एबीएपी ने न्यायपालिका की जवाबदेही तय करने राष्ट्रपति एवं मुख्य न्यायमूर्ति महोदय सर्वोच्च न्यायालय से की मांग

कोरबा। उच्च न्यायपालिका में हाल ही में हुई घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। अधिवक्ता परिषद ने विभिन्न क्षेत्रों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों से बातचीत की है और उच्च न्यायालयों तथा जिला स्तर के अधिवक्ताओं से फीडबैक प्राप्त किया है।

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तत्संबंध में अधिवक्ता परिषद छत्तीसगढ़ प्रान्त के कार्यकर्ता और नियमित विधि व्यावसायरत अधिवक्ता हैं।अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में स्वतंत्र न्यायपालिका की जवाबदेही/उत्तरदायित्व पर प्रस्ताव पारित किया है, जिसे माननीय जिलाधीश महोदय के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति महोदय एवं सम्माननीय मुख्य न्यायमूर्ति महोदय सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली को प्रेषित कर उनका ध्यानाकर्षण किया गया है।

इस ज्ञापन के साथ अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के द्वारा पारित प्रस्ताव की एक प्रति मूल इंग्लिश भाषा में और उसकी एक हिंदी में अनुवाद की कॉपी प्रेषित की गई है।

एबीएपी द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि स्वतंत्रता की रक्षा करते समय जवाबदेही की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। जवाबदेही अपने विवेक के प्रति नहीं बल्कि समाज के प्रति एक स्थायी प्रक्रिया के माध्यम से होनी चाहिए जो पारदर्शी और सत्यापन योग्य हो।

एबीएपी की मांग है कि नियुक्ति और न्यायिक आचरण की निगरानी की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी तरीके से करने के लिए नया कानून लाया जाए, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका हो।

पारदर्शिता को प्रभावी बनाने के लिए कहा गया है कि जब तक यह कानून प्रभावी नहीं हो जाता, तब तक कॉलेजियम के माध्यम से उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया जारी रह सकती है, जिससे अधिक पारदर्शिता लाई जा सके।

ज्ञापन में आगे उल्लेख किया गया है कि वर्तमान पदाधारियों की जवाबदेही से निपटने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीशों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की एक स्थायी समिति का गठन किया जाना चाहिए।  माननीय न्यायाधीशों द्वारा जवाबदेही के लिए की गई बेंगलुरु घोषणा को इस स्थायी तंत्र के माध्यम से व्यवहार में लाया जाना चाहिए।

यदि समिति अभी नहीं बनाई जा सकती है, तो जून 2025 से पहले उच्च न्यायपालिका के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए लोकपाल को अधिकार क्षेत्र दिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सभी बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए क्योंकि छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।

वकालत के क्षेत्र में शुचिता लाने के संबंध में सुझाव देते हुए कहा गया है कि यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के परिवार के सदस्य न केवल उच्च न्यायालय में बल्कि उस राज्य में भी वकालत करते हैं जो उस उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो उन्हें स्थानांतरित किया जाना चाहिए। यदि यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से संबंधित है तो उस परिवार के सदस्य को उस न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक सर्वोच्च न्यायालय में वकालत नहीं करनी चाहिए।

आगे कहा गया है कि नियुक्तियों और मध्यस्थता के लिए सेवानिवृत्ति के बाद तीन साल की कूलिंग अवधि होनी चाहिए।सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु भविष्य की नियुक्तियों के लिए समान हो सकती है।

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