डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : योग शारीरिक से अधिक बौद्धिक – मानसिक लेकिन इससे अधिक…
‘योग दिवस’
यह अच्छा है कि वर्ष में एक दिन शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करके योग को स्मरण कर लिया जाता है, किन्तु योगमार्ग जीवन की एक सतत् प्रक्रिया है। योग किसी एक दिन में नहीं सधता और न ही शरीर के भाव-भंगिमाओं तक ही सीमित है, फिर भी कम से कम एक दिन योग का स्मरण करना प्रेरित करता है।
योग जीवन की समग्रता है। योग जितना शारीरिक है, उससे अधिक मानसिक और बौद्धिक है और इन सब से अधिक योग व्यावहारिक है, इसलिए योग न केवल शारीरिक है और न ही मानसिक है, बल्कि योग शरीर और मन के साथ जीवन के व्यवहार को समग्रता के साथ जोड़ने की प्रक्रिया है।
जब शरीर की भंगिमाओं को मन के साथ जोड़ा जाता है तो वह भंगिमा आसन बन जाती है और बिना मन के साथ जोड़े वह मात्र व्यायाम होता है। लेकिन मन शरीर के साथ कैसे जुड़े? यह कोई एक दिन में घटने वाली घटना नहीं है। यह दीर्घकाल तक निरन्तर सत्कार के साथ अभ्यास करने से घटित होता है (स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः)। मन शरीर के साथ नहीं जुड़ा है और क्रिया हो रही है तो वह योग नहीं व्यायाम है।
मन व्यवहार के साथ जुड़ा है और व्यवहार मन के साथ जुड़ा है, इसलिए जब व्यवहार बदलता है तब मन सधता है और जब मन सधता है तब उसका शरीर के साथ जुड़ाव होता है और तब शरीर की जो क्रिया होती है उसे योगासन कहते हैं, इसलिए योग में आसन तीसरी अवस्था है। योग का प्रारम्भ व्यवहार से होता है जिसे यम और नियम कहते हैं। यम अर्थात् सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय। नियम अर्थात् शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान। ये दश व्यवहार में जितना उतरते हैं योग उतना ही सधता है।
‘युजिर् योगे’ अर्थात् योग को जोड़ने के जिस अर्थ में प्रयोग किया जाता है वह केवल शरीर, मन, बुद्धि और चित्त का ही जुड़ना नहीं है, बल्कि इस जुड़ाव से जो घटित होता है वह व्यक्ति को समाज, प्रकृति, पर्यावरण, सृष्टि और समष्टि तक से जोड़ता है। यह समष्टि से जुड़ने की घटना ही समाधि है।
अतः योग का कोई दिन नहीं होता, योग का कोई काल नहीं होता, योग जब जीवन मे घटने लगता है तो सतत् घटता है, जब तक उसका पर्यवसान पूर्णता में न हो जाए, परन्तु योग जीवन में घटना कैसे प्रारम्भ हो यही कठिन है।
योग दिवस पर समाज द्वारा योग का स्मरण किया जाना भी जीवन में योग के घटने की एक संभावना है।
साभार – डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह