डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : व्यक्तित्व की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति से जीवन होता है सरल
कुछ पाने की अपेक्षा में बहुत से लोग कभी न सत्य बोलने का साहस कर पाते हैं और न ही अपने मन की बात कह पाते हैं, लेकिन जीवन के मोड़ पर जब एक दिन उन्हे यह लगता है कि जिस समय हमें जो कहना चाहिए था वह कह भी न सके और जो पाना था वह पा भी न सके तब वह मानसिक अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
मन की भावनाओं को दबाते-दबाते लोग कुण्ठाग्रस्त हो जाते हैं। जब उनकी महत्वाकांक्षाओं के महल धाराशायी हो चुके रहते हैं तब उन्हें लगता है कि जीवन में कितने गलत समझौते किए, छद्म निष्ठा और श्रद्धा के नाम पर किन-किन बातों को स्वीकार किया लेकिन मिला क्या? हो सकता है कुछ प्रसिद्धि मिली हो, कोई पद मिला हो, कुछ धन भी मिल गया हो, लेकिन अंतःकरण में जो कालिमा बनती है वह अन्तिम समय में बार-बार मानस पटल पर उभर आती है, इसलिए वैदिक ऋषियों ने बार-बार कहा “क्रतो स्मर कृतं स्मर” हे दिव्य संकल्पशक्ति, स्मरण कर, किये हुए कर्म का स्मरण कर।
महत्वाकांक्षाओं के ज्वार में समझौतों की नाव पर तैरने वाले सदैव अवसाद की खाड़ी में गिरते हैं, इसलिए कुछ पाने-खोने से हटकर व्यक्तित्व की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति होनी चाहिए।
साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह