समर प्रताप : जातिगत श्रेष्ठता या भेदभाव.. सब निगले जाओगे आज नही तो कल…
तुम्हारी धार्मिक तौर पर यही कमजोरी है कि पहले तो सब खुद को जातिगत श्रेष्ठ समझते हो।जातिगत भेदभाव आज भी करते ही नही बल्कि किसी को भी अपने बराबर समझना ही नही चाहते हो ।
सबको एक दूसरे से महान बनना है।
ज्ञान नही है तब भी कोई ब्राह्मण बना हुआ है।
दुकान खोल के बैठा है वो भी क्षत्रिय बनकर खुश है।
लहसुन बोने लायक जमीन नही तब भी कोई किसान बना हुआ है।
तो कोई शानदार अफसर बनकर 4 पीढ़ी से मौज लेकर भी खुद को बस दलित बनाये बैठा है।
जाति देखकर सिर्फ सवर्णों द्वारा ही भेदभाव नही होता बल्कि अगर कोई दलित से अफसर बन जाता है तो वो सवर्ण देखते ही उन्हें जेल में डालना चाहता है चाहे गलती हो या न हो ।
कोई राजे महाराजे की कहानी में खुश है तो कोई शोषण की 5 हजार साल पूर्व की कहानियों में।
अपने वर्तमान में कोई नही जीना चाहता है।
अपने आज को कोई ठीक नही करना चाहता है।
बस कोई हम ये थे में है तो कोई हमारे साथ ये किया में खुश है।
इसके अलावा आगे बढे तो पार्टीयो के हिसाब से धर्म साथ मानना या नही मानना।
उसके बाद आते है खाने के हिसाब से सर्टिफिकेट देने वाले।
नॉनवेज है तो कैसा हिन्दू।
अब वीगन के हिसाब से तो कोई हिन्दू ही नही बचेगा जाओ अब बन लो शाकाहारी।
और जिन्होंने सबसे ज्यादा भट्टा गोल किया है वो 50% कथावाचक ।
आधे तो लड़कियों के जैसे ही मटकते रहते है।राधे राधे वाले आधे तो खुद ही राधा बने घूम रहे है।
हालचाल बोलभाव से कथावाचक कम गे ज्यादा लगते है।
अपनी मन मर्जी के भगत और पंथ बनाकर बैठ जाते है।
इन सब से बाहर आओ।अपना अपना जीवन जीवो।
और जैसे पहले था कर्म प्रधान वैसे बनो।
जातिगत श्रेष्ठा या जातिगत भेदभाव कम करो।नही सब निगले जाओगे आज नही तो कल ।।
