सुरेंद्र किशोर : ममता ने कहा था “मोदी……”
ममता बनर्जी ने 6 जनवरी, 2017 को
कहा था–
‘‘मोदी इस्तीफा दें ,आडवाणी,जेटली या राजनाथ की
अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सरकार बने।’’
दरअसल ममता जी को तभी यह संकेत मिल
गया है कि आगे क्या-क्या होने वाला है।
अब तो ममता और केंद्र के बीच आर-पार
की लड़ाई के आसार हैं।
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गत साल अप्रैल में कहा था कि
‘‘एक भी भ्रष्टाचारी नहीं बचना चाहिए, चाहे वह कितना
ही शक्तिशाली हो।
बिना हिचक के सी.बी.आई.कार्रवाई करे।’’
उन्होंने यह भी कहा कि
‘‘भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा है।’’
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इससे पहले के किसी भी अन्य प्रधान मंत्री ने इतने स्पष्ट व कड़े शब्दों में भ्रष्टाचार के खिलाफ यानी देश की सबसे बड़ी बीमारी के खिलाफ इतनी बेबाक बातें जांच एजेंसी से नहीं कही थीं।
यानी, जांच एजेंसी को इतनी बड़ी छूट नहीं दी गई थी।
अपनी ओर से पूर्ण समर्थन का भरोसा भी दे दिया है प्रधान मंत्री मोदी ने।
इससे पहले अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर इस देश में
सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष में एक अघोषित समझौता रहा था–
‘‘हम सत्ता में आएंगे तो हम तुम्हें बचाएंगे,तुम सत्ता में आना तो हमें बचाना।’’
समकालीन इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं।
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इस पृष्ठभूमि में कारगर कार्रवाई की उम्मीद मोदी सरकार से की जा सकती है।
नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली कुआन (1959-1990)के भ्रष्टाचार विरोधी उपायों का भी अध्ययन कर लें।
यदि पहले ही अध्ययन कर लिए हों,तो बहुत अच्छी बात है।
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पर,इस संदर्भ में इससे पहले यानी आजादी से अब तक की कहानी जान लेना मौजूं होगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें होती रहीं और साथ-साथ यह महारोग बढ़ता चला गया।अब तो सर्वव्यापी हो चुका है।
आजादी के बाद से ही हमारे शीर्ष नेतागण भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहे।
पर,उसे रोकने के लिए क्या किया ?
आजादी के तत्काल बाद सत्ता के प्रमुख शीर्ष पदों पर आॅक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज शिक्षित नेता ही बैठे।
फिर भी 1985 आते -आते सरकार के 100 पैसे घिसकर 15 पैसे ही रह गए।
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सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा कि
‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।
गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’
1971 के बाद तो लूट की गति तेज हो गयी।
अपवादों को छोड़कर सरकारों में भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया।
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उससे पहले एक केंद्रीय मंत्री ने प्रधान मंत्री नेहरू से कहा था कि सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।
इसकी निगरानी के लिए कोई छतरी संगठन बना दीजिए।
जवाहरलाल का जवाब था-उससे शासन में पस्तहिम्मती आएगी।
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आजादी के बाद से अब तक हुए सैकड़ों घोटालों को याद कर लीजिए।
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अब तो कांग्रेस ने एक ऐसे नोबल विजेता को अपना अघोषित सलाहकार बना लिया है जो भ्रष्टाचार की खुलेआम वकालत करता है।
‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,
शायद भ्रष्टाचार अर्थ -व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।
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–नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी,
हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स
23 अक्तूबर 2019
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(याद रहे कि अभिजीत बनर्जी ने ही राहुल गांधी को ‘न्याय योजना’ का आइडिया दिया था।)
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इस देश में भ्रष्टाचार को लेकर ऐसी शर्मनाक स्थिति रही है कि उस पर बड़े नेताओं की उक्तियों को एक बार फिर याद कर लेना मौजूं होगा।
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भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए
–महात्मा गांधी
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भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए
–प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू
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भ्रष्टाचार तो ग्लोबल विश्वव्यापी फेनोमेना है,सिर्फ भारत में ही नहीं है–
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी
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सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए
–प्रधान मंत्री राजीव गांधी
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मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं ।
–मधु लिमये–(1988)
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इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है–मनमोहन सिंह-(1998)
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भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।
–सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल–
5 अगस्त ,2006
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भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए।
–सुप्रीम कोर्ट-7 मार्च 2007
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भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।
-दिल्ली हाईकोर्ट –9 नवंबर 2007
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भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।
-एन.सी.सक्सेना,पूर्व सचिव ,केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय
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सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि ‘‘इस देश में भ्रष्टाचार विरोधी कानून विफल साबित हो रहा है।
भारत की सर्वोच्च अदालत ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधान मंत्री राॅबर्ट वालपोल(1676-1745) की पंक्तियां दुहराते हुए तब यह भी कहा था कि
‘‘हर व्यक्ति बिकाऊ है, इसे भले ही हर व्यक्ति पर लागू नहीं किया जा सकता।
लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह सच्चाई से बहुत अधिक दूर भी नहीं है।’’
—न्यायमूर्ति दोराई स्वामी और न्यायमूर्ति अरिजित पसायन
सुप्रीम कोर्ट –16 नवंबर, 2003
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गत 24 फरवरी, 23 को भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
‘‘आम आदमी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।
हर स्तर पर जवाबदेही तय करने की जरूरत है।’’
अदालत ने यह भी कहा कि
‘‘किसी भी सरकारी दफ्तर में जाएं तो आप बिना डरे बाहर नहीं आएंगे।’’
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इसके अलावा भी अनेक उक्तियां आपको मिलेंगी।
पर,भ्रष्टाचार के राक्षस से निर्णायक लड़ाई कभी नहीं हुई।
अब शायद हो रही है।
वोट बैंक के दायरे के लोगों को छोड़कर आम जन में भ्रष्टों के खिलाफ
भारी गुस्सा है।क्योंकि अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़ कर सरकारी दफ्तरों में बिना रिश्वत कोई काम नहीं हो रहा है।
देखना है कि नरेंद्र मोदी आम जन की उम्मीदों को किस हद तक पूरा करते हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ समझौताविहीन व निर्णायक युद्ध में जान पर भी खतरा आ सकता है,ऐसी आशंका खुद मोदी ने व्यक्त की है।
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सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली कुआन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक युद्ध जीत कर देश को संपन्न बना दिया था।
उस काम के लिए ली कुआन को किसी का खून नहीं बहाना पड़ा था जैसा कि कम्युनिस्ट देशों में हुआ था।
ली कुआन ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारत में वैसा ही करने की सलाह दी थी।
किंतु नेहरू उस काम के लिए राजी नहीं हुए थे।
यह बात लुआन के पुत्र ने अपनी भारत यात्रा के दौरान बताई थी।
