त्रिभुवन सिंह : हाई स्कूल पास मैक्समूलर का नग्न सत्य

मुझे किसी ने अखबार की यह कटिंग भेजी है।

मैं न तो अखबार पढ़ता हूँ न न्यूज़ सुनता हूँ। ये एजेंडा चलाते हैं माइंड सेट बनाने का। 

हिंदुस्तान नामक अखबार के एडिटोरियल पृष्ठ पर किसी #Gyanesh_Upadhyay जी का लेख है। 

यद्यपि उनका उद्देश्य था संस्कृत को श्रेष्ठ प्रमाणित करना।

उद्देश्य कितना भी पवित्र हो लेकिन वह असत्य की चाशनी में लिपटा हो तो वह घातक होता है।

मुझे आज भी याद है कि देश की लोग अपडेट होने के लिए आज भी एडिटोरियल पढ़ने की सलाह देते हैं। कई लोग तो तीन तीन अखबार मंगाते है अपडेट होने के लिए।

वे विश्वास करते हैं कि अखबार में सत्य छपता है।

इसी तरह #माइंड_सेट निर्मित होता है।

लेखक को सूचित कर दूं कि मैक्समूलर मात्र हाई स्कूल पास था। और उसने संस्कृत का एक शब्द भी अपने कानों से नहीं सुना था। और उसका पालक Baron Bussen कहाँ से संस्कृत जानता या पढ़ता?

1846 में तो मैक्समूलर को ईस्ट इंडिया कंपनी ने नौकरी भी नहीं दी थी।

Baron Bussen मैकाले का मित्र था। वह इंग्लैंड में जर्मनी का राजदूत था। मैक्समूलर एक धूर्त था। उसको नौकरी  चाहिए थी। एक अनपढ़ हाई स्कूल पास जर्मन को, जिसे 1846 तक इंग्लिश भी नहीं आती थी, कौन नौकरी देता?

उसने पहले जर्मन राजदूत को किसी तरह सेट किया। उसने उसे मैकाले से मिलाया। मैकाले ने उसे ईस्ट इंडिया में नौकरी दिलवायी।  मैक्समूलर मैकाले के उस एजेंडे का वाहक था जिसमें मैकाले ने कहा था: “हमें भारत के लिए ऐसी शिक्षा पद्धति विकसित करनी है जिससे शासको और शासितों के बीच मे बिचौलिए तैयार किये जा सके, जो रंग में भारतीय, परंतु चरित्र व्यवहार, बुद्धि तथा विवेक में अंग्रेज हों”।

मैक्समूलर उसी एजेंडे का एजेंट था। उसने अपना काम किया।

और अंग्रेज कौन थे?

आक्रांता और लुटेरे। मैं नहीं बोल रहा। शशि थरूर ने 2015 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में बोला था। और भारत के विदेशमंत्री ने पिछले वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर बोला कि 190 वर्ष में ब्रिटिश भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटकर ले गए, जो आज की तिथि में ब्रिटेन के 17 वर्षों के जीडीपी के बराबर है।

लेकिन मैकाले आज तक सफल रहा है – गुलाम इंटेलीजेंशिया आज भी उसका एजेंडा ढो रही है।

लेखक से निवेदन है कि Pradosh Aich की The Truths पढ़े एक बार। अभी हाल में ही लिखी गयी एक रिसर्च बुक है। जो जर्मन भाषा के प्रोफेसर हैं।

लेखक को भाषा की परेशानी हो सकती है क्योंकि यह आंग्ल भाषा में लिखी गयी पुस्तक है।

लेखक को एक लिंक दे रहा हूँ जिसमें एक इंटरव्यू में प्रदोष अइछ ने मैक्समूलर को एक टॉप क्लास का धोखेबाज बताया है:

http://veda.wikidot.com/fundamentals-of-indology-wrong

ज्ञानेश उपाध्यक्ष की लिंक शायद यह है:

https://www.facebook.com/gyanesh.upadhyay

मेरी पुस्तक में भी मैक्समुलर को नग्न किया गया है।

..

उद्देश्य है – #तोतारटंतबुद्धिजीवियों का हौसला पस्त करना। पूंछे कोई ज्ञानेश जी से कि क्या वे ऐसा लेख पुनः लिखेंगे?

नोट:

यह बात संघियों को समझ में नहीं आएगी कि – उद्देश्य कितना भी पवित्र हो, लेकिन असत्य की चाशनी में लपेटकर परोसोगे तो अनर्थ ही होगा।

अर्थ नहीं।

साभार : त्रिभुवन सिंह

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