डॉ. पवन विजय : विदेशी वामी संस्था प्रसिद्ध मालपुए को बेस्वाद क्यों सिद्ध कर रही..!

एक कोई विदेश की वामपंथी संस्था है , यह गाहे बगाहे विश्व के स्वादिष्ट और बेस्वाद व्यंजनों की सूची निकालती रहती है। इसने भारत के सबसे बेस्वाद व्यंजन की सूची निकाली तो उनमें एक नाम मालपुए का था।

दरअसल ये लोग मालपुए को बेस्वाद बताकर न केवल भारतीय मिठाइयों के प्रति हेय भाव दिखा कर उसके मार्केट को प्रभावित करना चाहते बल्कि सम्पूर्ण भारतीय व्यंजनों का उपहास किया करते हैं।

मालपुआ की परंपरा ऋग्वैदिक कालीन युग से शुरू होती है।प्राचीन समय में इस मिठाई को जौ से बनाया जाता था। जौ को दूध में गूंथने के बाद उसे गाय के घी में तलकर फिर शहद में डुबोकर इसे खाया जाता था। इसे अपूप या पुपालिका के नाम से भी जाना जाता है। बाद में इसे गेहूं के आटे से बना कर दूध, मक्खन, चीनी, इलायची जैसी चीजों के साथ मिलाकर बनाया जाने लगा।

चाशनी में डूबे मालपुए और रबड़ी में भीगे मालपुए के दोनो के स्वाद स्वार्गिक होते हैं। कैंडी खाने वाले इस स्वाद को क्या ही जान सकते हैं। वैसे कैंडी शब्द खांड से ही बना प्रतीत होता है। पुष्पेच पंत जैसे लोग मालपुए को मुगलिया व्यंजन बताते हैं जैसे मुगल रेगिस्तान से अपने गधों पर दूध घी गन्ना लाद कर ले आए हों।

भारत स्वाद का देश है, हो सके तो आप मानसोल्लास ग्रंथ पढ़िए, आपको पता चलेगा कि कामधेनु को छोड़कर हम बकरी पाल लिए हैं। धेनु से याद आया, टेस्ट एटलस वालों ने गाय के मांस को सबसे स्वादिष्ट बताया है।

मालपुआ की एक प्रजाति अनरसा है, आजकल पूर्वांचल के बाजारों में गुड़ और चीनी के बने अनरसे खूब मिलते हैं।

नीचे चित्र में रबड़ी मालपुआ नत्थी कर रहा हूं, घर में भी बना सकते हैं, हलवाई के यहां से भी ला सकते हैं। मालपुआ खाने से सिरदर्द और टेंशन दोनों कम होता है।

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