राजनीतिक पोस्टरों में “तिलक”.. गांवो से राजधानी तक.. मंतव्य और संदेश…

पोस्टर आरंभ से ही राजनीतिक अभियानों के साथ-साथ सार्वजनिक आंदोलनों का एक अंतर्निहित महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

गांवो से लेकर शहर और शहर से राजधानी तक अब चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक प्रचार से जुड़े पोस्टरों की दीवारों, छतों, सड़कों पर एक बार फिर वापसी हो गई है।

पोस्टर आमजनों से संवाद करने का एक शक्तिशाली माध्यम है और निश्चित रूप से राजनीतिक पार्टियों में प्राण फूंकने के अभियान के लिए आज भी सर्वाधिक प्रासंगिक और व्यावहारिक है।

एक अनपढ़ भी पढ़कर पोस्टर का मंतव्य और संदेश समझ जाता है और अन्यों को भी समझा देता है।

पोस्टर में संदेश का माध्यम शब्द नहीं होते, पोस्टर में अपना संदेश देने का सबसे बड़ा माध्यम पोस्टर में चिपके चेहरे और चेहरों की भाव भंगिमा होती है। पोस्टर में शब्द महत्वपूर्ण नहीं होते क्योंकि सड़क पर लगे पोस्टरों को पढ़ने का समय लोगों के पास नहीं होता।

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भाजपा, कांग्रेस, वामपंथ सहित सभी दलों के पोस्टर शहर में चुनाव के आते तक लगाने-निकालने का क्रम लगातार बना रहेगा। सभी राजनीतिक दलों के पोस्टरों में सबसे बड़ा अंतर तिलक का होता है।

भाजपा के पोस्टरों में अधिकांश चेहरों के माथे पर तिलक लगा हुआ दिखाई देता है लेकिन इसके विपरीत कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक पार्टियों के पोस्टरों में माथा सपाट-साफ दिखता है…गलती से किसी गैर भाजपाई पोस्टर के चेहरे पर तिलक लगा हुआ दिख जाए तो अलग बात है।

गूगल करके सर्च करने पर गांवो से लेकर नगरों, महानगरों, राजधानियों के पोस्टरों एक बात कॉमन दिखाई देती है कि  भाजपा को छोड़कर शेष राजनीतिक पार्टियों के पोस्टरों में लगे 90% चेहरों के माथे से तिलक गायब होता है और गलती से किसी के माथे पर दिख गया तो अलग बात है लेकिन ठीक इसके विपरीत भाजपा के पोस्टरों में 90% तक चेहरों के माथे पर तिलक सुशोभित दिखाई देगा।

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