डॉ. पवन विजय : कुंभ का अमृत
यह आचार्य दीनबंधु पांडेय जी हैं जो भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रमुख पीठ हैं। मेरे अलावा इस चित्र में सीरिया के हसन हैं जो यहां वैदिक अध्ययन कर रहे हैं। हसन से मेरी बात होती है, वह एक बटुक की भांति गुरु के अनुशासन में हैं। उनके स्पष्ट उच्चारण ने मुझे प्रभावित किया। मैने भारतीय अध्यात्म और संस्कृति के प्रति उनके कृतज्ञ भाव के अनुभव किये।
हसन ने बताया कि भारत बोध का विस्तार दुनिया के बचने की गारंटी है। वह अमरता का दर्शन पाने यहां आए हैं।
कुछ बंधु लोग हैं जिन्होंने कुंभ के अमृत पर प्रश्नचिन्ह लगाए कि अमृत जैसा कुछ नहीं है। अमरता कैसे मिलेगी भगवान कृष्ण के हवाले से बताने की कोशिश करता हूं। अमरता अर्थात ‘ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः, न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः’ अमृत यानी नष्ट न होने की औषधि। कुंभ में आप जब जाएंगे तो आपको वह दर्शन प्राप्त होगा, वह दृष्टि प्राप्त होगी जो आपको यह बोध कराएगी कि आप अमर हैं। नाशवान नहीं हैं। यही दृष्टिबोध आपको अभय करेगी। जहां अभय है वहीं अमृत है। आपको कुंभ में अनुभव होगा कि विश्व की पुरानी सभ्यताएं नष्ट हो गईं लेकिन हम नष्ट नहीं हुए, भारत अमर है।
कबीर उसी अमरता का उद्घोष करते हैं, हम न मरब मरिहे संसारा, हमका मिला जियावनहारा।। वह जियावनहारा क्या है? यह वही दर्शन है जिसका उल्लेख भगवान कृष्ण करते हैं।तुम्हे कोई मार नहीं सकता है। हजारों साल से कुंभ इसी अमृत को बांटने आता है। अभय होने का अमृत छलकाता है। जिसने यह अमृत चखा वह अभय हुआ अमर हुआ।
कुंभ ज्ञान की उस परम्परा से जोड़ता है जिसका एक सिरा वेद की ऋचाओं से जुड़ता है और दूसरा लोक के गान से। विराट में एक बिंदु की भांति अपने को अनुभव करेंगे, व्यष्टि का समष्टि में गल जाना एक डुबकी लगाकर जाना जा सकता है।
चीजें बदल रही हैं, दृष्टिकोण बदल रहा है, भारत अटल है।
