दांवपेंच : अंग्रेजीकाल 1931 से लेकर 70 वर्षों में जो नहीं हुआ वह काम विपक्ष PM मोदी से कराना चाहता है…
आम आदमी के जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के उसकी आवश्यकता उसका आधार होना चाहिए न कि जाति। जातिगत जनगणना पर ब्रेक लगाने के लिए वर्ष 2010 में मेरी जाति हिंदुस्तानी आंदोलन भी शुरू किया गया था।आज आवश्यकता फिर उसी आंदोलन की है। सभी वर्ग,धर्म के लोगों के द्वारा इस आंदोलन का अभूतपूर्व समर्थन किया गया था।
भाजपा ने देश में राष्ट्रवाद की भावना को जगाकर पर तमाम जातियों को एक किया है। इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए विपक्ष के पास जातिगत जनगणना ही एकमात्र हथियार रह गया है। जातिगत मतगणना के बाद भाजपा के वोटर जातियों में बंट जाएंगे। फिर इसके बाद सत्ता के केंद्र में होंगे टुकड़े-टुकड़े मिलकर एकजुट हुए राजनीतिक दल। आम आदमी ये कभी नहीं चाहेगया कि जिन जातियों को भाजपा 2014 में के चुनाव में राष्ट्रीयता की भावना जागृत कर एक साथ जोड़ने का प्रयास की है, राष्ट्रीयता की यह भावना धूमिल पड़ जाए। अब तक के सभी चुनावों में भाजपा ने जातिगत राजनीति को राष्ट्रवाद से ही कमजोर किया है।
जाति आधारित जनगणना के समर्थन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य के 10 दलों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। केंद्र ने नहीं बताया कि जाति आधारित जनगणना कब कराई जाएगी, हालांकि आश्वासन जरूर दिया गया है। सवाल यहां पर यह भी है कि आखिर इस जनगणना की अचानक से मांग क्यों होने लगी है?
विडंबना देखिए, जिन लोहिया ने स्वतंत्र भारत में जाति तोड़ो का नारा दिया था, उनके आदर्शों पर चलने का दावा करने वाले राजनेता खुद ही जाति के बाड़े से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
संत कबीर, गुरुनानक देव, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, फुले, बाबासाहेब अंबेडकर सभी ने जातिवाद का विरोध किया है।
उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा से लेकर NDA से अलग हुए सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर भी जाति आधिरत जनगणना की मांग को हवा दे रहे हैं।
ओबीसी को साधने के लिए ही जाति आधारित जनगणना की वकालत कर रहे हैं. बीजेपी चाहती है कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर किसी भी प्रकार से जातियों का बिखराव न हो बल्कि एकजुट रहें।
जनगणना की शुरुआत देश में 1881 में हुई थी और इसके बाद देश में जाति आधारित जनगणना 1931 में अंतिम बार हुई। भारत की आबादी तब लगभग 30 करोड़ थी। लगभग हर सरकार में जाति आधारित जनगणना की मांग उठती रही है। 2011 के दौरान भी मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव जैसे नेताओं ने भी जाति आधारित जनगणना की मांग की थी. मनमोहन सरकार में इस पर एक्शन तो लिया गया लेकिन 2011 की जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए।
स्वतंत्र भारत में जाति आधारित जनगणना को लेकर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना से सामाजिक ताना-बाना बिखर जाएगा। उन्होंने इसके लिए स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया।
जाति आधारित जनगणना का तात्कालिक लाभ चाहे किसी दल को हो लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस योजना के व्यापक प्रभाव होंगे। अगर हम जातिवाद को खत्म करना चाहते हैं तो हमें सारी जातियों के आंकड़े से उठकर ऊपर सोचना होगा।
कहा यह भी जा सकता है कि विपक्षी दलों के पास वर्तमान में मोदी सरकार को घेरने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है, यह अपनी नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए क्षेत्रीय जातिगत राजनीति करने वाले विपक्षी दलों का एक तीर चलाया गया है।


