सुरेंद्र किशोर : बाबू जगजीवन राम – “इस देश की जनता निरक्षर जरूर है,किंतु बेवकूफ तो कत्तई नहीं।’’
बाबू जगजीवन राम ने कभी ठीक ही कहा था कि ‘‘इस देश की जनता निरक्षर जरूर है,किंतु बेवकूफ तो कत्तई नहीं।’’
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1.-इस देश के अधिकतर मतदातागण राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में फर्क करना जानते हैं।
2.-सन 1989 में अधिकतर मतदातागण राजीव गांधी और वी.पी.सिंह के बीच फर्क समझ गये थे।
3.-सन 1977 में अधिकतर मतदातागण इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच फर्क जान गये थे।
याद रहे कि कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे साहब ने हाल में कहा है कि यदि ‘इंडिया’ ब्लाॅक को बहुमत मिलेगा तो राहुल गांधी प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
उस पर शिव सेंना(यू.बी.टी.)के सांसद संजय राऊत ने कहा कि राहुल गांधी इस पद के लिए न सिर्फ कांग्रेस की पसंद हैं,बल्कि देश की भी पसंद है।
याद रहे कि जब इंडी गठबंधन ने नीतीश कुमार को प्रधान मंत्री पद का भावी उम्मीदवार नहीं बनाया ,तो उसी समय यह स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस की नजर में राहुल गांधी हैं।
उसके बाद तो अधिकतर जनता को भी यह बात समझ में आ गयी कि उसे मोदी और राहुल के बीच ही चुनना है।
फिर तो अधिकतर जनता को समझ में आ गया कि किसे वोट देना है।
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बांग्लादेश युद्ध में विजय (1971)की पृष्ठभूमि में आंध्र प्रदेश के एक कांग्रेसी सदस्य ने (अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं)संसद में कहा कि
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ‘दुर्गा’ हैं।
(यानी, दुर्गा की अवतार हैं ?!)
उस सांसद की इस उक्ति को तब के ‘‘गोदी मीडिया’’ ने वाजपेयी के मुंह में डालकर छाप दिया।
उसके बाद वाजपेयी जीे लोक सभा के स्पीकर ढिल्लो साहब से खंडन करने की विनती करते रह गये ,पर
स्पीकर ने अटल जी की एक न सुनी।
ढिल्लो साहब को लगता था कि खंडन कर देने से अगले कई विधान सभाओं के चुनावों में कांग्रेस को उसका राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा।
लाभ मिला भी।
उसी का लाभ उठाने के लिए उत्तरप्रदेश विधान सभा का चुनाव पूर्व निर्धारित समय (1974)से दो साल पहले यानी 1972 में ही करवा दिया गया था।जबकि तब के यू.पी.के मुख्य मंत्री और कांगे्रस प्रदेश अध्यक्ष ने समय से पहले चुनाव कराने का विरोध किया था।चुनावी लाभ मिला भी।
याद रहे कि तब लगभग सारी संस्थाएं प्रधान मंत्री की मुट्ठी में थींें।
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इमरजेंसी (1975-77) में कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष डी.के. बरूआ ने नारा दिया–
‘‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा।’’
यानी, उनके अनुसार दोनों शब्द पर्यायवाची हंै।बरूआ जी यही तो कह रहे थे।
इस बड़बोलापन और ऐसे ही अतिवाद का नतीजा हुआ कि 1977 के लोक सभा चुनाव में कांगे्रेस पार्टी केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी।
यही नहीं,इंदिरा और संजय दोनों लोक सभा चुनाव हार गये।
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सन 2024 के लोक सभा चुनाव की पृष्ठभूमि में कांग्रेसनीत गठबंधन ने अपना नाम रख लिया है–‘‘इंडिया।’’
यानी, एक बार फिर खुद को इस राष्ट्र का पर्यायवाची बना देने और चुनाव में उसका लाभ उठा लेने की कोशिश की गयी है।
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एक्जिट पोल के नतीजे इंडी गठबंधन खास कर कांग्रेस के लिए अपशकुन के संकेत दे रहे हैं।
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ठीक ही कहा गया है कि जो इतिहास से नहीं सीखता,वह उसे दुहराने को अभिशप्त होता है।