डॉ. पवन विजय : क्यों आपका मंदिर न जाना भी भक्ति का एक स्वरूप है..?
मंदिर जाने का अर्थ हमेशा भगवान से कुछ मांगना नहीं होता, बस उन्हे देखने और उत्पन्न भाव को महसूस करने के लिए मंदिर जाइए।
आपके आस पास जो मंदिर हैं उन्हे स्वच्छ रखिए, सप्ताह के आखिरी दिनों में सुबह वहां जरूर जाइए, या शाम को आरती के समय जाइए, हरि के दर्शन करिए सपरिवार।
मंदिर जा रहे हैं तो अपने घर से प्रसाद बना कर ले जाइए, बाजार से मिठाई खरीद कर उसे भगवान को अर्पित करने की बजाय खुद बनाकर भगवान को भोग लगाइए।
नवरात्र आ रहे हैं, अपने घर में दूध की मलाई से पूजा के लिए घी बनाइए। पंद्रह दिन में नौ दिन के लिए जोत जलाने हेतु पर्याप्त रहेगा। यदि वह भी उपलब्ध नहीं है तो मनसा वाचा माता का स्मरण कर लीजिए किंतु बाजार से पूजा वाला घी कभी नही लाइए।
बाहर तीर्थ पर जाइए, घर से खाने पीने का सामान यथा चना सत्तू लड्डू, सूखा भोजन ले जाइए, फल का प्रयोग करिए।
बड़े मंदिरों की दानपेटी में दान मत डालिए। यह पैसा वक्फ बोर्ड और राज्य को जाता है। छोटे मंदिरों के पुजारियों के बच्चों के बारे में पता कर उनकी फीस, या उच्च शिक्षा हेतु आप दान दे सकते हैं।
तीर्थ स्थल को गंदा मत करिए। तीर्थ स्थलों को पिकनिक स्पॉट मत बनाइए।
अगर आप अपनी आदत से मजबूर हैं, तीर्थ स्थलों पर प्लास्टिक, बोतल, कूड़ा फैलाने के आदी हैं तो आपका वहां न जाना भी भक्ति का एक स्वरूप है।
अपने धर्म भाईयों के प्रति सद्भाव और एकात्मता के भाव रखे।