समर प्रताप : वो बिकाऊ है,संघी है…

जिन्हें लगता है कि दिल्ली में इंसान नही रहते बस सरकार रहती है,
वो अपने घर के रास्ते पर या घर के आगे 30 या 40 आदमी बैठाकर दिखाए जो अंजान हो।
बस कुछ दिन बैठाकर दिखाए।
एकदिन की बारात नही झेल पाते आप लोग।
और दिल्ली के लोग कुछ बोल दे तो वो बिकाऊ है,संघी है।
उनका निकलना घूमना मुश्किल हो जाता है।
व्यवहार की कोई गारंटी लेता है क्या इनके।
एकबार बहादुरगढ़ से लेकर दिल्ली के चारो तरफ के लोगो के विचार भी सुन लो।
लोग हाथ जोड़कर बैठे है कि भई अन्नदाता आप बस अपने लिये उगा लो।
हमे भूखा मर जाने दो।हमारा पेट मत भरो हम कहीं और से मंगवा के खा लेंगे।
लेकिन एहसान करके भी आम जीवन का सत्यानाश मत करो।
और पिछले डेढ़ साल में वँहा क्या क्या हुआ था अंत मे लोगो द्वारा होने वाली पंचायतों ने बता दिया था कि भई हमारे इधर से हटो बस।
इसलिए इस बार लगभग खाप सड़के जाम नही करने और लोगो को परेशान नही करने के लिये बोल चुकी है।
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जाति वाले बोलने लगे जाएं तो….
ये है आजकल के जातिवादी पत्रकार और आजकल यही सच्चे पत्रकार माने जाते है।
अब कोई मंत्री इन्हें जरा सा भी बोल दे तो ये रोने लगेंगे।
लेकिन जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री को ये लोग  हर रोज गलत बोलेंगे और ये 2 कोड़ी के यू यू ट्यूबर उन्हें बुलाएंगे और प्रधानमंत्री का मुँह कुटवाएँगे।
प्रधानमंत्री देश का होता है शायद उसकी भी कोई जाति होगी ???
या ओबीसी तो होगा ही अब उसकी जाति वाले ऐसी बेहूदगी पर बोलने लगे जाएं तो….?
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आंदोलन से क्या निकला….!
सरकारों के खिलाफ आंदोलन हमेशा हुवे है आगे भी होंगे लेकिन पहले वाले या अब वाले किसान आंदोलन जैसी बेहूदगी शायद ही कभी देखी हो।
और इसलिए हर बड़े आंदोलन से कोई न कोई नेता निकले।
उन्होंने सरकारें बदल दी,वर्षो राज किया किसानों के नाम से किसानों के काम किये।
लेकिन क्या इनके अनुसार इतने बड़े आंदोलन से कुछ निकला?
न नेता निकले,न राज बदले,जो जल्दी से जल्दी चुनाव के लिये भाग के चुनाव में खड़े हुवे उनकी जनता ने जमानत जब्त कर दी।
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सीमा तय हो…
किसान करोड़ो की गाड़ी भी ले सकता है,इसमें कोई दो राय नही है।
लेकिन जब किसान इतना समृद्ध हो गया है तो फिर वो लोन माफी और सब्सिडी पर क्यो जीना चाहता है।
क्यो वो गरीब किसानों का हक खा रहे है।
सरकार MSP दे,लोन माफी दे लेकिन डिसाइड करे कि वो किन्हें मिले।
कितने एकड़ वाले किसान को फायदा मिले।
हरियाणा का मजदूर 500 रुपये न ले इसलिए मजदूर खुद बिहार से लाते है।
मजदूरों की MSP देने में दिक्कतें है इनको।
इसलिए सरकार को ये डिसाइड करना चाहिए कि कितने एकड़ वाले किसान को कृषि लोन,लोन माफी आदि बाकी समस्या का लाभ मिले।

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