पवन विजय : लूडो.. प्रकाश का परावर्तन करने वाला दर्पण कभी प्रकाश का स्रोत नहीं माना जा सकता

अल्फ्रेड कोलियार ने 1896 में एक खेल का पेटेंट कराया और उसका नाम दिया लूडो। दुनिया के सारे बच्चे इसे बड़े चाव के साथ खेलते हैं।

खेल का नाम सुनने में अंग्रेजी जैसा लगता है, लगता क्या है अंग्रेजी नाम दिया ही गया है। अल्फ्रेड कोलियार जिसका नाम है वह इसे लूडो ही नाम देगा, पासा थोड़े ही कहेगा। यदि आप किसी भारतीय बच्चे से कहो कि पासा फेंको, अलबत्ता वह समझेगा नही और अगर समझ गया तो इसे शकुनि से जोड़कर जुआ टाइप का अर्थ लगाएगा।

प्रगतिशील लोग यह कहते हैं कि बॉल, डाइस, रेस्टलिंग, चेस, रनिंग जैसे खेल पश्चिम से आए हैं। मेरे पिछले लेख पर प्रगतिशील ग्रीन मैंगो टाइप के लोग यह कहते पाए गए कि संस्कृत भाषा का विकास बारहवीं शताब्दी के बाद हुआ। समुद्रगुप्त के समय में संस्कृत अस्तित्व में नही थी। अब ऐसे लोगों को कौन बताए कि समुद्रगुप्त के साथ रहने वाले हरिषैण समुद्रगुप्त की विजय गाथा जिस प्रयाग प्रशस्ति में लिखते हैं उसकी भाषा संस्कृत है। खैर ऊंट बुद्धि वालों से मुझे यही उम्मीद भी रहती है, सूरज पूरब में उग सकता है पर उनकी जाहिलियत कभी नही जाएगी।

पश्चिम की तरफ मुंह करे लोग यह नहीं देखते कि रोशनी पूर्व से पश्चिम की तरफ जाती है। प्रकाश का परावर्तन करने वाला दर्पण कभी प्रकाश का स्रोत नहीं माना जा सकता।

यह पासा आज से 4500 वर्ष पहले का है जो सिंधु घाटी में मिला है। यूरोप ने इसे लूडो के रूप में हमें अपना ठप्पा लगाकर ठीक वैसे ही दिया जैसे बीजगणित को अल जेबरा बनाकर किया।

आप सोचिए, एक दिन में इस खेल का विकास तो नही हुआ होगा। इसका इतिहास पांच हजार साल से भी पुराना होगा, व्यापार या ज्ञान के आदान प्रदान के साथ यह बाहर गया होगा और वहां के लोगों में लोकप्रिय हो गया होगा। यही हाल शतरंज के साथ भी हुआ होगा। शतरंज का उल्लेख सिंधु घाटी में जोर शोर से करने वाले रोमिलाई कबीले के इतिहासकार कहते हैं कि घोड़ा आर्यों के साथ आया। वैसे सिंधु घाटी के सुरकोटडा में घोड़े के साक्ष्य पर्याप्त रूप से मिले हैं पर शतरंज खेलने वाले जानते हैं कि उसमें घोड़ा खेल का एक मुख्य हिस्सा है तो निश्चित रूप से भारत में कम से कम सिंधु क्षेत्र में पांच हजार साल पहले भी घोड़ा पाया जाता होगा।

लूडो एक उदाहरण है, इतिहास में ऐसे जाने कितनी खोजें हैं जो किसी न किसी अल्फ्रेड कोलियार के नाम से अंकित हैं।

लेख का उद्देश्य समृद्ध इतिहास जानकर प्रकाशवान भविष्य बनाना है।

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