प्रसिद्ध पातकी : “विधेयात्मा” गीता – विष्णुसहस्रनाम में.. एकादशी की राम-राम

विधेयात्मा : ऐसा ठाकुर जो राजी-खुशी बिक जाए बेमोल

इस बार गर्मी अपने पूरे शवाब पर है। पर मुझे यह सूखी गर्मी अच्छी लगती है। इसे यह झेलकर मन ही मन खुश रहता हूं कि बेटा अभी तो इसकी मैया आने वाली है यानी उमस भरी चिपचिपी गर्मी जिसमें मानों कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।भैया, इसलिए हमें सूखी गर्मी अच्छी लगती।


तो राजन, इसी प्रकार मन और बुद्धि को समझाते-मनाते रहने का नाम जीवन है। मन के खेलों में उलझ गये तो बस कंदुक बने रहो। जिंदगी के मध्याह्न के थपेड़े झेलते रहो। अन्यथा मन को काबू करने की कला सीखो। रातों-रात नहीं। धीरे-धीरे। यह कोई एक जन्म की कवायद नहीं है। जन्म-जन्मांतर चलती।इंस्टेंट एनलाइंटमेंट का आश्वासन शेषावतार पंतजलि महाराज ने भी दिया है।
भीष्म दादा ने भगवान विष्णु का एक नाम बताया है।।”विधेयात्मा’
स्वक्षः स्वंगः शतानन्दो नन्दिर् ज्योतिर्-गणेश्वरः।
विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्चिन्नसंशयः।।

यह विधेय शब्द संस्कृत साहित्य में तमाम तरह से बरता जाता है। भगवान ने गीता में इस शब्द को योग की टकसाली भाषा के अर्थ में इसका प्रयोग किया है।अर्थात जिसका मन उसके वश यानी कहे में हो।।।
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ।।

 

पर भक्त का मन कुछ भिन्न अणुओं से बना होता है। वह भगवान के नाम में नयी नयी अर्थ छटाएं खोजकर आनंदित होता है। भगवान के चरित्र और लीलाओं में नित्य नये अर्थ और आनन्द का अनुसंधान करता हो। उसे रस स्वयं नहीं लेना। भगवान को अर्पित कर उसका आनन्द लेना है। इसी भक्ति से साई रीझता है। भगवान शबरी से यही बात कहते हैं, ‘‘कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउ. एक भगति कर नाता।’’ भक्तिमयी शबरी ने अपनी गुरु के आदेश का पालन किया। उनके गुरु मतंग ऋषि ने उन्हें आदेश दिया था कि एकाग्रचित्त से ध्यान परायण होकर यहाँ स्थिर रह। यह जो मंत्र है, उसका अर्थ एक दिन स्वयं चलकर तेरे पास आ जाएगा। और भक्तिमयी शबरी की साधना से अभिभूत होकर ‘सनातन परमात्मा दशरथ के पुत्र राम’ स्वयं चलकर वहां आये क्योंकि वे ‘विधेयात्मा’ हैं। उन्होंने शबरी के सुरस ‘कंद मूल फल’ को न केवल चाव से खाया बल्कि उनकी बारंबार बड़ाई भी की। त्रैलोक्य का स्वामी जंगली कंदमूल के लिए बेमोल बिक जाए, बस समझ लीजिए यही विधेयात्मा है।

एकादशी की राम राम

पुनश्च: मैं आज और कल दोनों दिन निर्जला एकादशी अलग-अलग कारणों से मनाऊंगा।

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