ब्रह्ममुहूर्त : ध्यान और प्रार्थनाओं हेतु महत्वपूर्ण क्यों ?

आप ने कमोबेश यह देखा होगा कि देर रात्रि में जगने वाले जीव जंतु जैसे कुत्ता आदि भी सूर्योदय से 90 मिनट पहले से लेकर , भोर की सुबह 3 बजे तक सोते मिलते है और इसके विपरीत  लगभग अधिकांश मनुष्य इस समय मे गहरी नींद में होते है ओर इस समय उनके मस्तिष्क को शांत करने वाली थीटा वेव चलती हैं, जिससे इस समय गहरी नींद आना स्वभाविक हैं।

ब्रम्हमुहूर्त में सूर्य उस जगह पहुंच जाता है, जहां उसका सीधा संबंध पृथ्वी से हो जाता है और उसकी किरणें ठीक 33° पर  जब सूर्य की किरणें धरती के दोनों तरफ एक विशेष कोण में पड़ती हैं और मानव शरीर का सिस्टम व मस्तिष्क विशेष तरीके से काम करने लगतें है और तब एक संभावना बनती है। हमारे ऋषियों ने संभावना के इस्तेमाल करने को लेकर लोगों में जागरूकता लाने की दिशा में काम किया है।

इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा रहस्य आश्चर्य और अकल्पनातीत सामर्थ्य का स्वामी हमारा मानव मस्तिष्क जो मनन, विश्लेषण, ओर रचनात्मकता का असीम ,अपार , अथाह भंडार हैं।

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साधारणत एक व्यक्ति अपने ब्रेन का मात्र 2% पर्सेंट ही उपयोग में ले पाते हैं और आज तक जो इस धरा पर विलक्षण प्रतिभाएं हुई हैं उन्होंने अपने ब्रेन का 10 से 20% परसेंट तक ही उपयोग किया है।

 

प्राचीन भारतीय संस्कृति के मनीषी ऋषि वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क उसकी अपरिमित क्षमताओं एवं किन टेक्निकस द्वारा मानव मस्तिष्क की क्षमताओं का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके,इस पर शोध कर ब्रम्हमुहूर्त को श्रेष्ठ माना है। इस समय मानव मसितष्क पूरी तरह से सचेत, जागरूक ओर तरोताजा होता हैं और इस समय मानव मस्तिष्क द्वारा जो प्रार्थना विचारो के रूप में ब्रह्मांड में भेजी जाती है, वो आपके आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।

….मेरा मंथन,कपिल व्यास सिरियारी

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