प्रसिद्ध पातकी : विष्णु सहस्रनाम व गीता में धाम..धाम का कोई रिटर्न टिकट नहीं कटता

मनुष्य जिस स्थान में रहता है, उसे अपना घर कहता है। धाम नहीं। धाम प्राय: ईश्वर के निवास के स्थान को कहा जाता है। विष्णु सहस्रनाम में भगवान का एक नाम ‘धाम’ भी आया है।
गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यप्रक्रमः।
निमिषोऽनिमिषः सर्गवी वाचस्पतिरुदारधिः ।।


माँ आनन्दमयी से कोई जब कोई चलने के लिए आज्ञा लेने आता था तो माँ उससे पूछती थीं कि कहाँ जाओगे? पूछने वाला व्यक्ति यदि कहता कि वह अपने घर जा रहा है तो माँ उससे कहती कि ‘साँसों की धर्मशाला’’ को अपना घर कैसे कहा जा सकता है? यह तो अस्थायी निवास है, असल घर तो कहीं और है। इसी बात को गीता के टकसाली शब्द में कहा जाए तो यह संसार ‘दुखालय’ है।
भगवान वासुदेन ने गीता में अपने इस धाम के लिए कहा है–
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
भगवान ने कहा है कि उनके धाम सूर्य और चंद्रमा तथा अग्नि का प्रकाश नहीं चमकता है। अब जब श्रीहरि स्वयं ही परम प्रकाश हैं तो अन्य प्रकाश उनके समक्ष भला क्या खाकर अपनी रोशनी बिखेरेंगे। भगवद्पाद शंकराचार्य ने धाम का अर्थ ही ‘परम ज्योति’ बताया है। पर भगवान ने इस श्लोक में बड़ी ही गूढ़ बात कही है कि जो उनके धाम में पहुँच गया, उसकी वापसी नहीं होती। भगवान के धाम का कोई रिटर्न टिकट नहीं कटता। गीता में ही भगवान ने एक अन्य प्रसंग में कहा है कि जीव यदि ब्रह्म लोक तक पहुँच जाए तो भी उसे लौटना पड़ता है। पर भगवान को प्राप्त करने के बाद ऐसा नहीं होता।
गीता प्रेस की किसी अज्ञात महात्मा द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक में एक बहुत ही सुंदर उदाहरण पढ़ा था। जिस प्रकार तूफानी बवंडर की तमाम हलचलों के बीच उसके ठीक मध्य में इतनी शांति रहती है कि यदि किसी छह माह के बच्चे को वहाँ सुला दिया जाए तो वह आराम से वहाँ सोता रहेगा। अपनी सीमित समझ में मेरा मानना है कि भगवान का जो धाम है, वह बस इसी तरह का है। कोई हलचल नहीं। कोई संघर्ष नहीं। प्रकाश के सर्वव्यापी साम्राज्य में आनन्द का वितान तना रहता होगा। इसी धाम को ज्ञानी जन सदा टक लगाकर तकते रहते हैं….‘‘तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः’’। भगवान स्वयं अपने आप में इसलिए ‘‘धाम’’ हैं क्योंकि वह सारी सृष्टि का ‘‘स्थायी ठोर’’ बोले तो परमानेंट एड्रेस हैं। इस धाम को हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपनी गहन समाधि में देखा है और उसके कुछ-कुछ पते-ठिकाने उपनिषदों में बताये हैं।
एकादशी की राम राम

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