योगेश किसले : रॉ वंदना..रॉ की नजरें उन सभी पर जो…
आप मानिए या नही लेकिन सच ये है कि भारत का रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ दुनिया का सबसे काबिल और खतरनाक सुरक्षा एजेंसी बनकर उभरा है। इजरायल के मोसाद के साथ ही रॉ को अबतक का सबसे मजबूत सुरक्षा एजेंसी माना जा रहा है। पाकिस्तान भले आईएसआई को लेकर गाल बजाता रहे लेकिन रॉ के सामने उसकी औकात कुछ भी नही है। आपको याद होगा 1989 में मॉन्ट्रियल ओलंपिक के दौरान इजरायल के डेढ़ दर्जन खिलाड़ियों की हत्या आतंकियों ने की थी । इसका बदला मोसाद ने अपने तरीके से लिया था।
पहले उन आतंकियों की लिस्ट बनाई गई। फिर मोसाद ने स्थानीय संपर्को के साथ जाल बिछाया और फिर चुन चुन कर उन आतंकवादियों को मारा। मारने से पहले उसे बता भी दिया कि उसकी हत्या क्यों की जा रही है। इसलिए मोसाद को उस समय से लेकर आज तक सबसे खूंखार सुरक्षा एजेंसी कहा गया। आजादी के 70 साल बाद जब मोदी ने इजरायल से सम्बंध बनाये तो एक वर्ग नाखुश हो गया था लेकिन इजरायल के मोडस ओप्रेन्ती को रॉ ने भी अपनाया। खालिस्तानी आतंकी हो या पाकिस्तानी आतंकी उन्हें साफ करने की जिम्मेवारी रॉ ने ले ली है। पूरी दुनिया मे कोई भी ऐसा देश नही है जहां रॉ का नेटवर्क नही है।
कनाडा , इटली ,इंग्लैंड पाकिस्तान , ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका सब जगह रॉ अपना डंका बजा रहा है। अब तक अलग अलग देशों में रॉ ने 9 शीर्ष खालिस्तानी आतंकियों को ठिकाने लगा चुका है और आतंकियों की ठुकाई लगातार कर रहा हैं। दरअसल यूरोप , इंग्लैंड , कनाडा और फ्रांस की सरकार ने भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने में उदासीनता दिखाई। तब रॉ ने अपने दम पर इनके जाल को नेस्तनाबूद करने की पहल की । हाँ , मोसाद जरूर इन्हें मदद कर रहा है लेकिन रॉ खुद इसे अमलीजामा पहना रहा है।
नेपाल से आये एक मित्र ने बताया कि वहाँ आतंकियों को गाजर मूली की तरह खत्म किया जा रहा है। हालांकि रॉ के बारे में मैं लिख रहा हूँ लेकिन भारतीय मीडिया इस मामले में ज्यादा नही बोलकर निश्चय ही देशहित में काम कर रहा है। मुझे अजय देवगन की एक फ़िल्म याद आती है जब एक आतंकवादी को दुश्मन देश को सौंपने जा रहे सेनाधिकारी बने अजय देवगन उस आतंकी को मौके पर ही मार डालते हैं। इस घटना की लाइव टेलीकास्ट कर रहे रिपोर्टर ने इशारा करके कैमरा ऑफ करने को कहती है । आज भारत का मीडिया इस मुद्दे पर या तो कुछ कह नही पा रही है या देशहित में चुप लगाए हुए है। मुख्यधारा की मीडिया को में अपरिपक्व बताता रहा हूँ लेकिन इस विषय मे बेहद गंभीर भी देख रहा हूँ।
दिलचस्प तो यह है कि इन आतंकियों के मारे जाने के बाद भी वहां की सरकार को न ओकते बन रहा है न पोकते। या तो उनके पास रॉ के खिलाफ कोई सबूत हाथ नही लग रहा है या मारे गए आतंकियों की सच्चाई बताने से वे सरकारें डर रही है। रॉ के लिए राहत की बात यह भी है कि देश का उच्च पदों पर गद्दार नही है जो विदेशी शक्तियों को रॉ के भेद खोलने की जहमत उठाये ।
यह सब इसलिए सम्भव हो पाया है क्योंकि रॉ को पुनर्गठित कर उसे आधुनिक तकनीक , नेटवर्क और प्रशिक्षण दिया जा रहा है । सरकारी हस्तक्षेप कम हो गया है। जबतक इस खुफिया एजेंसी को काम करने की छूट नही मिलेगी वे कारगर नही हो पाएंगे।
चलते चलते रॉ से सम्बंधित एक किस्सा । रॉ का दफ्तर किस शहर में कहाँ है कोई नही जानता लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी पैनी नजर हमेशा रहती है । 1989 में लोकसभा चुनाव हो रहा था । राजीव गांधी के खिलाफ रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के एक एक सनकी छात्र शिवप्रसाद अग्रवाल को कुछ लोगो ने चढ़ाकर चुनाव लड़वा दिया । प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अग्रवाल की सुरक्षा प्रशासन के लिए मुसीबत बना हुआ था। जिन लोगों ने अग्रवाल को सूली पर चढ़ाया था उसमें एक पत्रकार जो एक सरकारी विभाग में थे , शामिल थे। अचानक एक दिन एक कार में बैठे कुछ लोगो ने खींचकर अपनी कार में लगभग अगवा कर लिया था । फिर उन्हें धमकाया कि अग्रवाल को चुनाव लड़ने को क्यों उकसाया? इस पत्रकार ने बताया कि वे रॉ के लोग थे । उक्त पत्रकार हैरान था कि जिसका कोई दफ्तर रांची में नही है वे कैसे उन्हें पकड़ लिए। किसी तरह से गुहार लगाकर उन्होंने रॉ से अपना पिंड छुड़ाया । कहने का तात्पर्य है कि रॉ की नजरें उन सभी हरकतों पर लगी रहती है जो देश और सरकार के लिए मुसीबत होते है। आप गर्व कर सकते हैं कि आप ऐसे खुफिया एजेंसी की निगहबानी में सुरक्षित हैं।