स्वतंत्र भारत में पहली बार मोदी सरकार ने दिया आम जनता के साथ विपक्ष को भी पद्मश्री पुरस्कार

इसमें कोई शक नहीं है कि आदमी के देश के विकास में योगदान को सम्मान देने की दिशा में मोदी सरकार की यह अभिनव पहल है। पूर्व की सरकारें अपने चहेतों का चयन करती रही थी।
व्हाट्सएप ग्रुप ” कोरबा के नागरिक ” में पद्मश्री पुरस्कार पर एक post के साथ ही कुछ दिन पूर्व  जिला जनसंपर्क कार्यालय की ओर से email पर जारी एक प्रेस नोट पर मेरा ध्यान गया, जिसमें पद्म पुरस्कार के लिए आवेदन मंगाए जाने का उल्लेख किया गया था और यह प्रेस नोट सम्भवतः देश भर में जिला प्रशासन के माध्यम से देशभर में जारी किया गया था। इस संबंध में गूगल पर सर्च करने के दौरान समझ आया कि पद्मश्री पुरस्कार पहले सिर्फ चहेतों को अनुशंसा के आधार पर ही कमरे में तय करके दिया जाता था लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने vip संस्कृति को खत्म कर दिया और आम आदमी के योगदान को पद्म पुरस्कार से जोड़ दिया।
इसमें कोई शक नहीं है कि आदमी के देश के विकास में योगदान को सम्मान देने की दिशा में मोदी सरकार की यह अभिनव पहल है। पूर्व की सरकारें अपने चहेतों का चयन करती रही थी।
केंद्र की सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने वीआईपी संस्कृति और वीआईपी सिंड्रोम को हतोत्साहित करते हुए पहली बार आम आदमी को संदेश दिया है कि शीर्ष नागरिक पुरस्कार केवल एक कुलीन-अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित नहीं हैं।। भारत का आम आदमी भी इन पुरस्कारों को पाने का हक रखता है। संदेश ये भी दिया कि पुरस्कार बगैर किसी तरह के भेदभाव के निष्पक्ष चयन करके पात्रो को ही दिया जाएगा न कि “अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को दे ” की तर्ज पर किसी भी अपात्र को नही दिया जायेगा। वर्ष 2014 के बाद से पद्मश्री पुरस्कार पात्र आम आदमी की पहुंच के दायरे में आए हैं।

मोदी सरकार के पद्म पुरस्कार पहुंचे आम आदमी के द्वार

स्वतंत्र भारत में अपना अलग ही इतिहास रचते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने पहली बार हर गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कारों द्वारा देश की साधारण जनता को उनके असाधारण कार्यों के लिए देश की तरफ से सम्मान दिया।
वे दिन बीत गए जब पद्म पुरस्कार मिलना आम आदमी के लिए एक बहुत बड़ा सपना था। अब पद्म पुरस्कारों के लिए समाज के ” पर्दे के पीछे के नायकों ” के योगदान को मान्यता दी गई है, जिसे अब ‘पीपल्स पद्म’ कहा जा रहा है। तमिलनाडु के 105 वर्षीय पप्पम्मल को जैविक खेती में उनके योगदान के लिए गत वर्ष पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। पम्पममल के पास गांव में उनकी ढाई एकड़ की जमीन है जहां उन्होंने फार्म बनाकर  ऑर्गेनिक खेती करती हैं और इसे बढ़ावा देने का प्रयास लगातार कर रहीं हैं।
तमिलनाडु की 105 वर्षीय पप्पम्मल
छुटनी देवी, जो कभी एक चुड़ैल के रूप में लोगों द्वारा पुकारी गई थीं और उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई शुरू की, मिथिला कलाकार दुलारी देवी और ओडिशा की सामाजिक कार्यकर्ता शांति देवी के साथ, पद्म श्री विजेताओं में शामिल हैं।
छूटनी देवी
झारखंड की छुटनी देवी को कभी डायन कहकर लगातार प्रताड़ित किया गया। इसके बाद उसे मल खिलाने की कोशिश की थी। पेड़ से बांधकर पिटाई की गई। जब लोग उसकी हत्या की योजना बना रहे थे औरउसके पति ने भी साथ छोड़ दिया था, तब चारों बच्चों के साथ गांव छोड़कर चली गई। इसके बाद आठ महीने तक जंगल में रहीं।
आज वह अपने समान प्रताड़ित असंख्य महिलाओं की ताकत बनकर जनजागरण के अभियान में जुटी हुई हैं। आज छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की बिरबांस पंचायत के भोलाडीह गांव में रहती हैं और उन्होंने अपनी जैसी पीडि़त 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया है, जो इस कलंक  के खिलाफ लड़ रहा है।

विपक्ष से जुड़े लोगों को भी पहली बार नामांकित किया गया

 

पीएम मोदी का ही कार्यकाल है, जिसमें वे लोग जिन्हें सत्ता की धारा के विपरीत दिशा में होने के बावजूद पद्म पुरस्कारों से विरुद्ध विचारधारा के लोगों को भी सम्मानित किया गया है। यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री द्वारा प्रेरित मोदी सरकार की सोच के अनुरूप है। उन्होंने अक्सर कहा है कि जिन लोगों ने भारत के महान योगदान में योगदान दिया है, उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए और इस विषय से राजनीति को अलग करने की आवश्यकता है।
पूर्ववर्ती सरकार में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने के  साथ केंद्रीय मंत्री और भारत के राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी को यह मोदी सरकार ही है, जिसने 2019 के अंत में प्रणब मुखर्जी को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया। इसी प्रकार से असम के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय तरुण गोगोई को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।  तीन कार्यकालों तक असम के मुख्यमंत्री के रूप में गोगोई ने कार्य किया और बाद में 2016 में भाजपा के नेतृत्व वाली सर्बानंद सोनोवाल सरकार से हार गए। वर्ष 2020 में नागालैंड के 4 बार के मुख्यमंत्री एससी जमीर को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। जमीर लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विधायक होने के साथ ही राज्यपाल के रूप में भी कार्य करते थे। एक अन्य कांग्रेसी नेता भवानी चरण पटनायक जो कि ओडिशा से तीन बार राज्यसभा सांसद और ओडिशा प्रदेश कांग्रेस समिति के पदाधिकारी रहे थे उन्हें 2018 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 1990 के तोखेहो सेमा में वरिष्ठ कांग्रेस नेता उनकोको 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
वर्ष 2017 में शरद पवार और पीए संगमा (मरणोपरांत) को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। जबकि इन दोनों नेताओं का कांग्रेस पार्टी के साथ अटूट और दीर्घ राजनीतिक कार्यकाल था। पवार कांग्रेस के साथ जुड़े होने के कारण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्रीय रक्षा मंत्री बने और संगमा लोकसभा अध्यक्ष बने। सार्वजनिक जीवन के अंत के दौरान अपने कुछ वर्षों को छोड़कर संगमा ने भाजपा के साथ काम नहीं किया था और पवार की राजनीति भी भाजपा के विरोध की रही है। गैर-कांग्रेसी नेताओं में  राज्यसभा के पूर्व सांसद तरलोचन सिंह को 2021 में पद्म भूषण मिला है। कांग्रेस-पीडीपी सरकार में पीडीपी नेता मुजफ्फर हुसैन बेग जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री रहे, उन्हें 2020 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। एनडीए नेताओं में राम विलास पासवान को इस साल मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान अकाली नेताओं, प्रकाश सिंह बादल और एसएस ढींडसा को भी क्रमशः पद्म विभूषण और पद्म भूषण दिया गया।
इसकी तुलना अगर की जाए तो जब यूपीए सत्ता में रही, तब किसी भी विपक्षी नेता को सम्मानित नहीं किया गया था।इस मामले में मोहन धारिया एकमात्र अपवाद थे। वर्ष2005 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था और वह भी इससे पहले लगभग दो दशक तक राजनीति से दूर रहने के बाद सामाजिक कार्यों के लिए। ऐसे समय में जब राजनीति में कड़वाहट और व्यक्तिगत खटास पैदा हो गई है, मोदी के राजकाज बेहतरीन आयाम गढ़ते हुए आगे बढ़ते हैं।
उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती सरकारों में भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में प्रमुख पद्म पुरस्कार कला, समाज सेवा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, व्यापार, उद्योग, चिकित्सा, साहित्य, शिक्षा, खेलकूद और सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में  कुछ अपवादों को छोड़कर तो 2014 के पहले ये पुरस्कार एक तरह से vip person तक ही सीमित थे। वीआइपी कल्चर की परंपरा को खत्म करने की पहल करने वाली मोदी सरकार ने नए भारत के निर्माण में आम नागरिक के योगदान को महत्व देते हुए पद्म पुरस्कार देने की पूरी प्रक्रिया को अद्भुत तौर पर नए रूप में ला दिया। अब व्यक्ति के सोर्स के बजाय उसके काम को ज्यादा महत्व दिया जाना शुरू हुआ है।

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