर्दू, जर्मन, फ्रेंच इत्यादि भाषाओ को ला दिया गया।
जिससे संस्कृत भाषा का ही नाश हो जाए। साथ ही सभी यूनिवर्सिटी में भी संस्कृत को एक विकल्प बना दिया गया और उसके लिए कारण यह दिया गया कि केंद्र सरकार जो हिंदुत्व को प्रचलित करे ऐसे हर विषय से दूर रहना चाहती है क्योंकि यही तो सेकुलरवाद है उनकी नजरो में….
अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।
श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाये दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!
वर्त्तमान में क्या है संस्कृत की स्थिति ?
– एक आंकड़े के अनुसार आज भारत में वाराणसी को मिलकर ३००० से अधिक संस्कृत स्कूल और १५०० से अधिक वेद पाठशालाए है लेकिन उनको न ही यूनिवर्सिटी से संलग्न किया जा रहा है न ही उसकी मान्यता दी जा रही है।
– १०० से अधिक वर्त्तमान पात्र, मासिक पत्रिकाए संस्कृत भाषा में प्रकाशित होती है।
– भारत में कुल आबादी के सिर्फ ०.९८% लोग ही संस्कृत का शुद्ध ज्ञान रखते हे. और कुल १-२% जितने लोग संस्कृत से थोडा बहोत परिचित है , ५-७% युवा ही संस्कृत शिखने को इच्छुक है, ७८% लोग संस्कृत को मृत भाषा और व्यवहार में अनुपयोगी मानते हैं।
– केवल २% ही संस्कृत शिक्षक शेष रहे हैं उसमें से ९५% जितने संस्कृत शिखे हुए शिक्षक बेकार हैं।
– ३% विद्यार्थी ही ग्रेज्युएशन में संस्कृत भाषा का चयन करते हैं।
सरकारी दफ्तरों में संस्कृत का प्रभाव –
लोकसभा का सूत्र – धर्मचक्र प्रवर्तनाये
आकाशवाणी का सूत्र – बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय
जीवन विमा निगम का सूत्र – योगक्षेमं वहाम्यहम
सर्वोच्च न्यायलय (सुप्रीम कोर्ट का सूत्र) – धर्मो रक्षति रक्षितः
भारतीय नौकादल का सूत्र – शं नो वरुणः
और भारत सरकार का सूत्र – सत्यमेव जयते
दूरदर्शन का सूत्र (था- जो सेक्युलर सरकार ने हटा दिया) – सत्यं शिवं सुन्दरं
हमारा राष्ट्र गान और राष्ट्रिय गान दोनों ही संस्कृत प्रभावित और आधारित है।
कोई आश्चर्य नहीं होगा की सनातन वैदिक धर्म विरोधी यह सरकार ऊपर दिए सभी जगहों से एक एक कर संस्कृत सूत्र हटा दे। आज जहां विश्व संस्कृत को सबसे समृद्ध भाषा मान रहा है वही इसी भारत में उसको स्वर्गवास करने का प्रयास हो रहा है।
संस्कृत विद्वानों से और भाषा प्रेमियों से साथ ही सनातन धर्मियों से निवेदन है कि कैसे भी कर के संस्कृत का प्राथमिक ज्ञान ले और अपने बच्चों को संस्कृत शिक्षा अवश्य प्रदान कराये। तब जाकर ही संस्कृत का अस्तित्व बना रहेगा।
राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सर संघ चालक गुरूजी ने संस्कृत की रक्षा के लिए संस्कृत भारती संस्था बनायीं थी जो आज भी निशुल्क संस्कृत ज्ञान देती हे और वर्ग चलाती है , साथ ही चिन्मय मिशन, और शंकराचार्य पीठ द्वारा संस्कृत सिखाया जाता है। कम से कम हमारे आसपास के जो संस्कृत विद्वान् हे उनको गुरु बनाकर ही सही हम संस्कृत ज्ञान ले सकते हे.
हमें इस दिशा में निश्चय ही कदम उठाने होगे…
जयतु संस्कृतं.
साभार : परिवर्तन 24 अगस्त 2013 से