सुरेंद्र किशोर : मोदी जी चाहेंगे तो लोक सभा चुनाव के बाद इसे समाप्त कर देंगे क्योंकि…
इस लोक सभा चुनाव के बाद
भ्रष्टाचार के इस ‘‘रावणी अमृत कुंड’’
पर कसकर तीर मारिए मोदी जी
भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का अभियान अभूतपूर्व है।
जान हथेली पर लेकर मोदी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाइ कर रहे हैं।(याद रहे कि आए दिन भ्रष्टाचार विरोधियों की हत्याएं होती रहती है।ंमाले के झारखंड विधायक महेंद्र सिंह थानों व अन्य सरकारी दफ्तरों से घूस वापसी अभियान चलाते थे।उनकी हत्या कर दी गयी।)
इससे पहले किसी प्रधान मंत्री द्वारा ऐसी सख्त कार्रवाई कभी नहीं हुई।जेहाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ समझौताविहीन कार्रवाइयों के कारण ही मोदी जी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।और बढ़ेगी।क्योंकि प्रतिपक्ष का अधिकांश जेहाद -भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बोलता।
यदि आजादी के तत्काल बाद से ही ऐसा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलता तो
100 सरकारी पैसे घिसकर 1985 आते-आते 15 पैसे नहीं रह जाते।
खैर, देर आए दुरुस्त आए।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी अभियान के कारण केंद्र सरकार का सालाना राजस्व 6 लाख करोड़ रुपए(सन 2014) से बढ़कर 20 लाख करोड़ रुपए हो चुका है।
बढ़ता ही जाएगा।
इससे विकास,कल्याण और सुरक्षा के काम तेज हुए हैं।
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पर,भ्रष्टाचार से आम लोगों को,जिन्हें सरकारी दफ्तरों से सीधे पाला पड़ता है, राहत दिलाने का काम होना अभी बाकी है।
केंद्र व राज्य सरकारों का कौन सा आॅफिस है,जहां घूस के बिना काम हो रहा है ?
जहां काहिली नहीं है ?
मोदी जी पता लगा लीजिए।आपका खुफिया तंत्र भी अब बेहतर काम कर रहा है।कहीं ईमानदार आॅफिस मिले तो उसे भी ‘पद्मश्री’ दीजिए।
सब जगह तो ऐसा नहीं है।
किंतु यदि किसी एक अंचल कार्यालय का भी शीर्ष अफसर लाखों रुपए नजराना देकर अपनी पोस्टिंग कराता है और वह जन प्रतिनिधियों को कट मनी देने को मजबूर होता है तो उस आफिस में जनता का जायज काम भी मुफ्त में कैसे होगा ?
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इस संदर्भ में मैं भ्रष्टाचार के ‘रावणी अमृत कुंड’ की चर्चा एक बार फिर करूंगा।
वह है सांसद फंड-विधायक फंड।
इसने प्रशासन और राजनीति की नैतिक धाक को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है।
लोक सभा चुनाव के बाद इसे बंद कीजिए मोदी जी।
इसे बंद करने की सिफारिश वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में
2005 में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी की है।
अदालतों ने भी समय -समय पर इसके खिलाफ अपनी राय प्रकट की है।सी.ए.जी.रपट भी खिलाफ है।
पर यह अमृत कुंड, रावण के अमृत कुंड से भी अधिक ताकतवर लगता है।
कोई प्रधान मंत्री इसे समाप्त नहीं कर सका न अटल जी और सरदार जी जबकि वे दोनों समाप्त करना चाहते थे।
पर उन्हें गद्दी अधिक प्रिय थी।
मोदी जी भी इस फंड के पक्ष में सांसदों का भारी समर्थन को देखते हुए इसे अब तक समाप्त
नहीं कर पाए हैं।पर,समाप्त करेंगे तो मोदी ही करेंगे।
मोदी जी चाहेंगे तो लोक सभा चुनाव के बाद इसे समाप्त कर देंगे।
क्योंकि इस चुनाव में वे भारी बहुमत से जीतने जा रहे हैं।
इसे खत्म करके ही मोदी जी आमलोगों को सरकारी दफ्तरों के भीषण भ्रष्टाचार से थोड़ी राहत दिला पाएंगे।
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दरअसल नब्बे के दशक में तब के प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने अपने वित मंत्री मनमोहन सिंह की राय के विपरीत जाकर सांसद फंड शुरू किया।
राव ने जान बूझकर इसे तब लागू किया जब मनमोहन सिंह लंबी विदेश यात्रा पर थे।
तब वह एक करोड़ रुपए सालाना का फंड था।
अब 5 करोड़ रुपए का हो चुका है।
मोदी जी ने इसकी राशि बढ़ाने की मांग नहीं मानी है ।
क्योंकि वे इस फंड के सदुपयोग न होने की कुछ कहानियां जान चुके हैं।
नहीं मानी यह अच्छी बात है।पर,सांसदों के दबाव में मोदी जी इसे समाप्त भी नहीं कर पाए हैं।पर,अगली चुनावी विजय के बाद समाप्त कर देंगे तो कोई चूं भी नहीं करेगा।
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दरअसल नंदियाल लोक सभा उप चुनाव लड़ने के लिए पी.वी.नरसिंह राव ने शेयर दलाल हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए लिये थे।उसको लेकर राम जेठमलानी ने राव की छवि खराब कर दी।
राव ने संभवतः सोचा होगा कि जब मेरी छवि खराब हुई तो अन्य अधिकतर सांसदोेें की भी हो जाए।मेरी नाक कटी तो दूसरों की भी कटे !!
यह कैसे होगा ?
तब सरकारी निर्माण में 20 प्रतिशत कमीशन था।अब करीब 40 प्रतिशत है।(यहां तक कि आज भी आए दिन बड़े -बड़े पुल बनते समय ही ढह जा रहे हैं।)
यदि पांच साल में पांच करोड़ मिलेंगे तो एक करोड़ हो ही जाएगा,नब्बे के दशक में यह सोच रही होगी !!
हालांकि सारे सांसद कमीशन नहीं लेते।पर,कुछ ही नहीं लेते।
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निचले स्तर के जो अफसर इस फंड को हैंडिल करते हैं,उनमें से अधिकतर बाद के अपने कैरियर में
भी आदतन कमीशनखोर हो जाते हैं।
इसका कुप्रभाव पूरे प्रशासन पर पड़ता है।
इस तरह यह फंड है न भ्रष्टाचार का रावणी अमृत कुंड !!!