सुरेंद्र किशोर : चूंकि इमर्जेंसी वाली मानसिकता अब भी मौजूद है इसलिए 25 जून को ‘‘संविधान हत्या दिवस’’ मनाना जरूरी है..
चूंकि इमर्जेंसी वाली मानसिकता अब भी मौजूद है इसलिए
25 जून को ‘‘संविधान हत्या दिवस’’ मनाना जरूरी है
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राहुल गांधी और उनके लोग संसद के भीतर और बाहर भारी बवाल कर रहे हैं।
मोरारजी देसाई के शासन काल में संजय गांधी व दल ने शाह आयोग के सुनवाई स्थल पर भारी तोड़फोड़ की थी।
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नरेंद्र मोदी सरकार ने 25 जून को हर वर्ष संविधान हत्या दिवस मनाने का एलान किया है।
याद रहे कि 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी सरकार ने
देश में इमर्जेंसी लगाकर पूरे देश को एक बड़े जेलखाने में बदल दिया था।
उसका कारण सिर्फ इतना ही था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की लोक सभा सदस्यता को चुनावी भ्रष्टाचरण के आरोप में रद कर दिया था।
जो काम मोदी सरकार ने अब किया है,यह काम तो सन 1977 में केंद्र में गठित मोरारजी देसाई सरकार को ही कर देना चाहिए था।
साथ ही एक बात और।
आजादी के 25 साल बाद इंदिरा गांधी सरकार ने 1972 में
स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान पेंशन देने का निर्णय किया।
क्योंकि आजादी की लड़ाई के दौरान लाखों लोगों ने अपार कष्ट झेले और बलिदान दिए थे।
इमर्जेंसी (1975-77)में भी लाखों जेपी सेनानियों और उनके परिवारों ने अपार कष्ट सहे।अनेक की जाने गईं।
याद रहे कि इमर्जेंसी में लाखों लोगों ने अपार कष्ट सहे।बलिदान दिए।इमर्जेंसी का इंदिरा शासन, ब्रिटिश शासन से भी अधिक क्रूर था।इंदिरा सरकार ने लोगों के जीने तक का अधिकार भी छीन लिया था।अंग्रेजों ने जीने का अधिकार नहीं छीना था।
पर 50 साल के बाद भी केंद्र सरकार ने देश जेपी सेनानियों व उनके पीड़ित परिवारों के सम्मान पेंशन योजना नहीं शुरू की।
बिहार सहित कुछ राज्यों में जेपी सेनानी पेंशन योजना शुरू हुई।पर,इनमें से कुछ राज्यों में जब कांग्रेस की सरकार बनती है तो जेपी पेंशन बंद कर दी जाती है।गैर कांग्रेसी सरकार बनने पर फिर शुरू हो जाती है।
मोदी सरकार को चाहिए था कि वह संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला करने के साथ ही जेपी सेनानियों के लिए, जो लोकतंत्र के सेनानी थे,राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान योजना शुरू करती।
इमर्जेंसी में जो गिरफ्तार थे,उन्हें तो अपार कष्ट हुए ही,पर जो फरार थे,उन्हें उनसे भी अधिक कष्ट हुए।क्योंकि इंदिरा गांधी के अत्याचारी शासन के आतंक के कारण फरार व्यक्ति को कोई यहां तक कि उसका रिश्तेदार भी,शरण या मदद देने को तैयार नहीं था।इन पंक्तियों के लेखक को भी इमर्जेंसी में अपने फरारी समय में अभूतपूर्व कष्ट हुए थे।
आपातकाल में बिहार सरकार ने फरार पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर के पटना स्थित सरकारी आवास से उनका सामान निकाल कर वीरचंद पटेल पथ पर फेंक दिया।कर्पूरी जी के परिजन ने अपने ही दल के एक एम.एल.सी.से कहा कि आप अपने आवास में यह सामान रख लीजिए।
जिन्हें कर्पूरी जी ने ही एम.एल.सी.बनाया था,उन्होंने भी भयवश सामान नहीं रखा।रखने पर गिरफ्तारी का भय था।
तब कांग्रेस के एक बहादुर विधायक वीरेंद्र कुमार पांडेय ने खतरा उठाकर कर्पूरी जी का सामान अपने आवास में रखवा दिया था।
इसी से आप कल्पना कर लीजिए कि जो राजनीतिक कर्मी इमर्जेंसी में फरार या गिरफ्तार थे,उन्हें कितना अधिक कष्ट झेलना पड़ा होगा।सब तो न विधायक बन सकते थे न मंत्री।
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आपातकाल में बंदी जयप्रकाश नारायण ने इच्छा प्रकट की थी कि किसी राजनीतिक कैदी को उनके साथ रखने का प्रबंध किया जाये।इंदिरा सरकार ने उनकी मांग ठुकरा दी।
दूसरी ओर जब जेपी आजादी की लड़ाई के दौरान लाहौर जेल में थे तो जेपी की इच्छा पर अंग्रेजों ने डा.लोहिया को कैद में जेपी के साथ रहने की व्यवस्था कर दी थी।
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मोरारजी देसाई की सरकार ने इमर्जेंसी के अत्याचारों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया था।
शाह आयेग के कोर्ट में घुसकर संजय गांधी तथा उनके समर्थकों ने भारी तोड़- फोड़ की थी।
आज जब राहुल गांधी संसद के भीतर और बाहर जिस तरह का बवाल कर रहे हैं,उससे मोदी सरकार के कान खड़े हुए होंगे।
समझ में आया होगा कि इमर्जेंसी वाली मानसिकता नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के जेहन में लगातार बरकरार है।इसलिए भी 25 जून को HAR साल याद करना जरूरी है।
इंदिरा चाहती थीं कि भ्रष्टाचार के बावजूद उनकी लोस सदस्यता न जाये।
आज राहुल-सोनिया चाहते हैं कि उन पर डा.स्वामी द्वारा सन 2012 या 13 में शुरू किए गए भ्रष्टाचार के मामलों में मोदी सरकार उनकी मदद करे ।जबकि यह होना नहीं है। हंगामे का मूल कारण यही है।
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शाह आयोग ने अपनी रपट में अत्याचारों की विस्तृत चर्चा की है।
शाह आयोग ने कहा था कि आपातकाल की घोषणा का निर्णय केवल प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी का था।सिर्फ गृह मंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी को इसकी पूर्व सूचना दी गई थी। आपात स्थिति की घोषणा के निर्णय पर मुहर लगाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की
बैठक बाद में ही बुलाई गई।
25 और 26 जून 1975 के बीच की रात में घोषित आपातकाल को लेकर शाह आयोग की रपट में दर्ज कुछ पंक्तियां यहां उधृत की जा रही हैं।
‘प्रधान मंत्री के सचिव श्री पी.एन.धर ने (शाह आयोग के समक्ष) अपने बयान में बताया कि उन्हें 25 जून 1975 को 11.30 बजे रात प्रधान मंत्री निवास बुलाए जाने पर ही इस बारे में पता चला ,जब उन्हें आकाशवाणी पर प्रधान मंत्री द्वारा दिए जाने वाले भाषण का मसौदा पढ़ने को दिया गया।’
कैबिनेट सेके्रटी श्री बी.डी.पांडेय को 26 जून को सुबह 4.30 बजे प्रधान मंत्री निवास से फोन मिला और कहा गया कि उस दिन सुबह 6 बजे मंत्रिमंडल की बैठक होनी है।
आपात स्थिति की घोषणा के बारे में सबसे पहले उन्हें सूचना उसी सुबह मिली।वे आश्चर्यचकित थे कि किसने और कैसे 25 और 26 जून के बीच की रात को इतनी संख्या में गिरफ्तारियां कराईं ।
सामान्यतः इतनी जल्दी कार्रवाई के लिए निदेश गृह मंत्रालय के जरिए भेजे जाते हैं जिनके पास संचार की अपनी व्यवस्था होती है।’
‘बी.डी.पांडेय के अनुसार 26 जून के पहले किसी भी मंत्रिमंडल की बैठक में आपात स्थिति की घोषणा की आवश्यकता या देश में ऐसी किसी परिस्थिति के बारे में ,जिसमंे ऐसी घोषणा आवश्यक हो,कोई बात नहीं हुई थी।’
आसूचना ब्यूरो के निदेशक श्री आत्मा जयराम ने कहा कि 26 जून को कार्यालय जाने के बाद उन्हें आपातस्थिति की घोषणा के बारे में पता चला।’
श्री एस.एल.खुराना ,जो भारत सरकार के गृह सचिव थे, 26 जून की सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद ही इसके बारे में जान पाए,जिसके लिए उन्हें सूचना 6 बजे ही मिली थी।तदनुसार ,वे मंत्रिमंडल की बैठक में सुबह 6.30 बजे ही आ पाए जबकि बैठक खत्म हो चुकी थी।
