मां काम नाम धरती, पिता स्वतंत्रता और घर कारागार..

अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हिंदुस्तान धरती के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद का काशी से अटूट नाता रहा है।किशोरावस्था में काशी में संस्कृत पढ़ने आए चंद्रशेखर तिवारी को उनकी बहादुरी व अदम्य साहस के कारण ‘आजाद’ नाम ज्ञानवापी में हुई सभा में मिला।

वाराणसी के लहुराबीर इलाके में उनके नाम पर आजाद पार्क है तो सेंट्रल कारागार में जहां उन्हें कोड़े मारे गए थे, वहां उनकी आदमकद प्रतिमा के साथ भव्य स्मारक है। देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जलियांवाला बाग नरसंहार ने देशवासियों को दुखी कर दिया था।

महात्मा गांधी ने इस घटना के विरोध में ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध असहयोग आंदोलन प्रारम्भ किया था।

साल 1921 में काशी में विद्यार्थियों का एक समूह विदेशी कपड़ों की दुकान के बाहर धरना दे रहा था।इसी दौरान पुलिस आई व सभी को लाठियों से पीटने लगी।

15 वर्षीय विद्यार्थी चंद्रशेखर तिवारी को गुस्सा आया व उन्होंने दरोगा को पत्थर मार दिया। पुलिस ने चंद्रशेखर को मजिस्ट्रेट के सामने पेश की। मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा तो उन्होंने आजाद बताया।वहीं मां का नाम धरती, पिता का नाम स्वतंत्रता व घर का नाम कारागार बताया।मजिस्ट्रेट ने किशोर चंद्रशेखर का तेवर देख कर 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई थी।

शिवपुर स्थित सेंट्रल कारागार में बेंत की टिकठी से बांध कर आजाद को जेलर ने कोड़ा मारना प्रारम्भ किया तो हर कोड़े पर वह हिंदुस्तान माता की जय कहते थे। किशोर चंद्रशेखर कारागार से बाहर आए तो उनकी बहादुरी व साहस का किस्सा काशीवासियों की जुबान पर था।इसके बाद ज्ञानवापी में हुई सभा में चंद्रशेखर तिवारी का नामकरण चंद्रशेखर आजाद किया गया।

काशी में क्रांतिकारी दल के मेम्बर बने थे आजाद 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के मौजूदा अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव (अब चंद्रशेखर आजाद नगर) में पंडित सीताराम तिवारी के घर आजाद का जन्म हुआ था। आजाद की मां जगरानी देवी उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं, इसी वजह से किशोरावस्था में पढ़ाई के लिए उन्हें काशी भेजा गया था।

ऐसे हुआ क्रांतिकारियों से संपर्क
सेंट्रल कारागार में कोड़े मारे जाने की घटना के बाद आजाद पढ़ाई के दौरान ही काशी में क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आ गए थे। काशी में मन्मथनाथ गुप्त व प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आजाद आए व निशानेबाजी में पारगंत होने के कारण सशस्त्र क्रांतिकारी दल के मेम्बर बन गए।क्रांतिकारियों का यह दल भारत प्रजातंत्र संघ के नाम से जाना जाता था।

1922 में चौरीचौरा की घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो कांग्रेस पार्टी से आजाद का मोहभंग हो गया था। काकोरी कांड, अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स की मर्डर व दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम विस्फोट जैसी घटनाओं में अग्रणी किरदार निभाने वाले आजाद प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को शहादत को प्राप्त हुए थे।