दिल्ली में ऑक्सीजन कमी के सच(?) के बाद.. राज्यों के खराब वेंटिलेटर का कड़वा सच…

विपक्षी पार्टियों ने पी एम केयर्स पर लगातार विवाद पैदा करने की कोशिश की है। ये अलग बात है कि उन्हें कोई सफलता तो नहीं मिलती लेकिन उनका विधवा विलाप लगातार जारी रहता है।
 राज्यों द्वारा अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा PM Care फंड से ख़रीद कर भेजे गये वेंटिलेटर ख़राब है।
खबरों के अनुसार केंद्र सरकार ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड के इंजीनियरों को पंजाब से शिकायत मिलने पर जाँच के लिए भेजने पर यह बात सामने आई कि वेंटिलेटर ठीक है।  अस्पताल के अधिकारियों द्वारा ही लापरवाही बरती जा रही है और निर्धारित मानदंडों के अनुसार फ्लो सेंसर, बैक्टीरिया, फिल्टर को ही नहीं बदला जा रहा है, या फिर इनके बगैर ही वेंटिलेटर का उपयोग किया जा रहा है। फिर एक बार विपक्ष की पीएम केयर्स और मेक इन इंडिया थीम को बदनाम करने की साजिश धराशायी हुई है।
लगातार मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही थी कि पंजाब में सरकारी डॉक्टर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें पीएम केयर्स फंड के तहत मिले सैकड़ों वेंटिलेटर  ज्यादातर खराब होने के कारण बेकार पड़े हैं।

आरोपों पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का बड़ा खुलासा

मंत्रालय के अनुसार भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड इंजीनियरिंग की एक टीम को पीएम केयर्स ऑक्सीजन वेंटिलेटर की रिपोर्ट के बारे में पूछताछ करने के लिए पंजाब भेजा गया था और जांच में यह बात सामने आई है कि वेंटिलेटर ख़राब नहीं है। बीईएल ने सूचित किया है कि जीजीएस मेडिकल कॉलेज अस्पताल , फरीदकोट में अधिकांश वेंटिलेटर खराब नहीं हैं, जैसा कि मीडिया के एक वर्ग में बताया जा रहा है।
इंजीनियरिंग की टीम ने बताया कि अस्पताल के अधिकारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार फ्लो सेंसर, बैक्टीरिया फिल्टर और एचएमई फिल्टर को ही नहीं बदला जा रहा है, या इन महत्वपूर्ण उपभोग्य वस्तुओं के बिना वेंटिलेटर का उपयोग किया जा रहा है।
उन्होंने आगे बताया है कि कई कर्मचारियों को यह नहीं पता था कि वेंटिलेटर कैसे इंस्टाल किया जाए. यानी यह स्पष्ट है कि केंद्र ने पंजाब को पीएम केयर्स फंड के तहत खराब गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर प्रदान नहीं दिया था। हालाँकि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने लेफ्ट ब्रिगेड की मीडिया के साथ मिल कर इस मामले को तुल देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बीईएल के सीएमडी एम वी गौतम ने बताया कि, “मरीज के आईसीयू से जुड़े फ़्लो सेंसर्स होते हैं और फिर ऑक्सीजन सेंसर भी हैं। जब हमारी टीम फरीदकोट गई तो हमने देखा कि कांसुमबल्स को बदला नहीं गया था। हर बार जब कोई नया मरीज आईसीयू में आता है तो फ्लो सेंसर को बदलना अनिवार्य होता है।“
उन्होंने आगे बताया कि, “कुछ वेंटिलेटर इंस्टालेशन के दौरान फरीदकोट के latitude-longitude के साथ calibrate नहीं किए गए थे। जब भी वेंटिलेटर का स्थान बदलता है, तो उस स्थान के अनुसार ऑक्सीजन का दबाव बदलना चाहिए। ऑक्सीजन सेंसर की शेल्फ लाइफ होती है। यदि आप इसे एक दर्जन रोगियों के साथ 100% ऑक्सीजन के साथ उपयोग करते हैं, तो यह बिगड़ जाएगा, यह काम नहीं करेगा। ऑक्सीजन सेंसर को बदला जाना चाहिए, जो फरीदकोट में नहीं हुआ।“
यही नहीं केंद्र सरकार के एक पत्र से यह भी खुलासा हुआ कि कई राज्यों के अस्पतालों या जहाँ वेंटिलेटर लगाया जाना था, वे उसके लिए तैयार ही नहीं थे। कहीं पाइप से O2 आपूर्ति नहीं है तो कही या पाइप में आवश्यक दबाव नहीं थे। यहां तक कि कहीं कही तो उचित इलेक्ट्रिकल फिटिंग भी नहीं था।
चीड़ make in India से..?
केंद्र ने पूर्व में कहा कि था कि अप्रैल 2020 में 60,000 वेंटिलेटर ऑर्डर किये गए थे और 49,960 से अधिक राज्यों में आवंटित किए गए थे तथा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 12,000 वेंटिलेटर भेजे गए थे। इसमें से करीब 50,000  पीएम केयर्स फंड के तहत भेजे गए। रिपोर्ट यह आई कि लगभग 4,854 वेंटिलेटर अनुपयोगी पड़े हैं जिसके बाद वेंटिलेटर के प्रचार किया गया कि ये खराब है।