जिलाधीश के सामने वृहद लक्ष्य..अपेक्षाओं से भरी नजरें भी अब कलेक्ट्रेट पर टिकी

जिले के किसानो के लिये यह बेहद पीड़ाजनक-त्रासदायी हो जाता है जब स्वयं प्रदेश के मुखिया यहां बोटिंग करने आतें हैं, पर्यटन की योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए स्वयं आगे आकर सबको निर्देशित करते हैं लेकिन खेतों को पानी देने पर कोई चर्चा भी नहीं होती है।

ज्वलंत समस्याओं पर 2 दशक से अरविंद पांडे लगातार लिख रहें हैं.

कोरबा कभी वनों से ढका हुआ पहाड़ों से घिरा एक छोटा सा गांव था। तब उस समय भी यहां के लोग अपने खेतों से एक ही फसल की उपज लेते थे और  आज भी एक ही फसल की उपज ले पातें हैं, जबकि अतीत में ग्रामपंचायत से शहर की यात्रा शुरु करने वाला कोरबा वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य का  एक  प्रमुख उर्जानगर बन गया है।


जून 1973 में साडा का  गठन कर कोरबा के शहरीकरण की शुरुवात हुई थी  और तब से आज 45 वर्षों के सफर में विकासक्रम में कोरबा ने कई अभूतपूर्व औद्योगिक सोपान तय किए है और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में मांग के अपेक्षाकृत उत्कृष्ट प्रदर्शन किया लेकिन अंचल के कृषकों की जवानी पानी मांगते-मांगते बुढ़ापे में बदल गई परंतु उसे  पानी  नही  मिला। जो दो भीमकाय  बांध बने हैं, उनका पानी भी उन्हे नही  मिलता। यह बहुत बड़ी त्रासदी है कि बांध के किनारे रह कर भी किसानो के खेत पानी के बगैर सूखे हैं। विद्युत संयंत्रों  की ओर जाने वाली नहरो से किसानों को पानी नही  मिलता।

कोरबा में  लगने वाले विद्युत संयंत्रों,  खदानो में  किसानो की ही जमीनें  गई। यहां के विकास  में  अपने  पूर्वजो  की बनाई  हुई  हरी-भरी धरती को  सरकार  को  सौंपने  वाले  किसानो  के हिस्से में सुखे  खेत आये। अंचल के विकास के लिये जो भी  अधिकारी यहां पदस्थ हुए, वे भी अन्य प्रांतो  के थे  लिहाजा उन्होने भी  खेतो को पानी देने न तो कोई कार्ययोजना तैयार किया और नहीं गंभीरता दिखाई। जिले के सभी जनप्रतिनिधियो ने  भी खेतों को हरियर करने का सपना किसानों को दिखाया, किसानों के खेत तो सूखे ही रहे, ये अलग बात है कि जनप्रतिनिधियों के जीवन में हरियाली की बहार आ गई।

आज भी किसान  पथरायी  आंखो  से अपने सूखे खेतो को  देखता है और चुनाव के अवसर पर आने  वाले  नेताओ  को  देखता  है कि शायद  इस  बार  पानी  मिल जाये। जंगली इलाको में तो किसान पहाड़ी नालो  के भरोसे रहते है और उन्ही नालों के  भरोसे  अपनी  खेती कर अपना जीवनयापन करते  है।पहाड़ी इलाको के नाले जीवनदायी है  लेकिन  मैदानी  हिस्सों में स्थिति भयावह है जहां नालों  को  पानी  भी  नसीब  नही  होता।

इस अंचल में नदी,नालो और पहाड़ों को पर्यटन  के लिये विकसित  करने  की  योजना  बन  सकती  है,तो किसानों के लिए नहरों की भी योजना बनाई जा सकती है ? सैलानी बांध के पानी में बोटिंग  करते  है और  पीड़ा से भरा हुआ अंचल का किसान सैलानियो  को बोटिंग  करते  देखकर  सोचता  है कि इस अथाह पानी  मे  लोग बोटिंग करतें हैं वह पानी उसके खेतों की दरार पड़ती अन्नपूर्णा भूमि की किस्मत में क्यों नहीं है ?

जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, रामपुर,पाली-तानाखार कटघोरा व कोरबा। इनमें रामपुर मे खेती का क्षेत्रफल सर्वाधिक है और धान का उत्पादन भी सबसे अधिक  इसी  विधान सभा में होता है। कटघोरा के खेत  खदानों की भेंट चढ़ गये।  पाली-तानाखार में कृषि का क्षेत्रफल सबसे कम है जबकि प्रदेश का दूसरा विशालकाय वृहद स्तर पर फैला हुआ बांध “बांगो” भी  यहीं है।

इस स्थिति में जिले के किसानो के लिये यह बेहद पीड़ाजनक-त्रासदायी हो जाता है जब स्वयं प्रदेश के मुखिया यहां बोटिंग करने आतें हैं, पर्यटन की योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए स्वयं आगे आकर सबको निर्देशित करते हैं लेकिन खेतों को पानी देने पर कोई चर्चा भी नहीं होती है।

ऐसे  में  जिले में पदस्थ उच्चाधिकारियों की भूमिका  प्रमुख हो जाती है, उनके सामने एक चुनौती होती है कि किस प्रकार से खेतो को पानी दिला सकते हैं।  अब जबकि जिले को पहली बार छत्तीसगढ़ के मूल  निवासी के रूप में मुखिया मिलीं हैं तो स्वाभाविक है कि बेटी, बहू, बहन के रूप में जिले के किसानों की अपेक्षाएं भी बढ़ गई है कि अब तो उनके उत्थान के लिए भी जिले में कोई है।

जिलाधीश श्रीमती रानू साहू को  भी  इसे  एक चुनौती के रुप मे लेना होगा कि  कैसे खेतों  को पानी  दिया  जाये,  नहरों  का  जाल बिछाया  जाये? पदस्थापना के साथ ही श्रीमती रानू साहू  ने अपनी कार्यशैली  का परिचय  जिस तरीके से दिया है, उससे जिलेवासियों में उत्साह  है। लोगो  को  लम्बे अरसे के बाद जनहित में कलेक्टर  के काम करने का  पॉवर  देखने  को  मिला  है, वें  स्थानीय भी हैं, सो स्पष्ट है कि वें  जनता  में  कभी ना भूलने वाली छवि बनाने से पीछे नही हटेंगी और यही कारण है कि किसानों की आशाभरी नजर इस सावन में काले मानसूनी बादलों पर नहीं टिकी है, स्थाई समाधान के लिए आंखें कलेक्ट्रेट पर लगी हुई हैं।

 

 

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