गीता जयंती आज : कुरुक्षेत्र में भारी तनाव के मध्य विश्व को दिया गया सर्वश्रेष्ठ ज्ञान.. वेदों एवं उपनिषदों का सार
गीता जयंती आज..14 दिसंबर
कुरुक्षेत्र में दो सेनाओं के बीच खड़े होकर भारी तनाव के समय कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वो दुनिया का श्रेष्ठतम ज्ञान है।
गीता का जन्म युद्ध के मैदान में दो सेनाओं के बीच हुआ।
जीवन की श्रेष्ठतम बातें भारी तनाव और दबाव में ही होती हैं।
अगर आप दिमाग को शांत और मन को स्थिर रखने की कोशिश करें तो सबसे बुरी परिस्थितियों में भी आप अपने लिए कुछ बहुत बेहतरीन निकाल पाएंगे।
ये श्रीकृष्ण सिखाते हैं।
गीता जयंती के सुअवसर पर आज अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के सदस्यों ने शहर के विभिन्न स्थानों पर बेहतरीन पेपर में प्रिंट “गीता” को लोगो तक पहुँचाया ??
आपसे कभी ऐसे लोग मिले तो गीता लेकर जरूर पढ़िए और अगर है घर में तो लेकर किसी को भेंट कीजिए ??
इस्कॉन या अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (International Society for Krishna Consciousness – ISKCON), को दुनिया “हरे कृष्ण आंदोलन” के नाम से भी जानती है।
संस्था के संस्थापक श्रीसील प्रभुपाद अपने गुरु के आदेश पर बहुत अल्प संस्थानों के साथ एक मालवाहक जलयान के द्वारा पहली बार 1965 में न्यूयार्क गए थे और वहां 1966 में ISKCON की स्थापना की थी। इसके बाद लगातार बारह साल तक स्वामी प्रभुपाद अनवरत दुनिया भर में घूमते रहे और छः महाद्वीपों में हिंदुत्व और श्रीकृष्ण के पावन सन्देश को फैलाया जिसके नतीजे में आज हरेकृष्ण आन्दोलन का विस्तार सारी दुनिया में है और देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।
श्रीसील प्रभुपाद की हिन्दू धर्म, भगवद गीता, भागवत आदि पर की रचनाएं सारी दुनिया में श्रीकृष्ण के पावन सन्देश को फैला रही है। इस्कॉन ने अपने विचारों के माध्यम से दुनिया भर के लाखों लोगों को हिन्दू विचारों से जोड़ा है। आज भारत से बाहर के लाखों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। वे लगातार ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर एवम् विद्यालय बनवाये हैं। इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता, सनातन धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के प्रत्येक श्लोक में ज्ञान का अनूठा प्रकाश है। मानव जीवन की इस उत्कृष्टतम आचार संहिता की विशिष्टता यह है कि शांति का यह संदेश युद्ध की भूमि से दिया गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्य को आत्मकल्याण का पथ सुझाकर भटकाव से बचाने वाले इस शास्त्र में किसी पंथ विशेष की नहीं, बल्कि विश्व मानव के हित के लिए ज्ञान, भक्ति और कर्म की तथ्यपूर्ण चर्चा मिलती है। इसमें परस्पर विरोधी दिखाई देने वाले अनेक विश्वासों को मनोवैज्ञानिक ढंग से एक साथ गूंथकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया गया है। यही कारण है कि इस कृति को मानवीय प्रबंधन के अद्भुत ग्रंथ की वैश्विक मान्यता हासिल है। गीता साधारण कर्मवाद को कर्मयोग में परिवर्तित करने के लिए तीन साधनों पर बल देती है-
फल की आकांक्षा का त्याग, कर्त्तापन के अहंकार से मुक्ति एवं ईश्वरार्पण।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को गीता जयंती पर देशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि भागवत गीता जीवन के कई आयामों के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शक है और इसकी शिक्षाओं को विश्व स्तर पर गुंजायमान होते हुए देखकर बहुत खुशी होती है।उन्होंने इस अवसर पर अपने, हाल में दिए गए उन दो भाषणों को भी साझा किया है, जो गीता पर थे।प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दन:। पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्। गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।’’
इन सूत्रों में वेदों एवं उपनिषदों का सार झलकता है। तत्त्वदर्शी मनीषियों का कहना है कि ज्ञान, भक्ति और कर्म की इस अनूठी त्रिवेणी को जितनी बार पढ़ा जाता है, इसके ज्ञान के नित नए रहस्य खुलते जाते हैं। 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है।
इस अनुपम ग्रंथ की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात है लगाया जा सकता है कि 78 भाषाओं में इसके 250 से ज्यादा अनुवाद तथा दर्जनों टीकाएं व भाष्य हो चुके हैं।