सुरेंद्र किशोर : बिहार को विशेष आर्थिक मदद.. न तो खैरात, न ही कोई राजनीतिक मुआवजा बल्कि नेहरू सरकार के महापाप का प्रायश्चित है

केंद्र सरकार ने रेल भाड़ा समानीकरण के जरिए सन 1948 से सन 1990 तक बिहार को करीब 10 लाख करोड़ रुपए (तब के मूल्य के आधार पर)से वंचित कर दिया
था।
इसके बदले बिहार को कोई क्षतिपूर्ति या विशेष मदद नहीं की गई।
नतीजतन,सन 1970 में भी पिछड़ापन की दृष्टि से देश में बिहार का नीचे से दूसरा स्थान था।
आज भी लगभग वही स्थिति है।

आश्चर्य है कि सन 1948 और बाद के वर्षों की बिहार की राजनीतिक कार्यपालिकाओं ने यह अन्याय होने दिया।
उस दस लाख करोड़ रुपए की कीमत आज कितनी होगी ?कल्पना कर लीजिए।
उतने पैसों से तब बिहार का विकास हुआ होता तो बिहार आज तक पिछड़ा राज्य नहीं बना रहता।
हालांकि अन्य कई तरह से भी बिहार को केंद्र का आर्थिक उपनिवेश बनाकर रखा गया।
वर्षों तक बिहार को ‘‘केंद्र का आंतरिक उपनिवेश’’ कहा गया।
इस पर एक पुस्तक भी आई थी।
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अब आप फिलहाल रेल भाड़ा समानीकरण पर आइए।
आजादी से पहले टाटा कंपनी ने जमशेदपुर में बहुत बड़ा इस्पात कारखाना लगाया।
दक्षिण बिहार में, जो अब झारखंड है,खनिज पदार्थों की भारी उपलब्धता के कारण ही टाटा ने यह काम किया।
तब रेल भाड़ा समानीकरण नीति नहीं थी।
नतीजतन ,खनिज पदार्थों की उपलब्धता का लाभ टाटा कंपनी के रूप में बिहार को मिला।याद रहे कि देश का करीब 40 प्रतिशत खनिज पदार्थ अविभाजित बिहार में उपलब्ध था।
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आजादी के तत्काल बाद की जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस लाभ से अविभाजित बिहार को वंचित कर दिया।
सन 1948 में रेल भाड़ा समानीकरण नीति तय की गई।
इस नीति के अनुसार
खनिज पदार्थों की रेलगाड़ी से ढुलाई का जितना भाड़ा धनबाद से रांची ले जाने पर लगेगा,उतना ही भाड़ा धनबाद से मुबंई या मद्रास का लगेगा।
नतीजतन आजादी के बाद बिहार की अपेक्षा समुद्र तटीय इलाकों में कारखाने अधिक लगने लगे।
क्योंकि वहां से समुद्री मार्ग से उत्पादित सामान का निर्यात करना उद्योगपतियों के लिए आसान था।
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रेल भाड़ा समानीकरण नीति के पीछे केंद्र सरकार का घोषित उदेश्य यह था कि पूरे देश में उद्योग-धंधों का समरूप विकास हो।
पर इसका भारी नुकसान बिहार जैसे खनिज बहुल प्रदेशों को हो गया।
खनिज पदार्थों की राॅयल्टी भी केंद्र सरकार ने कीमत के बदले वजन के हिसाब से तय कर दी।
यानी, बढ़ती कीमत का लाभ भी बिहार को नहीं मिला।
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कृषि तथा दूसरे क्षेत्रों में समरूप आर्थिक मदद देकर तब की केंद्र सरकार बिहार के साथ हो रहे अन्याय के कुप्रभाव को कम कर सकती थी।
पर, पंच वर्षीय योजनाओं के आंकड़े बतातेे हैं कि बिहार में अन्य अनेक राज्यों की अपेक्षा केंद्र की ओर से काफी कम योजनागत व्यय किया गया।
यहां तक कि केंद्र सरकार ने भांखड़ा नांगल योजना में तो पूर्ण मदद की ,पर जब कोसी सिंचाई योजना के क्रियान्वयन के लिए मदद की मांग बिहार से हुई तो केंद्र सरकार ने टका सा जवाब दे दिया।
कह दिया कि बिहार सरकार श्रम दान के जरिए कोसी बांध का निर्माण कराए ।क्योंकि हमारे पास धन की कमी है।
नतीजतन सन 1970 में भी रत्न गर्भा बिहार से अधिक पिछड़ा प्रदेश सिर्फ ओड़िशा था।
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आज बिहार के जो नेतागण यह कह रहे हैं कि विशेष राज्य के दर्जा की जरूरत नहीं है,विशेष पैकेज से ही काम चल जाएगा,वे या तो राजनीतिक कारणों से ऐसा बोल रहे हैं
या फिर आजादी के बाद केंद्र द्वारा बिहार के आर्थिक शोषण की कहानी व आंकड़ों से अनभिज्ञ हैं।
वैसे भी आज हमारे कितने नेता अध्ययनशील हैं ?

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