कुमार मिश्रा : हिंदू ग्रंथों में मांस भक्षण, जीव हत्या के तर्क !

पद्म-पुराण के अनुसार सीताजी को भी कष्टों का सामना इसलिए करना पड़ा था कि उनसे एक पक्षी की हिंसा हो गई थी और पक्षिणी ने उन्हें श्राप दे दिया था। यह है हिंदुइज्म, असली लोकतांत्रिक, देवी-देवताओं को भी साधारण पक्षी के उपर कोई विशेषाधिकार नहीं, लेकिन फिर आते हैं वह कुतर्की जो धार्मिक ग्रंथों से ही जीवहत्या को जस्टिफाई करने की कोशिश करेंगे।

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वैसे तो माँसभक्षण के समर्थन में दिए जाने वाले सभी (कु)तर्क अवैज्ञानिक और हास्यास्पद होते हैं लेकिन फिर आते हैं रामायण आदि ग्रंथों से माँसाहार के प्रसंग ढूंढकर लाने वाले डैस-डैस-डैस, फिर ये कहना कि हिन्दू समाज में यह शुरु से प्रचलित है। बेसिक तथ्य यह है कि किसी निर्दोष पशु के जीवन का अधिकार शास्त्र या धर्म से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। ख़ैर, ये सही है कि हिन्दू समाज में माँसाहार शुरु से प्रचलित रहा है, पर साथ में ये भी सही है कि इसको हमेशा ऋषियों और सभ्य लोगों द्वारा हेय दृष्टि से देखा गया है, इसको हमेशा क्वेश्चन किया गया है।

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पद्म-पुराण के अनुसार सीताजी को भी कष्टों का सामना इसलिए करना पड़ा था कि उनसे एक पक्षी की हिंसा हो गई थी और पक्षिणी ने उन्हें श्राप दे दिया था। यह है हिंदुइज्म, असली लोकतांत्रिक, देवी-देवताओं को भी साधारण पक्षी के उपर कोई विशेषाधिकार नहीं, लेकिन फिर आते हैं वह कुतर्की जो धार्मिक ग्रंथों से ही जीवहत्या को जस्टिफाई करने की कोशिश करेंगे।

पहले तो रामायण की रचना ही तब हुई जब एक क्रौञ्च पक्षी की हत्या देखकर महर्षि वाल्मीकि अनियंत्रित क्रोध से भर गए, शिकारी को कठोर श्राप दे दिया। जिस रामायण के कुछ श्लोकों द्वारा जीवहत्या को नाॅर्मलाइज करने की कोशिश होती है उसके रचयिता का ही जीव-हिंसा के प्रति बेहद सख़्त स्टैंड है। और फिर महाराज दशरथ हों या महाभारत में पांडु, इन दोनों को ही जिन कष्टों का सामना करना पड़ा उसका कारण था इनकी आखेट पर जाने की आदत। डोन्ट यू एवर फील राजा दशरथ और पांडु की कथा के द्वारा यह ग्रंथ आखेट को हतोत्साहित ही करते हैं?

कालिदास के दुष्यन्त एक बार धनुष लेकर हिरण के पीछे दौड़ रहे थे। हिरण कण्व ऋषि के आश्रम के पास पहुँच गया और दुष्यंत को आकाशवाणी हुई, “तुम्हारा पराक्रम निर्दोष पशु के वध से नहीं उसकी रक्षा करने से सिद्ध होगा।” इसी पुस्तक में महाराज दुष्यंत को राज्य के एक धीवर के पास किसी अंगूठी के होने की सूचना मिली। उन्होंने उसके पास नागरक श्याल को भेजा। नागरक श्याल ने उससे पूछा तुम क्या करते हो आजीविका के लिए। धीवर ने कहा मैं मछली पकड़ता हूँ। पढ़कर लगता है कि मछली खाना तो स्वीकार्य प्रैक्टिस था कालिदास के समय में? लेकिन फिर नागरक श्याल हँस देते हैं, तंज के साथ कहते हैं, “वाह! बहुत ही पवित्र पेशा है तुम्हारा।”

महाभारत के आदिपर्व में रुरु मुनि की होने वाली पत्नी को सर्प ने डस लिया। युवती को तो किसी तरह बचा लिया गया पर रुरु मुनि इसके बाद साँपों को देखते ही लाठी भाँजना शुरु कर देते थे। वह धरती से साँपों को खत्म कर देना चाहते थे। फिर एक दिन उन्हें एक समझदार साँप मिल गया जो श्रापवश साँप था। उसने उनसे कहा- ‘अहिंसा परमो धर्मः’। येस, महाभारत में ‘अहिंसा परमो धर्मः’ मुख्यतः पशु-पक्षियों के रक्षार्थ ही आया है, यहाँ तो रुरु मुनि से कहा गया कि विषैले साँपों की भी हिंसा नहीं होनी चाहिए, निर्दोष हार्मलेस पशुओं की बात छोड़िए। इसके बाद यह मंत्र किसी धार्मिक क्रिया में पशु-हिंसा के निषेध के लिए आया है।

लेकिन पुनश्च, जीवदया तो स्वतः नैतिक कर्तव्य है, मानवता का विषय है। राजा शिवि ने बाज को कबूतर के बदले खुद का माँस ऑफर कर दिया था शरणागत की रक्षा के लिए, यह कथित डोमेस्टिकेटेड एनिमल्स भी हमारे शरणागत ही होते हैं। सब जीवों के प्रति संवेदनशीलता कोई जटिल आध्यात्मिक ज्ञान नहीं, सामान्य समझ की बात है। इसके लिए भी कोई शास्त्र पलटने की ज़रूरत क्यों है और इससे क्या फर्क पड़ता है कि शास्त्र क्या कहते हैं? जस्ट लुक इनसाइड देअर ब्युटिफुल इनोसेन्ट eyes.

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