सुरेंद्र किशोर : मंडल बनाम मंदिर
जिस तरह ‘मंडल आरक्षण’ के विरोध का राजनीतिक नुकसान
हुआ,उसी तरह राम मंदिर के विरोध का नुकसान
उन दलों को होगा जो आज किसी न किसी बहाने प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहे हैं।
———–
सन 1990 में अधिकतर
उन दिनों मैं मंडल आरक्षण विरोधियों से कहा करता था कि आरक्षण का विरोध मत करो।
–क्योंकि गज नहीं फाड़ोगे तो थान हारना पड़ेगा।–पूर्व कांग्रेसी विधायक हरखू झा मेरी इस बात के गवाह हैं।(लालू-राबड़ी राज में थान ही तो हारना पड़ा था।)
मंडल आरक्षण, सामाजिक अन्याय के खिलाफ एक ठोस कदम था।
वह आरक्षण संविधान (अनुच्छेद-340)और सुप्रीम कोर्ट (1993 का निर्णय)समर्थित था।
आज जो दल और सामाजिक समूह मुस्लिम वोट के लोभ में एक ऐतिहासिक अन्याय(राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाने का अन्याय) का समर्थन कर रहे हैं,वे क्या अगले चुनाव में जीत पाएंगे ?
वे इस गलतफहमी में नहीं रहें कि गैर सवर्णों के दिलों में राम नहीं बसते।
अपवाद तो हर जगह है।
राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का सन 2019 का फैसला एक ऐतिहासिक अन्याय के खिलाफ फैसला था।
आज जो राजनीतिक दल और सामाजिक समूह राम मंदिर का किसी न किसी बहाने विरोध कर रहे हैं,संकेत बता रहे हैं कि उनका भी वही हश्र हो सकता है जो हश्र सन 1990 के मंडल आरक्षण विरोधियों का बाद में हुआ था।
———————
गत साल बिहार सरकार ने पिछड़ों (पिछड़ा,एस.सी.,एस.टी)के आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया।
इस बार आरक्षण विरोधी इसके विरोध में सड़कों पर नहीं उतरे।
अच्छा किया।
उन्होंने 1990 के मंडल आरक्षण विवाद से सबक ले लिया था।
इस बार दूरदृष्टि का परिचय दिया।
इससे समाज में तनाव नहीं बढ़ा।ऐसे मामलों को अदालत पर ही छोड़ देने में होशियारी है।
सड़कों पर उतरते तो उसका राजनीतिक लाभ पिछड़ों के कुछ खास तरह के तत्व उठा लेते।
पर,राजद ने ऐसे प्रकरणों से कोई सबक नहीं लिया।
जनवरी, 2019 में आर्थिक रूप से पिछड़ों ,मुख्यतः सवर्णों ,के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में केंद्र सरकार ने 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित कीं।सन 1978 के कर्पूरी आरक्षण में सीमित तौर पर महिलाओं और सवर्णों के लिए आरक्षण किया गया था।
डा.लोहिया सभी जातियों-समुदायों की महिलाओं को पिछड़ा ही मानते थे।
उनके लिए भी आरक्षण की मांग करते थे।
राजद ने आर्थिक रूप से पिछड़ों के 10 प्रतिशत आरक्षण का संसद में विरोध कर दिया।
नतीजतन कुछ ही महीने बाद हुए लोक सभा चुनाव में राजद को अपने ही गढ़ में एक भी सीट नहीं मिली।