याचिका : अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड को चुनौती, कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया व केंद्र से मांगा जवाब

अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड को चुनौती देने वाली लखनऊ के अधिवक्ता अशोक पांडेय की जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए 16 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया, हाईकोर्ट प्रशासन व केंद्र सरकार को तलब करते हुए 18 अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक पांडेय ने अपनी याचिका में कहा है कि बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया का वर्ष 1975 में बनाया गया वर्तमान ड्रेस कोड बेतुका है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बार काउंसिल व हाईकोर्ट के उस नियम को भी चुनौती दी है, कोर्ट रूम में जिसमें अधिवक्ताओं को काला कोट, गाउन और बैंड धारण करने का प्रावधान किया गया है।
याचिका में देश के मौसम के प्रतिकूल वकीलों के ड्रेस कोड को बताते हुए कहा गया है कि “भारत एक ऐसा देश है जहाँ 9 महीने तक एक बड़ा हिस्सा लू और गर्मी की लहर की चपेट में रहता है। ऐसे में वकीलों के लिए ड्रेस कोड को बनाते वक्त इसका ध्यान में नहीं रखा गया।”
याचिका में कहा गया है कि भीषण गर्मी के मौसम में एक पागल भी काला कोट और गाउन न पहने, किंतु लम्बे समय से चली आ रही परंपरा को मानने में कुछ वकील व न्यायाधीश फ़ख़्र समझते हैं।
महिला अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड पर प्रश्न उठाते हुए कहा गया है कि सफेद साड़ी या सलवार कमीज पहनना हिंदू संस्कृति और परंपराओं के अनुसार महिला के ‘विधवा’ होने का प्रतीक है और देश में वकीलों के लिए वर्तमान ड्रेस कोड निर्धारित करते समय बार काउंसिल की ओर से दिमाग का कोई उपयोग नहीं किया गया।
उल्लेखनीय है कि इस परंपरा का उद्भव इंग्लैंड से हुआ था और तब सर्वप्रथम काले रंग का कोट अधिवक्ताओं ने 1685 में किंग चार्ल्स द्वितीय के निधन पर कोर्ट के सभी वकीलों को शोक प्रकट करने के लिए काले रंग का गाउन या कोट पहनने का आदेश दिया था।इसके बाद परंपरा के रूप में कोर्ट में काले रंग का कोट पहनने का चलन शुरू हो गया।

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