सुरेंद्र किशोर : खेती में निवेश नहीं तो 70 प्रतिशत आबादी का विकास नहीं

खेती में निवेश नहीं तो 70 प्रतिशत आबादी का विकास नहीं
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आर्थिक विकास नहीं होगा तो कारखानों का विकास कैसे होगा ?
70 प्रतिशत लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तो करखनिया माल कौन खरीदेगा ?
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सी.एस.डी.एस.के सन 2014 के एक सर्वे के अनुसार
इस देश के ‘‘किसानों को विकल्प मिल जाए तो भारत के 76 प्रतिशत किसान खेती छोड़ देंगे।
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2014 के बाद कृषि संकट और भी बढ़ा है।
हाल में उसी के मद्देनजर मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे।
पर, सरकार को उन कानूनों को वापस लेने को बाध्य कर दिया गया।

दरअसल खेती में पंूजी निवेश की सख्त जरूरत है।
पर,किसानों के पास पूंजी नहीं है।
मजदूरों से खेती करवाना अब घाटे का सौदा है।
मैं भी गांव का ही मूल निवासी हूं।गांवों से मेरा जीवंत संबंध अब भी है।
किसान-सह -मजदूर तो खुद खेती करते हैं।
पर,जो मझोले ओर बड़े किसान, मजदूरों से खेती कराते थे,वे अब खेत को ठेके पर दे दे रहे हैं।
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जितने दाम की जमीन है,उस अनुपात में रिटर्न नहीं आ रहा है।
इसलिए उनकी आर्थिक तरक्की नहीं हो रही है।उनकी क्रय शक्ति भी नहीं बढ़ रही है।
क्रय शक्ति नहीं बढ़ने से करखनिया माल की बिक्री नहीं बढ़ रही है।नतीजतन उद्योगों का विकास नहीं हो रहा है।
इसीलिए रोजगार के अवसर बढ़ती आबादी के अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं।
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अब सामान्य लोगों और नीति निर्धारकांे सोचना है कि कृषि क्षेत्र का विकास कैसे हो ?
याद रहे कि इस देश के 70 प्रतिशत लोग खेती और खेती से जुड़े धंधांें पर निर्भर हैं।

पर,अपने लोकतांत्रिक देश में यदि सरकार को अढ़तियों-मंडी
के दलालों के हितों और 70 प्रतिशत आबादी वाले किसानों के हित के बीच चुनना होता है तो वोट के चक्कर में सरकार अढ़तियों और मंडी के दलालों के सामने झुक जाती है।
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ऐसा कब तक चलेगा ?

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