दयानंद पांडेय : यह किस ग्रह के लोग हैं ? जो इतनी नफरत , इतना जहर लिए घूमते-फिरते हैं ?
हमारे गोरखपुर में दो बहुत पुराने मंदिर हैं। एक बाबा गोरखनाथ का मंदिर । बड़ी मान्यता है इस मंदिर की । इस गोरखनाथ मंदिर के महंत सर्वदा से ही क्षत्रिय ही होते आए हैं । अभी आदित्य नाथ हैं । इस के पहले अवैद्यनाथ थे इस के पहले नौमीनाथ , इस के पहले दिग्विजय नाथ यह सभी क्षत्रिय ही हैं । इस मंदिर के तमाम उप मंदिरों में तमाम योगी हैं जो किस जाति के हैं , कोई नहीं जानता । कम से कम यहां दुनिया भर से आने वाला श्रद्धालु तो नहीं ही जानता । यहां आने वाला श्रद्धालु किस जाति का है , किस धर्म का है कोई नहीं जानता । न इस बाबत कोई जांच होती है।
जांच होती भी है कभी कभार तो बस सुरक्षा जांच होती है । जो वहां का जिला प्रशासन करता है । यही बात मैंने काशी के विश्वनाथ मंदिर में भी देखी है। या किसी भी मंदिर में यही सुरक्षा जांच देखता हूं, जो वहां का प्रशासन करता है । मंदिर के लोग नहीं । बड़े-बड़े सेक्युलरिस्ट यथा राजा दिग्विजय सिंह , लालू प्रसाद यादव इस गोरखनाथ मंदिर में आ कर इन के चरण छूते हैं । अखबारों में ऐसी फोटुएं छपी मैं ने देखी हैं । दूसरा मंदिर है डोमिनगढ़ के पास बसियाडीह का मंदिर । यहां के महंत एक माली हैं । माली मतलब फूल तोड़ने वाले , शादी के लिए मौर बनाने वाले । मतलब सवर्ण नहीं हैं । पिछड़ी जाति के हैं। लेकिन क्या ब्राह्मण , क्या यह , क्या वह सब इन के पैर छूते हैं । किसी को तकलीफ नहीं होती।
इन मंदिरों में लोग अपने पारिवारिक कार्य यथा मुंडन , विवाह आदि भी करते हैं । सभी जातियों के लोग । किसी को कोई दिक्क़त नहीं होती । तो यह कौन लोग हैं जिन्हें मंदिरों में बहुत दिक्क़त होती है । ब्राह्मण वहां न होते हुए भी उन्हें रोक दिया करते हैं ? यह समाज में जहर फैलाने वाले लोग कौन हैं ? अरे आप की मंदिर में श्रद्धा नहीं है , विश्वास नहीं है , मत कीजिए। लेकिन इस तरह की नफरत फैलाने वाली जहरीली बात भी तो मत कीजिए।
मौक़ा मिलने पर मजारों , चर्चों , गुरुद्वारों , बौद्ध मठों में भी मैं जाता हूं। शीश नवाता हूं उसी श्रद्धा और उसी भावना के साथ , जिस भावना से मंदिर जाता हूं। वह चाहे लखनऊ में खम्मन पीर बाबा की मजार हो , दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मजार हो या अजमेर शरीफ । इसी तरह लखनऊ की कैथड्रेल चर्च हो , दिल्ली , मुंबई , गोरखपुर की कोई चर्च हो , शिलांग की चर्च हो या फिर लखनऊ से लगायत दिल्ली तक के गुरुद्वारे , हर जगह जाता हूं । कुशी नगर, सारनाथ से लगायत गंगटोक तक के बौद्ध मठों में जाता हूं। सपरिवार जाता हूं , शीश नवाता हूं । यह मेरा अपना यकीन है , मेरी आस्था है।
मैं बहाई समुदाय के लोटस टेम्पल भी गया हूं । लेकिन इन मजारों , चर्चों , गुरुद्वारों , बौद्ध मठों में भी मुझ से कभी नहीं पूछा गया कि किस धर्म और जाति के हो ? जैसे कि किसी मंदिर में कभी नहीं पूछा जाता । तो यह कौन लोग हैं जिन्हें हर जगह तंग किया जाता है ? यह किस ग्रह के लोग हैं ? जो इतनी नफरत , इतना जहर लिए घूमते-फिरते हैं ? इन की जहरीली बातों को हम लोग सुनते भी क्यों हैं चुपचाप ? इन का प्रतिकार क्यों नहीं करते खुल कर ? आप आस्तिक हैं , नास्तिक हैं , यह आप का अपना निजी फैसला है। आप मत मानिए , मंदिर , गिरिजा , मजार , मस्जिद, गुरुद्वारा । यह आप का अपना चयन है । लेकिन इस सब के नाम पर जहर फैलाना , गलत है , यह आप का निजी मसला नहीं है । बंद कीजिए यह जहरीली और हिंसक जुबान ! यह मनुष्यता का हनन है , मनुष्य विरोधी है यह सब मूर्खता , यह जहरीली हिंसा है।