सर्वेश तिवारी श्रीमुख : प्रेम का नया वर्जन

पिछले चार पाँच वर्षों में उपजा यह प्रेम का नया वर्जन है। नई रीतियाँ, नए तरीके… पहले अपने परिवार से झूठ बोल कर किसी के साथ भाग जाएं, और उसके बाद पुलिस प्रशासन में आवेदन दे कर, या वीडियो बना कर कहें कि हमें अपने माँ-बाप से जान का खतरा है।

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आपको इस तरह भागने वाली कुछ घटनाएं याद हों तो याद कीजिये, लगभग सभी में लड़की से यह कहलवाया जाता है कि हमें माँ-बाप से जान का खतरा है। यह इसलिए किया जाता है कि माता-पिता खुद को बचाने में ही उलझ जांय, और शिकारी के सामने कोई परेशानी खड़ी न हो सके। वह आराम से भोंक-भोंक कर शिकार का मांस खाये और मजे ले।
अखबारों की भी अपनी व्यवसायिक मजबूरी है। उन्हें हर खबर को धंधे के हिसाब से दिशा देनी होती है। संवाददाता लिख रहा है कि माता-पिता ने प्रतिष्ठा जाने के कारण आत्महत्या कर ली। यह बिल्कुल ही फर्जी बात है। शब्जी बेंच कर पेट पाल रहा परिवार प्रतिष्ठा का इतना आग्रही नहीं होता कि आत्महत्या कर ले। उसकी आत्महत्या का कारण केवल और केवल कानून का भय है।
एक गरीब परिवार को एसपी के सामने घसीट कर उनसे जान का खतरा बताया जा रहा हो, और वह भी अपनी ही बेटी के द्वारा, तो वह भयभीत नहीं होगा? एक तो पूरे परिवार को तोड़ देने वाली अभद्र हरकत, ऊपर से पुलिस केस! भय से टूट जाने के लिए इतना झटका काफी होता है।
आप उनका तेवर देखिये। घर से सामान्य हालात में कॉलेज के लिए निकली लड़की कोर्ट में विवाह करने के बाद सीधे एसपी ऑफिस में पहुँचती है और माँ-बाप पर केस ठोकती है। पुलिस बाप को बुलाने के बाद कितनी सज्जनता से पेश आई होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। मां-बाप गिड़गिड़ा रहे हैं और वह मुस्कुरा रही है। चार साल पहले नेशनल टेलिविजन पर अंजना कश्यप के साथ बैठ कर प्रगतिशीलता के ठेकेदारों ने जो परिभाषा गढ़ी थी, उसके अनुसार यह भगठेलई ही प्रेम है।
माँ-बाप की बेचारगी देखिये। निर्दोष बेटे को पुलिसिया कार्यवाही से बचाने के लिए वे उसको बस में बैठा कर कहीं दूर भेज देते हैं। उसके बाद सुसाइट नोट में अपने भाई और साले के परिवार से उसका ध्यान रखने के लिए प्रार्थना करते हैं, और तब जाकर कहीं ट्रेन से कट पाते हैं। दोनों पति-पत्नी जान दे कर भी अपने निर्दोष बेटे को कितना बचा पाए हैं, यह समय बताएगा। माँ-बाप का खून पी चुकी लड़की भाई का खून पीने के लिए कब क्या झूठ गढ़ दे, कौन जानता है?
लड़की को तो क्या ही दोष दूँ, हाँ एक बात याद रखिये। यदि कोई व्यक्ति अपने बच्चों को जन्म देने के बाद यूँ ही दुनिया के बाजार में हांक दे रहा है तो वह उनसे सभ्य आचरण की उम्मीद भी मत करे। वह याद रखे कि बच्चे उन्हें कभी भी लात मार सकते हैं, और पशुओं की तरह किसी के साथ भी चिपक सकते हैं। यदि बच्चे को जन्म दे रहे हैं तो उन्हें संस्कार देने को ही अपने जीवन का प्रथम कर्तव्य मानें। यदि ऐसा नहीं करते तो वासना में अंधे बच्चे आपका ही नहीं, पूरे समाज का खून पी जाने में संकोच नहीं करेंगे।
एक बात और। इज्जत जाने का डर माँ-बाप को नहीं था, इज्जत जाने का डर था उस लड़की को, तभी वह उनका मरा मुँह भी देखने नहीं गयी। जानती थी कि लोगों की निगाहों का सामना नहीं कर सकेगी। पर आज नहीं, वह अब कभी भी लोगों की निगाहों का सामना नहीं कर सकेगी। दुनिया क्या, जिस परिवार में गयी है उस परिवार के लोगों की आंखों में देख सकने का साहस नहीं कर पायेगी कभी। इज्जत का भय उसे है…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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