राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन के लिए समग्र शिक्षा प्रणाली : इतिहास के साथ भौतिक शास्त्र, मेडिकल के साथ समाज विज्ञान विज्ञान

पीएचडी में दाखिला मास्टर डिग्री की पढ़ाई किए बगैर लिया जा सकेगा। मास्टर डिग्री के बाद डॉक्टरेट का विकल्प भी रहेगा। प्रोजेक्ट अगर स्थानीय, राष्ट्रीय या वैश्विक वैश्विक परिदृश्य से जुड़ा होगा, तो इस स्थिति में प्रोजेक्ट का खर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन उठाएगा।
राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन के लिए एक समग्र शिक्षा प्रणाली बेहद जरूरी है। माईगवइंडिया के एक ट्वीट को साझा करते हुए, प्रधानमंत्री ने विगत दिनों आगे कहा कि पिछले सात वर्षों के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन की एक झलक दिखलाने वाला एक अच्छा सूत्र(थ्रेड)यहां पेश है।
अपने ट्वीट में, प्रधानमंत्री ने कहा:
“राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन के लिए एक समग्र शिक्षा प्रणाली बेहद जरूरी है।
पिछले सात वर्षों के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन की एक झलक दिखलाने वाला एक अच्छा सूत्र (थ्रेड) यहां पेश है।”
इसमें यह भीभी सुनिश्चित करना होगा कि 3 से 18 साल के बीच की उम्र के सभी छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा बाल अधिकार (संशोधन) 2019 के दायरे में शामिल किया जाए।
अगर नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2019 की रुपरेखा उसकी परिकल्पना के मुताबिक 2035 तक जमीनी स्तर पर काम करने लग जाता है तो क्या होगा? इसे 31 मई को नौ सदस्यों की के. कस्तूरीरंगन समिति ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। 484 पन्नों का यह दस्तावेज विस्तृत योजना का खाका पेश करता है जिसमें स्कूल पूर्व, स्कूल और उच्च शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक, वयस्क और शिक्षक प्रशिक्षण और नियम-कायदे शामिल हैं।
इसमें यह भीभी सुनिश्चित करना होगा कि 3 से 18 साल के बीच की उम्र के सभी छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा बाल अधिकार (संशोधन) 2019 के दायरे में शामिल किया जाए। एनईपी यह भी सिफारिश करती है कि मौजूदा 10+2 के मॉडल की जगह एक 5+3+3+4 का पाठ्यक्रम और शिक्षा का वैज्ञानिक ढांचा लाया जाए जो बच्चे के संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास की अवस्थाओं पर आधारित हो। यह सिफारिश करती है कि स्कूल पूर्व (3-6 वर्ष की उम्र) के तीन साल को कक्षा 1 और 2 (8 साल की उम्र तक) में मिलाकर इसे एक वैज्ञानिक शिक्षा इकाई बना दिया जाए जिसे ‘बुनियादी चरण’ कहा जाएगा।
पाठ्यपुस्तक के स्थान पर सारी पढ़ाई-लिखाई खेल-खेल में और प्रयोगात्मक होगी। स्कूल परिसरों में  साफ-सुथरे शौचालय, लंबे-चौड़े कमरे, आइटी सक्षम गजट, खेलने की काफी चीजें और हंसी-खुशी का माहौल होगा। कक्षा 1 से 5 में बच्चों को निश्चित घंटों में पढऩे और गणित सीखने का समय मिलेगा। इसी बीच पांचवीं कक्षा तक बच्चों को अक्षरों और अंकों का बुनियादी शिक्षा दी जाएगी। बच्चों में अगर कोई खास रुचि या प्रतिभा है तो शिक्षक उसे पहचानेंगे और विकसित करने के लिए मार्गदर्शन और प्रोत्साहन देंगे।
कक्षा 6 के बाद बच्चों को पाठ्यक्रम से जुड़ी और पाठ्यक्रम से भिन्न विषयों  को लेकर चिंता नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि गणित के साथ खेल, संगीत, पेंटिंग सभी तरह के विषय पाठ्यक्रम में होंगे। बच्चे अपने पसंद के विषय चुनेंगे, इसके साथ कुछ साझा अनिवार्य विषय भी रहेंगे। इस सीढ़ी पर व्यावसायिक प्रशिक्षण देना भी आरम्भ होगा, इससे वे यह निर्धारित कर सके कि कक्षा 9 में पहुंचने पर कौन-सा व्यावसायिक विषय लेना है।
कक्षा 9 से बच्चे 6-6 माह के सेमेस्टर में तीन विषयों की बोर्ड परीक्षा online देंगे। 12 वी पढ़ने के बाद पूर्व की तरह एक विषय लेकर पढ़ने की बाध्यता नहीं होगी बल्कि सभी डिग्रियां बहुविषयक होंगी, इस स्थिति में इतिहास के साथ भौतिकशास्त्र पढऩे की अनुमति होगी। इंजीनियरिंग अथवा मेडिकल डिग्री की शिक्षा हासिल करने के साथ समाज विज्ञान का विषय भी ले सकता है।
डिग्री कोर्स के अंतिम वर्ष में रिसर्च का विकल्प भी होगा या तीन साल का डिग्री कोर्स पूरा करने के बाद एक साल रिसर्च करने का भी विकल्प होगा। इस तरह पहले पीएचडी में दाखिला मास्टर डिग्री की पढ़ाई किए बगैर लिया जा सकेगा। मास्टर डिग्री के बाद डॉक्टरेट का विकल्प भी रहेगा। प्रोजेक्ट अगर स्थानीय, राष्ट्रीय या वैश्विक वैश्विक परिदृश्य से जुड़ा होगा, तो इस स्थिति में प्रोजेक्ट का खर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन उठाएगा।
नई शिक्षा नीति से विषय सामग्री और पाठ्यपुस्तकों के बोझ को कम करना और तोतारटंत पढ़ाई को समाप्त करन है। अब जोर पाठ्यपुस्तकों से सीखने के स्थान पर अपने हाथों से करने, अनुभव और विश्लेषण से अनुभव करने पर होगा। कला, संगीत, दस्तकारी, खेल, योग और सामुदायिक सेवा सहित तमाम विषय पाठ्यक्रम के हिस्से होंगे। पाठ्यक्रम बहुभाषा, प्राचीन भारतीय ज्ञान पद्धतियों, वैज्ञानिक मिजाज, नैतिक विवेक, सामाजिक जिम्मेदारी, डिजिटल साक्षरता और स्थानीय समुदायों के सामने मौजूद बेहद अहम मुद्दों की जानकारी को बढ़ावा देगा।
इन सारे लक्ष्यों को जमीन पर साकार रूप में लाने के लिए एनईपी तक्षशिला और नालंदा के प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों का उदाहरण देती है, जिसमें देश ही नहीं विदेश के भी हजारों छात्र-छात्राएं जीवंत बहु-विषयक वातावरण में अध्ययन कर रहे थे। यह प्रस्ताव करती है कि 2030 तक, सभी एचईआइ इन तीन में से किसी एक प्रकार के संस्थान बन जाएं—अनुसंधान विश्वविद्यालय, शिक्षण विश्वविद्यालय और कॉलेज।

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