हर्षिल खैरनार : सब्जेक्ट

फ़िल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में एक क़िरदार था ‘सब्जेक्ट’ जिसका असली नाम था आनंद लेकिन वर्षों से किसी तरह की कोई शारीरिक प्रतिक्रिया न देने, ज़रा सा भी न हिलने डुलने, यहाँ तक कि पलक तक न झपकाने की वजह से उसको नाम दे दिया गया ‘सब्जेक्ट’

‘सब्जेक्ट’ मेडिकल कॉलेज में पढ़ने आने वाले छात्रों के लिये भी कौतूहल का सब्जेक्ट (विषय) था। सब केवल उसे देखते, निहारते और चले जाते।

ये देश भी वर्षों से ऐसा ही एक ‘सब्जेक्ट’ बना हुआ था, जो कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देता था, न हिलता था, न डुलता था, न पलकें झपकाता था। बस एकटक अपने साथ हो रहे न्याय, अन्याय, अच्छे, बुरे को नियति मानकर सब सहन कर रहा था।

-हर्षिल खैरनार

जब चाहे आतंकियों की गोलियों, बम धमाकों का शिकार बन जाता था, विदेशों में उसको कोई पूछता नहीं था, अदना सा पाकिस्तान जब चाहे उसके साथ जो मन में आये कर जाता था। असल में ये देश ‘सब्जेक्ट’ था नहीं लेकिन उसे ‘सब्जेक्ट’ बनाया गया। एक परिवार ने लोकतंत्र के नाम पर किसी तानाशाह के जैसे इस देश पर राज किया, उसके दरबार का केवल एक ही नियम था या तो झुक जाओ या कट जाओ।

कहने को ये देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन इसकी हर संवैधानिक संस्था को, इसके सिस्टम को इस तरह सड़ाया गलाया गया, तोड़ा मरोड़ा गया कि ये सब केवल एक परिवार के इशारों पर नाचने के लिए बाध्य हो गए, यहाँ तक कि न्यायिक व्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही।

स्वतंत्रता के बाद से सिर्फ 1998 से 2004 और 2014 से 2019 का कालखंड ही पूरी तरह ग़ैर कांग्रेस शासित रहा है। 1998 से 2004 अटलजी का कार्यकाल रहा, घटक दलों को साथ लेकर अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाली भी ये पहली सरकार थी। उसके पहले की हर ग़ैर कांग्रेस शासित सरकार का क्या हश्र हुआ ये सबको पता है। बिना सत्ता के कांग्रेस, खासकर देश को अपने बाप की जागीर समझने वाले परिवार और उसके चाटुकारों की स्थिति जल बिन मछली जैसी हो जाती है।

अटलजी का कार्यकाल परिवार और उनके चरण चाटुकारों को बेहद नागवार गुज़र रहा था। अटलजी ने देश को पहले से अच्छी स्थिति में ला दिया था लेकिन अपने सबसे वफ़ादार कुत्तों यानी कि ‘लुटियंस गैंग’ यानी पत्रकारों की वो बिकी हुई जमात जो अपने आकाओं के कहने पर कुछ भी करने को तैयार रहती है, उसकी मदद से परिवार और उसके खास चरण भाटों ने अटलजी को घेरना शुरू किया। अति उत्साह में स्व. प्रमोद महाजन जी “शाइनिंग इंडिया” का नारा ले आये और इसी “शाइनिंग इंडिया” को ताक़तवर लुटियंस गैंग ने अटलजी के खिलाफ़ इस क़दर इस्तेमाल किया कि सब कुछ अच्छा, बेहतर करने के बावजूद अटलजी की सरकार चली गई, इसी से क्षुब्ध होकर स्व. अटलजी ने सक्रिय राजनीति से सदा के लिए सन्यास ले लिया था।

“पूत के पाँव पालने में नज़र आ जाते हैं” कांग्रेस को भी 2002 में ही नरेंद्र मोदी की ताक़त, कठोरता, निडरता का अंदाज़ा हो गया था। उसको लग गया था कि अगर इस पूत को पालने में ही ख़त्म नहीं किया गया तो हमारे लिए बहुत बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है। लिहाज़ा फिर एक बार अपनी वफ़ादार गैंग को काम पर लगाया गया और मोदी को रोकने, बदनाम करने, बर्बाद करने की हरसंभव कोशिशें की गईं। इशरत जहां एनकाउंटर मामले में आज के भाजपा अध्यक्ष और तब के गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को जेल में डाल दिया गया। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये पहला और अंतिम उदाहरण है जब किसी राज्य के इतने बड़े स्तर के मंत्री को पद पर रहते हुए जेल में डाल दिया गया।

तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को घंटों सीबीआई दफ्तर में बिठाकर पूछताछ की गई, उन पर झूठे आरोप लगाए गए। अगर आप कड़ियों को जोड़ना शुरू करेंगे तो पाएंगे कि साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, असीमानंद को वर्षों तक झूठे आरोपों में जेल में बंद रखकर यातनाएं देना, इशरत को बेटी बताना, बाटला हाउस एनकाउंटर पर आतंकियों के लिए आँसू बहाना, भगवा आतंकवाद, हिन्दू आतंकवाद, 26/11 आरएसएस की साज़िश बताना ये सब उसी कड़ी का हिस्सा थे।

क्योंकि ‘पारखियों’ को अंदाज़ा हो गया था कि इस मोदी के आगे बढ़ने की हर राह में रोड़े अटका दो वरना ये हमें रोड़ पर ले आएगा। लेकिन नियति भी कुछ और ही तय करके बैठी थी। जिस मोदी को रोकने के लिए परिवार और लुटियंस गैंग ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी उसी मोदी को नियति ने इन सबसे ताक़तवर बनाकर इन्हीं की छाती पर मूँग दलने के लिए सत्ता के सिंहासन पर बिठा दिया। जिस पाकिस्तान के पास परमाणु बम होने की धमकी अपने ही देशवासियों को देकर उसे आतंकवाद फैलाने दिया गया उसी पाकिस्तान को वो दो दो बार घर में घुसकर मार आया।

सत्ता संभालने के बाद से मोदी ने ‘सब्जेक्ट’ बन चुकी इस देश की जनता को जादू की झप्पी से, अपने कामों से, अपने समर्पण से इतना आंदोलित कर दिया कि वो प्रतिक्रिया देने लगी, उसके निष्प्राण शरीर में पहली बार हलचल महसूस होने लगी। जब परिवार और उसके खासमखास चरण भाटों को लगा कि इस बार केवल लुटियंस गैंग से काम नहीं हो पायेगा, कुछ और भी करना पड़ेगा तो इस बार लुटियंस गैंग के साथ साथ अपने द्वारा कृतार्थ नाकाबिल बुद्धिजीवियों, लेखकों, फिल्मकारों, कलाकारों को भी काम पर लगाया गया।

पिछले पाँच वर्षों में लुटियंस गैंग और वामपंथी विचारधारा के लोगों ने तमाम तरह के झूठ जनता में फैलाने के प्रयास किये। आये दिन नए नए प्रोपेगैंडा सेट किये जाने लगे, टॉक शो आयोजित किये जाने लगे, झूठ फैलाने के लिए अब तक जिन्हें हम पत्रकार समझते रहे उन बिकाऊ, चरण चाटु पत्रकारों ने पोर्टल शुरू किये, सारे भ्रष्ट दलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया। इनका पूरा घोषणापत्र ही देश और देश की जनता के ख़िलाफ़ बनाया गया, विकास, सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं बल्कि आतंकियों को और हमले करने देने की सुविधाएं तक परोक्ष रूप से लिखी गईं हैं।

उसको मौत का सौदागर, हिटलर, चोर, बीवी को छोड़ने वाला, माँ का इस्तेमाल करने वाला, नीच, नपुंसक यहाँ तक कि परिवार की बेटी द्वारा खुल्लमखुल्ला गालियाँ तक दिलवाई गईं। उसने बहुत सहन किया, वर्षों से सहन कर रहा था लेकिन उसके भी सब्र का बाँध आखिर टूट ही गया। अब उसने भी जवाब देना शुरू कर दिया है, खुली चुनौती दे रहा है, ललकार रहा है, अब वो गड़े मुर्दे उखाड़ रहा है, वो बता रहा है कि कैसे मि. क्लीन भ्रष्टाचारी नम्बर वन थे, कैसे उन्होंने देश की सुरक्षा के लिए तैनात आईएनएस विराट और नौसेना का इस्तेमाल अपनी मौज मस्ती के लिए किया था।

अभेद्य किले में सेंध उसने लगा दी है। जब तुम्हारे झूठ का जवाब उसने सच्चाई से देना शुरू किया तो तुम तिलमिला उठे, अब नैतिकता की दुहाई दे रहे हो, अब बोल रहे हो कि ‘चौकीदार चोर है’ का नारा हमारी पार्टी का नहीं है। अब क्यों बोल रहे हो क्योंकि जिसे तुम ‘सब्जेक्ट’ समझ रहे थे असल में वो ‘मुन्नाभाई’ निकला।

उसने तुम्हारी चूलें हिला दी हैं, उसकी कोई काट तुम्हारे पास नहीं है, 2014 से जारी हर “प्रयोग” का पोस्टमॉर्टम उसकी “प्रयोगशाला” में जारी है और समय बताएगा कि इन “प्रयोगों के प्रायोजकों और आयोजकों” के साथ वो क्या करता है।

उसे करीब से जानने वाले बताते हैं कि उसका “मौन” उसकी “वाणी” से ज़्यादा घातक है।

अबकी बार चार सौ पार..

ताकि सनद रहे..

साभार- हर्षिल खैरनार

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