उसके हिस्से मृत्योपरांत भी तो अपयश ही आना चाहिए न ? -रंजना सिंह-

आत्मा परमात्मा का अंश है,अतः उसके प्रति श्रद्धा सम्मान रखना हमें सनातन ने सिखाया है।इसी कारण देह से पृथक आत्मा को श्रद्धांजलि देने की प्रथा है। 

किन्तु प्रश्न यह कि किसी के मरणोपरांत हम स्मरण किसका कर रहे होते हैं-

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परमात्मा रूपी उस आत्मा का जो कभी अशुद्ध हो ही नहीं सकता,अशुभ कर ही नहीं सकता….

या फिर,

उस आत्माधारी व्यक्ति द्वारा जीवन में सम्पादित उसके शुभ अशुभ कृत्यों का???

किसी बुरे व्यक्ति के देहावसान उपरान्त मन में उसके लिए यदि घृणा भाव उमड़ता है, उसे दबाकर विनम्रतापूर्वक श्रद्धा रूपी अञ्जलि देना,उस व्यक्ति के शरीर में कैद पीड़ित आत्मा का अपमान नहीं ? उस की दुर्दशा हेतु उक्त व्यक्ति को क्षमादान देना तथा कहीं न कहीं उस बुरे व्यक्ति के अवगुणों को स्वीकार्यता देना नहीं होगा ??

जिस आत्मतत्व को भुलाकर व्यक्ति ने कुकर्म किये, उसके हिस्से मृत्योपरांत भी तो अपयश ही आना चाहिए न?

यह विचार मुझे सदैव मथता है,इसी कारण दुरात्मा को मन ही मन गरिया कर बिना श्रद्धांजलि के बनावटी औपचारिकता निभाये निकल लेती हूँ।

साभार : रंजना सिंह

 

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