कौशल सिखौला : इतनी बेशर्मी कि 35% मतदाता घरों से निकलते ही नहीं ?
लोकतंत्र का महापर्व है…..
चलिए मतदान करते हैं ……
मतदान के दिन न तो छुट्टी मनाइए और न शिमला मसूरी का प्लान बनाइए । यह दिन लोकतंत्र के महान उत्सव का दिन है । स्नान पूजा से निवृत्त होकर मतदान केंद्र जाइए , इस महान राष्ट्र के निर्माण में भागेदारी कीजिए , वोट दीजिए।
यह आपका हमारा दायित्व है कि आपके परिवार का एक एक जन वोट देने जाए । हमें याद है कि वोट के दिन बहुत से घरों में हलवा पूरी बनता था , मां भी बनाती थी । आप कोई मामूली आदमी नहीं जो वोट करने के दायित्व से भागेंगे । इस राष्ट्र के शेयर होल्डर हैं आप , राष्ट्र का कर्ज आप पर बाकी है । चलिए उठिए , चाय पीजिए और मतदान केंद्र चलिए , वोट दीजिए । मातृभूमि की रक्षा कौन करेगा , चयन कीजिए , वोट दीजिए । मतदान केंद्र के द्वार पर खड़ा जनतंत्र आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
स्वाधीनता संग्राम में जिन हुटात्माओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया , जो लाखों सेनानी राष्ट्र बलवेदी पर न्यौछावर हो गए , उन सबके सपनों का हिन्दुस्तान बनाने के लिए सबको आगे आना होगा । मतदान करने के लिए चुनाव आयोग किस किस तरह से प्रेरित करता है , फिर भी 100% मतदान क्यूं नहीं हो सकता ?
इतने आलसी क्यों हैं लोग कि अपने जनाधिकार का मतलब 77 वर्षों में भी नहीं समझ पाए ? चलिए 100 या 90% न सही 80% मतदान तो हो ? ग्रामीण इलाकों में आज भी जनता इतनी जागरूक है कि लोग 80/85/90% तक वोट कर आते हैं । परन्तु उन गांवों से सटे शहरों का मतदान 45/50% रह जाता है । नतीजा यह कि जब कुल प्रतिशत देखा जाता है तो यह 65% के आसपास बैठता है । मतलब इतनी बेशर्मी कि 35% मतदाता घरों से निकलते ही नहीं ?
कारणों पर मत जाइए पर वोटिंग के प्रति कुछ समाजों की जागरूकता अनुकरणीय है । इन बूथों पर एक घंटा पहले से मतदाताओं की कतार लग जाती है । जरा शहरी इलाकों के पॉश एरिया में जाइए । ये बड़े लोग या तो छुट्टी मना रहे होने या फिर शहर में होंगे ही नहीं । यही सब चला तो एक दिन चुनावों को सुविधाएं समाप्त करने के कानून से जोड़ना होगा । जो लोग वोट देने नहीं जाते , एक वर्ष के लिए उनकी कुछ सुविधाएं आधी कर दीजिए , फिर देखिए तमाशा ? हो सकता है वन नेशन वन इलेक्शन के साथ अनिवार्य मतदान को लेकर भी कोई कानून आए।
तो चलिए मित्रों बाहर निकलते हैं , अपने और देश के भविष्य के लिए वोट करते हैं ?
जा रहे हैं न वोट देने ?