देवेंद्र सिकरवार : ट्रम्प-मोदी.. “ठुकरा के मेरा प्यार इंतकाम देखेगी..”
अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप वस्तुतः राजनेता कम आहत प्रतिशोधी प्रेमी की तरह अधिक व्यवहार कर रहे हैं।
भले ही इस बार जीत गये हैं लेकिन वे अपनी पिछली हार में अमेरिकी डीप स्टेट और उनको वोट न देने वाले अमेरिकियों से चिढ़े हुए हैं और उनकी नीतियों से एक गाने के मुखडे की झलक मिलती है-
“ठुकरा के मेरा प्यार, मेरा इंतकाम देखेगी”
वस्तुतः उनकी वैदेशिक वित्तीय नीतियाँ उनके विरोधी गुटों के आर्थिक हितों पर अधिक चोट करेंगी जिसे वे ‘अमेरिका फर्स्ट’ कहकर प्रचारित कर रहे हैं –
उदाहरण के लिए यूक्रेन-रूस युद्ध विराम से हथियार लॉबी, इजरायल को समर्थन से सोरोस के नेतृत्व वाली यहूदी लॉबी और कनाडा पर टैरिफ वहाँ की सर्वशक्तिशाली एंटी-ट्रम्प लॉबी प्रभावित होगी।
कुल मिलाकर मुझे ट्रंप एक अमेरिकी राजनेता कम एक प्रतिशोधी व्यक्ति अधिक दिखाई दे रहे हैं और इसीलिये उन्हें दूसरे प्रतिशोधी इलोन मस्क का साथ खूब मिल रहा है और दे रहे हैं जो अपने बेटे को ट्रांसजेन्डर बनाने के दोषी लिबरल वोक लॉबी को नष्ट करने के आकांक्षी है।
जहाँ तक भारत और चीन का प्रश्न है मनोवैज्ञानिक रूप से ट्रम्प मोदी से नाराज दिखते हैं।
इसे ऐसे समझिये कि मान लीजिये सोशल मीडिया पर आपकी किसी से भयंकर लड़ाई हो गई और आपने उसे अनफ्रेंड कर दिया लेकिन आपका मित्र अभी भी उस शत्रु की मित्रतासूची में है और यही नहीं बल्कि आपका मित्र बाकायदा उसकी पोस्ट पर नियमित मित्रतापूर्ण टिप्पणी करता है, ऐसे में एक आपका सहज विचार आपके मित्र के प्रति क्या होगा?
आप अपने मित्र को बेवफा के रुप में देखेंगे और उसे पीड़ित करने के लिए उसके शत्रुओं से गलबहियाँ शुरू कर देंगे।
ट्रंप ने बिडेन व मोदी के बीच संबंधों को इसी रूप में देखा है बिना यह सोचे कि मोदी एक व्यक्ति नहीं एक राष्ट्रध्यक्ष हैं और वह व्यक्तिगत मित्रता के लिए राष्ट्र को दांव पर नहीं लगाएंगे।
लेकिन अब तक का ट्रम्प का व्यवहार बता रहा है कि वह मोदी से व्यक्तिगत रूप से नाराज हैं और यह नाराजगी उन्होंने निर्वाचित होने के बाद मोदी को इग्नोर करके, शी जिन पिंग को फोन करके शपथग्रहण समारोह हेतु व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करके जाहिर की है।
उपाय:–
ट्रम्प सफल भले ही हो गये हों लेकिन बौद्धिक स्तर पर वे एक औसत और उजड्ड व्यक्ति हैं। मोदी को सिर्फ उनके आहत अहं को सांत्वना देनी है।
राष्ट्र हित में मोदी को यह करना ही होगा ठीक वैसे ही जैसे भारत के विदेशमंत्री स्व. जसवंत सिंह ने अपनी राजपूती अकड़ को एक तरफ रखकर अमेरिकी विदेशमंत्री मैडलीन अल्ब्राइट को पोखरण के बाद साधा था और उनके घर किचन में चाय बनाने तक की बेतकल्लुफी प्रदर्शित की थी।
इसीलिये मेरी दृष्टि में जसवंतसिंह सर्वश्रेष्ठ विदेशमंत्री रहे हैं।
अब परीक्षा एस जयशंकर जी की है कि वे ट्रंप को साधने में मोदी की मदद कैसे करते हैं।
वैसे हालिया सूचना तक आहत प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपने दर व्हाइट हाउस में देखकर आल्हादित है।
दोनों को हैप्पी वेलेंटाइन डे!
