डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : मंदिर से न कोई ब्राह्मण बनता है न शूद्र बनता
मंदिर से न कोई ब्राह्मण बनता है न शूद्र बनता है। मंदिर तो प्रेरणा के केन्द्र हैं, ब्राह्मण और शूद्र तो उसके कर्म बनाते हैं।
ब्राह्मण कौन है? ब्राह्मण ज्ञान परम्परा का संवाहक है। ब्राह्मण शास्त्र और धर्म का संरक्षक है। स्वाध्याय और आचार का उत्प्रेरक है। जो ऐसा नहीं है वह ब्राह्मण नहीं है। विडम्बना यह रही कि ब्राह्मण जाति से द्वेष करते-करते लोग ब्राह्मणत्व से द्वेष करने लगे और ब्राह्मणत्व से द्वेष करते-करते शास्त्र और ज्ञान परम्परा से द्वेष करने लगे और शास्त्र और ज्ञान परम्परा से द्वेष करते-करते उन सभी तत्वों से द्वेष करने लगे जो ज्ञान परम्परा से जुड़े हैं।
स्वामी विवेकानन्द जी कहते थे कि ब्राह्मणों को गाली देने से किसी का कल्याण नहीं होगा, बल्कि तुम भी ब्रह्मणत्व को ग्रहण करो, संस्कृत और शास्त्रों का अध्ययन करो।’ ब्राह्मणत्व ग्रहण करने का अर्थ यह नहीं है कि तुम जाति के पचरे में पड़ कर अपने को ब्राह्मण सिद्ध करने लगो, बल्कि ब्राह्मणत्व का अर्थ है ज्ञान की साधना, ज्ञान का अर्जन, उसके लिए अध्यवसाय और तपश्चर्या है।
अतीत हो या वर्तमान केवल दूसरों पर दोषारोपण कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता, बल्कि स्वयं के अध्यवसाय से ही आगे बढ़ा जा सकता है। ज्ञान की आराधना का, ज्ञान की साधना का, जो कार्य दूसरा कर रहा था वह तुमने क्यों नहीं किया? उत्तर मिलेगा करने नहीं दिया गया। समाज संचालन के आदिम काल में उन्हें किसी ने करने दिया या उन्होंने स्वयं इसका वरण किया? जो इन्द्रिय भोगों का संयम कर ज्ञान की साधना का वरण किए उन्होंने ब्राह्मणत्व ग्रहण किया। ज्ञान का वरण किया जाता है और जो ज्ञान का वरण करता है वही अभ्युदय और निःश्रेयस प्राप्त करता है और जो ज्ञान से दूर होता है उसका पतन होता है। ज्ञान ही मार्गदर्शक और चरित्र का निर्माता है, इसलिए ज्ञान सदैव पूज्य रहा है। ज्ञान का विकल्प किसी से द्वेष नहीं हो सकता। ज्ञान का विकल्प केवल और केवल ज्ञान ही होता है।
साभार – डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह