डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : जाति के नेता को भ्रष्ट नहीं कहेंगे

हम विश्वगुरु हैं। भ्रष्ट को भ्रष्ट इसलिए नहीं कहेंगे क्योंकि वह हमारी जाति का है और यदि जाति का नहीं है तो क्षेत्र का है, यदि क्षेत्र का नहीं है तो उस दल या संस्था का है जिससे हम जुड़े हैं। हमें हमारा नेता हमारी जाति का ही चाहिए, दूसरा चाहे जितना योग्य और सद्चरित्र है उसका हमारे लिए कोई महत्व नहीं, क्योंकि हम विश्वगुरु हैं।

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स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था यदि भारत की विशेषता को एक शब्द में बताना हो तो वह है त्याग। त्याग ही हमारा धर्म है।

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महाभारत आदि पर्व के एक सौ चौदहवें अध्याय में महात्मा विदुर ने धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहा-

एकेन कुरु वै क्षेमं कुलस्य जगतस्तथा ।
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ॥ ३८ ॥
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।
स तथा विदुरेणोक्तस्तैश्च सर्वैर्द्वि जोत्तमैः ॥ ३९ ॥

केवल एक पुत्रके त्याग द्वारा इस सम्पूर्ण कुल का तथा समस्त जगत का कल्याण कीजिये। नीति कहती है कि समूचे कुल के हित के लिये एक व्यक्ति को त्याग दे, गाँव के हित के लिये एक कुल को छोड़ दे, देश के हित के लिये एक गाँव का परित्याग कर दे और आत्मा के कल्याण के लिये सारे भूमण्डल को त्याग दे।

यह विचार ही भारत को विश्वगुरु बनाता है। विश्वगुरु का मार्ग बड़ा दुरूह है। वह दुधारी तलावर है, जो केवल बाहर ही नहीं अंदर भी वार करती है। जो इस तलवार को चला सकेगा वही विश्वगुरु बन सकता है। वरना प्रभुता और धन तो धृतराष्ट्र के पास भी था, लेकिन मोह में वह सब कुछ गँवा बैठा।

– डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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