डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : इतिहास कोई लोरी का गान नहीं होता, जिसे सुनकर मुन्ना सो जाए

मृतक को घाव का दर्द नहीं होता, लेकिन जीवित को यदि संवेदनहीन (Anesthesia) नहीं किया गया है तो निःसंदेह पीड़ा होती है, क्योंकि पीड़ा ही जीवित होने की पहचान है। इसी प्रकार किसी संस्कृति या सभ्यता पर हुए अत्याचारों का दर्द समाप्त हो गया तो वह संस्कृति और सभ्यता भी मर जाती है।

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बहुत से ऐसे समाज हैं जिनके साथ अत्याचार हुआ, लेकिन उन अत्याचारों को उनकी आने वाली पीढ़ियाँ भूल गईं और आज वही वंश परम्परा होते हुए भी उनके पूर्वजों की संस्कृति और सभ्यता मर गई, क्योंकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे अजनबी हो गईं और उसका दर्द समाप्त हो गया।

संस्कृति पर हुए अत्याचारों के दर्द को सहेजने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी तपस्या करनी पड़ती है। उस दर्द को स्वयं अनुभव करना पड़ता है और आनेवाली पीढ़ियों को भी अनुभव कराना पड़ता है।

वास्तव में इतिहास कोई लोरी का गान नहीं होता, जिसे सुनकर मुन्ना सो जाए। इतिहास तो वह यथार्थ सत्य होता है जो अतीत के गौरव और आपदा दोनों का साक्षात्कार करवाता है। अतीत की उपलब्धियाँ हमें उसे आत्मसात करने के लिए प्रेरित करती हैं, जबकि अपनी सभ्यता पर किए गए अत्याचार उसके प्रतिकार के लिए प्रेरित करते हैं। जो समाज अपने इतिहास को भूलना चाहता है या उससे मुंह चुराता है वास्तव में ऐसा समाज सांस्कृतिक रूप से जीवित रहने का अधिकार खो देता है।

इतिहास का डटकर सामना कर अपनी विरासत को सहेजने वाला समाज ही गर्व के साथ जीवित रह सकता है।

साभार-डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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