इसी शिला पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ
श्रीकृष्णजन्मभूमि में यही कंस के कारागृह में यही वह शिला है जिसपर भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। जहाँ पर भगवान शंकरजी और भगवान ब्रह्माजी, सभी देवताओं, और नारदजी आदि ऋषियों सहित आए और गर्भस्थ भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की और कहा-
श्रीकृष्णचन्द्र की गर्भस्तुति करते हुए देवता बोले,
सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं
सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये।
सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं
सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः।।
जैसे सूर्य, चन्द्रमा आदि देवताओं के व्रत असत्य नहीं होते, उसी प्रकार जिन श्रीकृष्ण के व्रत सत्य हैं, जो सत्य से ही प्राप्त होते हैं, जो भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों में अबाधित सत्य हैं, जो सत्य की भी योनि हैं, कहा जहाँ से सत्य निकला है, जो सत्य में निहित-निगूढ़ रूप से प्रविष्ट हैं।
जो सत्य के भी सत्य हैं और ऋत और सत्य जिनके दो नेत्र हैं। ऐसे उन सत्यस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण की हम शरण में हैं, ऐसा कहके सब देवता और महाभागवत भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में आए।
फिर ऋषि बोले,
नबिभर्षि रूपाण्यवबोध आत्मा
क्षेमाय लोकस्य चराचरस्य ।
सत्त्वोपपन्नानि सुखावहानि
सतामभद्राणि मुहुः खलानाम् ॥
सारे संसार के कल्याण के लिए आप जैसी आवश्यकता होती है वैसे ही अनेकों सत्त्वमय रूप धारण करते हैं। आपके ऐसे रूप भक्तों को बहुत सुख देते हैं और साथ ही अधर्मी दुष्टों को उनकी दुष्टता का दण्ड भी देते हैं।
आपके चरणकमल रूपी जहाजों में बैठने वाले सच्चे भक्त महासागरों को बछड़ों के खुरों से बने गड्ढों के समान पार कर जाते हैं।
हे नन्दनन्दन ! जो लोग भगवान् श्रीकृष्ण यानि आपके चरणकमलों की शरण में नहीं आते और, आपमें भक्ति नहीं होने से जिनकी बुद्धि ठीक नहीं है, वास्तव में तो वे तो बंधे हुए हैं। बड़े साधन करके अगर वह ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच भी जाएं तो वहाँ से औंधे मुँह गिर पड़ते हैं। पर जिन भागवतों ने आपके चरणों में अपने प्रेम को जोड़ लिया है वे ऐसे अपने मार्ग से कभी भी पतित नहीं होते। “आरुह्य कृच्छ्रेण परं पदं ततः पतन्त्यधोऽनादृतयुष्मदङ्घयः”
भगवान् श्रीकृष्ण के चरणकमलों में लोट लगाने वाले प्रेमी भक्त कभी भी नष्ट नहीं होते, वे तो बड़े बड़े विघ्न डालने वालों की सेना के सेनापतियों के सिर पर पैर धरकर निर्भय होकर विहार करते हैं, कोई भी विघ्न उनके मार्ग नहीं रोक सकता क्योंकि महाभागवतों के रक्षक आप हैं। “..विचरन्ति निर्भया विनायकानीकपमूर्धसु प्रभो”
प्रभु आपने जैसे अनेकों बार श्रीराम, नृसिंह, मत्स्य, वराह आदि अवतार लेकर तीनों लोकों में धर्म की रक्षा की है, वैसे इस बार भी पृथ्वी का भार हरण कीजिए, हम आपके चरणों में वन्दना करते हैं।
ऐसा कहकर सभी देवताओं ने गर्भस्थ भगवान् श्रीकृष्ण को सिर झुकाकर प्रणाम किया।
आज पहली बार कोई प्रधानमंत्री उस पवित्रतम स्थान में आकर भगवान् को शीष नवा रहा है, जहाँ पर देवताओं ने भी आकर शीघ्र ही जन्म लेने वाले भगवान् की भावपूर्ण स्तुति की।
!! जय श्री कृष्ण कन्हैया लाल की !!
– साभार मुदित अग्रवाल।