प्रसिद्ध पातकी : श्रीविष्णुसहस्त्रनाम से मारवाड़ियों को यह गूढ़ ज्ञानसूत्र घुट्टी में मिला है

आज एक धर्मप्रेमी सज्जन ने प्रश्न किया कि— देवोत्थान एकादशी पर श्रीमद् विष्णु के उठने का भी कोई शुभ मुहूर्त ठहरा है या भगवान ऐसे ही हम-आप सरीखे निद्रा से उठ जाऐंगे।

अजी महाराज!
जो वेदादि से अगम रहे उन श्रीमन्नारायण के शयन वा उत्थान का क्या ही मुहूर्त होगा! श्रीहरि का शयन कोई जीव-जन्तु-मनुष्य सरीखा निद्राकाल न होकर निरंतर लीला का ही एक भाग है, सो जगाते ही जग जाने है। स्यात् देव (श्रीहरि) के जगने से ही जगत में दैव (भाग्य) जगता है; तभी तो भगवान को ‘जगदीश’ कहा गया है। सर्वत्र ब्रह्ममुहूर्त से ही अखिल विश्व आर्तस्वर में बारम्बार कह रहा —

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उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंद
उत्तिष्ठ गरुडध्वज।
उत्तिष्ठ कमलाकांत
त्रैलोक्यं मंगलंकुरु॥

“हे गोविंदा! उठिए,
हे गरुड़ध्वज वाले देव! उठिए,
हे लक्ष्मीजी के स्वामी! आप उठिए और तीनों लोकों के कल्याण के लिए आशीर्वाद प्रदान करिए।”

ग्रहाधिपति सूर्य को अनेक अवसर पर वैदिक वांग्मय में ‘नारायण’ कहा गया है। अस्तु, सूर्य व नारायण दोनों की ही ऊर्जा गायत्री से है। आज श्रीहरि दीर्घशयन से उठ रहे हैं, तो वस्तुत: ये सूर्यदेव का नीचस्थ राशि छोड़ आगे बढ़ने का पौराणिक पर्व है।

आज की संध्या में श्रीहरि से देवोत्थापन के अवसर पर सपरिवार आरती-निरांजना कर प्रार्थना करना दीपपर्व का अपरिहार्य अनुष्ठान है। दीपावली पर पूजित होकर घर-आंगन में विराजित भगवती लक्ष्मी चाव से भगवान चतुर्भुज की मान-मनुहार देखती है। निर्विवाद है कि विष्णु भगवान की पूजा वाले घर में लिछमी माता सदा उनकी पूजापर्यन्त निवास करती है…भगवान को ‘लक्ष्मीनारायण’ तभी तो कहा है। स्थान-स्थान पर सौभाग्यकांक्षिणी भगवती तुलसी से ब्याहने आए शालिग्रामजी के द्वारा तुलसीजी को शिरोधार्य करना समझदार को इशारे सा है कि गृहलक्ष्मी के विचारों को सम्मानपूर्वक स्थान देंवे।

‘श्रीविष्णुसहस्त्रनाम’ भगवान की नामावली का अदभुत संग्रह है। हरजस के जिस भाव और भक्ति से गंगापुत्र देवव्रत भीष्म ने श्री हरि के अनेकानेक रुप-स्वरुप बताते नाम इस नामावली में संग्रहित किए है, उतनी ही वेगवती हरिनेह की धारा में ऊब-डूब कराते आदरणीय प्रसिद्ध पातकी दादा प्रत्येक एकादशी को हरिनामों का बोधगम्य भावानुवाद कर चर्चा से हम-आप सरीखे अकिंचन मनुज मात्र को मुमुक्षु होने का सहज न्यौता लुटाते है। भारतीय ज्योतिष के आधुनिक ऋषितुल्य श्री के.एन. राव साहब के मुख से ‘श्रीविष्णु सहस्त्रनाम’ के वर्णन से तो सभी सुपरिचित ही हैं।

श्री विष्णु सहस्त्रनामावली में भगवान का एक नाम ‘अच्युत’ भी आया है। विष्णु भगवान दया व करुणा के सागर है, वे डूबते गजराज और सभा में संकट से घिरी द्रौपदी की ही भांति ही अपने भक्तों की परीक्षा में भी उनका हाथ नहीं छोड़ते। मारवाड़ियों को यह गूढ़ ज्ञानसूत्र घुट्टी में मिला है। यही कारण है कि मारवाड़ी —चाहे कोई जाति-बिरादरी का हों अथवा देश-परदेस कहीं रह लें—वैष्णव धर्म का पल्ला थामे रहता है। लोक में लिछमीजी का पुत्रमान्य मारवाड़ी समाज, यह भले से जानता है कि विष्णुभगवान को पकड़े रहेंगे तो वे भक्त का हाथ सदा थामे रहेंगे और फिर ‘पुरातन पुरुष’ के साथ-साथ उनकी चंचला भामिनी महालक्ष्मी अपने अष्टस्वरुपों में अपने प्रिय श्रीगणेश,रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ सहित ‘ओरे’ (मारवाड़ी मकानों का सबसे भीतरी कक्ष) के सबसे ‘ऊण्डे-आळे'(सामान रखने के लिए गहराई वाली ताक या खाना) में सदा ही विराजमान रहेंगी।

देवोत्थान एकादशी की हमारे क्षेत्र की पारंपरिक पूजा के दर्शन करें। हमारे यहाँ घर के मुख्य द्वार के ठीक आगे (जिस जगह गोवर्धन वाले दिन पूजा होती है) वहीं आज स्थानशुद्धि कर घर की महिलाएँ मंगल गीत गाकर स्वस्तिकादि अल्पना उकेर उस पर दीपक सजाकर पूजा गोविंदा को निद्रा से जगाने का मनोरथ करती है।

तो आइए, समवेत आराधन करें—
श्रीमन्नारायण नारायण हरि-हरि।
लक्ष्मीनारायण नारायण हरि-हरि॥
देवोत्थान एकादशी की राम-राम।।
जय-जय।

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