सहयोग क्यों करना चाहिए..?

संसार में देखा जाता है, कि “सभी लोग इतने धनवान बलवान बुद्धिमान नहीं होते, कि वे अपने सारे कार्य स्वयं कर लें। इसी कारण से कभी आप दूसरों का सहयोग लेते हैं, और कभी दूसरे लोग आपका सहयोग लेते हैं। सहयोग लेने और देने का यह नियम प्रत्येक आत्मा पर लागू होता है। आप पर भी, और दूसरों पर भी।”

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जब आप किसी एक व्यक्ति को सहयोग देते हैं, चाहे धन का, चाहे बल का, चाहे बुद्धि का, या अन्य भी किसी प्रकार का सहयोग देते हैं। “तब किसी एक व्यक्ति का सहयोग करने से, सारा संसार तो नहीं बदल जाता, अर्थात सबकी सहायता तो नहीं हो पाती।” “लेकिन जिस एक व्यक्ति की सहायता आप करते हैं, उससे कम से कम उस एक व्यक्ति का संसार तो बदल ही जाता है, उसका दुख तो दूर हो ही जाता है, उसे तो सुख मिल ही जाता है।” “आपके सहयोग से उसे सुख मिलता है और आपको पुण्य मिलता है, जिस पुण्य के प्राप्त करने से आपका यह जीवन भी सुखमय हो जाता है। और इस पुण्य के फल से आपको अगला जन्म भी बहुत उत्तम प्राप्त होता है।”
इसलिए अपना पुण्य कमाते रहने के लिए दूसरों को सुख/सहयोग देना आवश्यक है। “अतः दूसरों को सुख देते रहिए। अपना पुण्य कमाते रहिए। इससे आपका यह जीवन भी सुखमय/सफल होगा, और अगला जन्म भी अच्छा मिलेगा।”
साभार– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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